सम्पादकीय

अभ्यासका महत्व


श्रीराम शर्मा 

सतत अभ्यास द्वारा शरीर एवं मनको इच्छानुवर्ती बनाया जा सकता है तथा असामान्य कार्य करनेके लिए भी सहमत किया जा सकता है। बुद्धिमान होते हुए भी विद्यार्थी यदि पाठ याद न करे, पहलवान व्यायाम छोड़ दे, संगीतज्ञ, क्रिकेटर अभ्यास करना छोड़ दें, चित्रकार तूलिकाका प्रयोग न करे, कवि भाव संवेदनाओंको संजोना छोड़ बैठे तो उसकी प्राप्त क्षमता भी क्रमश: क्षीण होती जायगी और अंतत: लुप्त हो जायगी, जबकि बुद्धिकी दृष्टिसे कामपर सतत अभ्यासमें लगे, व्यक्ति अपने अन्दर असामान्य क्षमताएं विकसित कर लेते हैं। निश्चित समय एवं निर्धारित क्रममें किया गया प्रयास मनुष्यको किसी भी प्रतिभाका स्वामी बना सकता है। मानव शरीर अनगढ़ है और वृत्तियां असंयमित। इन्हें सुगढ़ एवं सुसंयमित करना ही अभ्यासका लक्ष्य है। अनगढ़ काया एवं मन अनभ्यस्त होनेके कारण सामान्यतया किसी भी नये कार्यको करनेके लिए तैयार नहीं होते। उलटे अवरोध खड़ा करते हैं। उन्हें व्यवस्थित करनेके लिए निरंतर अभ्यासकी आवश्यकता पड़ती है। अभ्याससे ही आदतें बनती हैं और अंतत: संस्कारका रूप लेती हैं। परोक्ष रूपसे अभ्यासकी यह प्रक्रिया ही व्यक्तित्वका निर्माण करती है। अनेक लोग किसी कार्यको करनेमें अपनेको असमर्थ जानकर प्रयास नहीं करते हैं। फलस्वरूप कुछ विशेष कार्य नहीं कर पाते, अपनी मान्यताओंके अनुरूप हेय एवं असमर्थ ही बने रहते हैं। जबकि किसी भी कार्यको करनेका संकल्प करने एवं आत्मविश्वास जुटा लेनेवाले व्यक्ति उसमें अवश्य सफल होते हैं। आत्मविश्वासकी कमी एवं प्रयासका अभाव ही मनुष्यको आगे बढऩेसे रोकता है। सामान्यत: लोग कुछ दिनोंतक तो बड़े उत्साहके साथ किसी भी कार्यको करनेका प्रयास करते हैं, परन्तु अभीष्ट सफलता तुरंत न मिलनेपर प्रयत्न छोड़ देते हैं। फलस्वरूप असफल सिद्ध होते हैं। जबकि धैर्य एवं मनोयोगपूर्वक सतत अभ्यासमें लगे व्यक्ति असामान्य क्षमताएंतक विकसित कर लेते हैं। अभ्यास आदतोंका रूप लेनेपर चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत करते हैं। अभ्यासकी प्रक्रियासे शारीरिक, मानसिक क्षमताओंका विकास ही नहीं, रोगोंका निवारण भी किया जा सकता है। मानवीय काया एवं मनमें विकासकी असीम संभावनाएं हैं। निर्धारित लक्ष्यकी ओर प्रयास चल पड़े और उसमें धैर्य एवं क्रमबद्धताका समावेश हो जाय तो असंभव समझे जानेवाले कार्य भी संभव हो सकते हैं। उसके लिए सतत प्रयास करना पड़ता है। शरीर एवं मनको निर्धारित लक्ष्यके लिए अभ्यस्त करना होता है। तभी हम अपने लक्ष्यतक पहुंच सकते हैं। अभ्यास करनेसे ही सफलता मिलती है और हम अपनी मंजिल पा सकते हैं।