दोपहर 02.05 बजे सूर्य के मकर राशि में गोचर से खत्म होगा खरमास
पटना (आससे)। मकर संक्रांति का त्योहार जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण का पर्व है। 14 जनवरी दिन गुरुवार श्रवण नक्षत्र में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जायेगा। इस दिन दान-पुण्य करने से उसका सौ गुना फल प्राप्त होता है। पौष शुक्ल प्रतिपदा को ही भगवान भास्कर का राशि परिवर्तन होगा। मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जायेंगे और खरमास समाप्त हो जायेगा।
इस दिन भगवान सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के तौर पर माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, तप, जप, आदि का अत्यधिक महत्व है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि लगातार दो वर्षों से 15 जनवरी को मकर संक्रांति होती रही है परंतु इस वर्ष सूर्य का मकर राशि ने गोचर 14 के दोहपर में होने से मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनायी जायेगी। 14 जनवरी दिन गुरुवार की दोपहर 02.03 बजे सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा।
इसीलिए 14 जनवरी को पुरे दिन विशेषकर दोपहर दो बजे के बाद पुण्यकाल रहेगा। लोकाचार में ऐसी मान्यता है कि गुरुवार को खिचड़ी खाने से दरिद्रता आती है, लेकिन विशेष मुहूर्त या अवसरों पर यह मान्यता लागु नहीं होती है। इसीलिए 14 जनवरी को गुरुवार होने के बावजूद श्रद्धालु खिचड़ी ग्रहण करेंगे। सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
पंडित झा के मुताबिक भगवान सूर्य शनिदेव के पिता हैं। सूर्य और शनि दोनों ही ग्रह पराक्रमी हैं। ऐसे में जब सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है। साथ ही मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है। मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है। इसके अलावा गजक, रेवड़ी, दाल, चावल, अन्न, रजाई, वस्त्र आदि वस्तुओं के दान का विशेष महत्व है। सूर्य मकर से मिथुन राशि तक उत्तरायण में और कर्क से धनु राशि तक दक्षिणायण रहते हैं।
भीष्म ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी। ज्योतिष विद्वान आचार्य राकेश झा ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन मकर राशि में एक साथ पांच ग्रह विराजमान रहेंगे अत: सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु व शनि इन सबकी मौजूदगी से शुभ योग का निर्माण हो रहा है अत: इस दिन दान-पुण्य, गंगा स्नान, पूजा-पाठ, गरीबो की सेवा आदि धार्मिक कार्य करने से इसका कई गुना फल प्राप्त होगा।
इस दिन सूर्य को जल में रोली, गुड़, तिल मिलाकर अर्घ्य देने से रोग, शोक दूर तथा स्वास्थ्य लाभ, प्रखर बुद्धि, ऐश्वर्य, मुख मंडल पर तेज का निखार होता है। ज्योतिषी झा के अनुसार मकर राशि के स्वामी शनि और सूर्य के विरोधी राहू होने के कारण दोनों के विपरीत फल के निवारण के लिए तिल का खास प्रयोग किया जाता है। उत्तरायण में सूर्य की रोशनी में और प्रखरता आ जाती है। तिल से शारीरिक, मानसिक और धार्मिक उपलब्धियां हासिल होती हैं। तिल विष्णु को अत्यंत प्रिय है और यह गर्म भी होता है। तिल के दान और खिचड़ी खाने से बैकुंठ पद की प्राप्ति होती है। ठंड के बाद गर्म होने से चर्म रोग होने की संभावना से तिल का सेवन किया जाता है। तिल तैलीय होने के कारण शरीर को निरोग रखता है।
पंडित राकेश झा ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है ढ्ढ मकर संक्रांति के दिन ही महर्षि प्रवहण को प्रयाग के तट पर गंगा स्नान से सूर्य भगवान से पांच अमृत तत्वों की प्राप्ति हुई थी। ये तत्व हैं-अन्नमय कोष की वृद्धि, प्राण तत्व की वृद्धि, मनोमय तत्व यानी इंद्रीय को वश में करने की शक्ति में वृद्धि, अमृत रस की वृद्धि यानी पुरुषार्थ की वृद्धि, विज्ञानमय कोष की वृद्धि यानी तेजस्विता और भगवत प्राप्ति का आनंद।