जम्मू (सुरेश एस डुग्गर) । करगिल से लेकर लद्दाख में चीन सीमा तक तैनात भारतीय जवानों की दाद देनी पड़ती है जो उन पहाड़ों पर अपनी डयूटी बखूबी निभा रहे हैं जहां कभी एक सौ तो कभी डेढ़ सौ किमी प्रति घंटा की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चलती हैं और तामपान शून्य सक 35 डिग्री नीचे भी है। ऐसे में भी वे सीना तान पाकिस्तानी व चीनी जवानों के साथ साथ प्रकृति की दुश्मनी का भी सामना करते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि भयानक सर्दी तथा खराब मौसम के बावजूद लद्दाख में चीन सीमा पर टिके हुए जवानों के लिए यह अफसोस की बात हो सकती है कि सर्दी में इन स्थानों पर तैनाती तो हो गई पर अभी तक वे सहूलियतें भारतीय सेना उन्हें पूरी तरह से मुहैया नहीं करवा पाई है जिनकी आवश्यकता इन क्षेत्रों में है। हालांकि सियाचिन हिमखंड में यह जरूरतें अवश्य पूरी की जा चुकी हैं। हालांकि सरकार इसे मानती है कि करगिल व लद्दाख की चोटियों पर कब्जा बरकरार रखना सियाचिन हिमखंड से अधिक खतरनाक है। यह सच है कि हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं। तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे। ऊपर से भीषण हिमपात के कारण चारों ओर बर्फ की ऊंची-ऊंची दीवार। लेकिन इन सबके बावजूद दुश्मन से निपटने के लिए खड़े भारतीय जवानों की हिम्मत देख वे पहाड़ भी अपना सिर झुका लेते हैं जिनके सीनों पर वे खड़े होते हैं। कश्मीर सीमा की एलओसी पर ऐसे दृश्य आम हैं।