- भारत के चंद्रयान-2 मिशन पर लगे एक उपकरण ने सौर कोरोना और हेलियोफिजिक्स पर विशिष्ट वैज्ञानिक नतीजे उपलब्ध कराए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने यह जानकारी दी है। कोरोना सूर्य का बाहरी वातावरण होता है। यह सूर्य की दिखने वाली सतह के ऊपर कई हजार किलोमीटर तक फैली हुई है जो धीरे-धीरे हमारे सौर मंडल से बाहर की ओर बहने वाली सौर पवन में परिवर्तित हो जाती है। हेलियोफिजिक्स सूर्य और सौर मंडल के बीच भौतिक संबंधों का विज्ञान है।
बेंगलुरु में स्थित अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि उसे ऊर्जा और सूर्य के अन्य विभिन्न आयामों की अच्छी समझ है लेकिन कई संभवत: अहम घटनाएं अब भी एक रहस्य है। इनमें से कुछ रहस्य सूर्य के गर्म बाहरी वातावरण से संबंधित हैं जिसे कोरोना के तौर पर जाना जाता है जो विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के पराबैगनी और एक्स-रे तरंगदैर्घ्यों में उत्सर्जन करती है। यह ज्ञात है कि कोरोना में एक मिलियन केल्विन से अत्यधिक तापमान में आयनित गैस होती है जो सूर्य की दिखने वाली सतह के तापमान से कहीं अधिक है।इसरो के अनुसार, अत्यधिक गर्म कोरोना की मौजूदगी जैसी बातों का पता लगने से ऐसा संकेत मिलता है कि कोरोना के गर्म होने में मैग्नेटिक फील्ड की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। सूर्य की दृश्य तस्वीरों में जो गहरे धब्बे दिखते हैं उन्हें ही कोरोना कहा जाता है जहां बताया जाता है कि मैग्नेटिक फील्ड मजबूत होते हैं।
इसरो की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, अंतरिक्ष विभाग की एक शाखा अहमदाबाद स्थित फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी (पीआरएल) के वैज्ञानिकों के एक दल ने सौर कोरोना के बारे में दिलचस्प जानकारियां पाने के लिए इसरो के चंद्रयान-2 मिशन पर स्थित सौर एक्स-रे मॉनिटर (एक्सएसएम) से मिलने वाले आंकड़ों का अध्ययन किया। उसने कहा, ”पहली बार सौर कोरोना में एमजी, एआई, एसआई तत्व प्रचुर मात्रा में पाए गए है।”अभी एक्सएसएम ही एकमात्र ऐसा उपकरण है जो सूर्य की सॉफ्ट एक्स-रे वर्णक्रमीय माप उपलब्ध कराता है। सबसे महत्वपूर्ण एक्सएसएम हर सेकंड में बहुत अच्छी ऊर्जा रेजोल्यूशन के साथ ऐसे माप उपलब्ध कराता है जो अभी तक किसी भी उपकरण के लिए उत्कृष्ट है।