आंचल में हैं दूध आंखों में हैं पानी ,
आया समय उठो तुम नारी ।
कमजोर न खुद को समझो ,
जननी हो तुम सम्पूर्ण जगत की,
गौरव हो तुम अपनी संस्कृति की।
तुम जो शक्ति , तुम हो बलवान,
करदो नाश जो भी है हैवान।
नारी और पुरष सब है समान ,
आखिर है तो पहले सब इंसान ।
क्यों करते हैं सब भेद भाव ?
जबकि मिलकर साथ चलने में ही है सबको लाभ ।
नारी को यू कमज़ोर न समझो ,
अपने मन में एक बार झांक के तो पूछो ,
अगर नारी न होती तो क्या होता,
धरती पर किसी का वजूद ना होता ।
नारी है दुर्गा , नारी है काली,
इज्जत दो उसे , ना दो गाली।
कभी बेटी बनकर , तो कभी बहन बनकर,
कभी पत्नी बनकर , तो कभी मां बनकर ,
सभी रूप निभाती है नारी ,
नहीं बनेगी वो अब अत्याचार की मारी,
आया समय उठो तुम नारी,
तुम्हारे पहचान बनाने की अब आई है बारी ।
-भावना शाह