सम्पादकीय

जनसुरक्षाको प्राथमिकता


राजेश माहेश्वरी 

देखा जाय तो एक ओर हम सरकारको व्यवस्थापर अपनी खीझ और गुस्सा निकालनेसे बाज नहीं आते हैं। वहीं दूसरी ओर हमारा गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार पूरे समाजके लिए खतरेका कारण बन सकता है। वास्तवमें कोरोनाके प्रकोपके सामने सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गयी हैं। यह होना स्वाभाविक भी है। १३५ करोड़की आबादीवाले देशमें किसी महामारीसे निबटना कोई सरल काम नहीं कहा जा सकता। पहली लहरसे तो हमने मिलकर मजबूतीसे लड़ लिया था, लेकिन दूसरी लहरने सारे दावों और हकीकतोंको बेपर्दा कर डाला है। सरकारी व्यवस्थाके साथ-साथ आम नागरिकोंको यह भी समझा रही है कि वह मास्क लगाये, दो गजकी दूरी रखे और समय-समयपर हाथ धोये। अब इससे शर्मनाक किसी और देशके लिए और क्या हो सकता है कि सरकारको मास्क लगानेके लिए जन-जागरूकरता कार्यक्रम चलाना पड़ रहा है। मास्क न पहननेपर दण्डात्मक काररवाई करनी पड़ रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है जब अमेरिका जैसा अति विकसित देश कोरोनाके सामने घुटनोंपर आ गया तो फिर भारत जैसे विकास्याशील  देशके बारेमें क्या कहा जाय।

जनवरीमें टीकाकरण अभियानकी शुरुआतके बाद देशवासियोंने समझ लिया कि अब कोरोना हमारा कुछ बिगाड़ नहीं पायगा। मार्चका महीना आते-आते हमने सोच लिया कि कोरोना तो चला गया है। हमने मास्क नहीं पहने, सुरक्षित दूरी नहीं बनायी, हमारी सामाजिक सक्रियता बढ़ी और दफ्तर सामान्य ढंगसे चलने लगे। अप्रैलके पहले सप्ताहमें संक्रमितोंका आंकड़ा एक लाख पार करने लगा जो संकेत था कि दूसरी लहर घातक है और इसका पीक ऊपर जायेगा। ऐसेमें जहां बदले विषाणुका वैज्ञानिक अध्ययन जरूरी है, वहीं बचावकी सामाजिक जवाबदेही भी जरूरी है। प्रसिद्ध मेडिकल शोध-पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने एक विश्लेषण प्रकाशित किया है, जिसका निष्कर्ष है कि कोविड-१९ का संक्रमण हवाके माध्यमसे बड़ी तीव्रतासे प्रसारित होकर दूरतक संक्रमित करनेकी क्षमता रखता है। डॉपलेट्ससे उतनी तेजीसे संक्रमण नहीं फैलता। उस थ्योरीको खारिज कर दिया गया है। ‘लैंसेट’ का विश्लेषण ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिकाके छह विशेषज्ञोंने किया है। ऐसा ही शोधात्मक अध्ययन जुलाई, २०२० में दो सौसे अधिक विशेषज्ञ वैज्ञानिकोंने विश्व स्वास्थ्य संघटनको लिखकर भेजा था कि कोरोना संक्रमण हवासे भी फैलता है। ‘लैंसेट’ में भारतमें व्यापक रूपसे फैल रहे कोरोना संक्रमणकी बुनियादी वजह भी हवा बतायी गयी है। रिपोर्टमें कहा गया है कि दससे ज्यादा लोग एक स्थानपर लंबी देरके लिए इकठ्ठा न हों। यानी मेले, रैलियां, चुनाव, बंद कमरोंमें बसनेकी मजबूरी आदि ऐसे बुनियादी कारण हैं, जो संक्रमण फैला रहे हैं। रिपोर्टमें चेतावनी दी गयी है कि कमोबेश दो महीनेतक भीड़ और जमावड़ोंसे अहतियात बरतें। जिन इलाकोंमें संक्रमणके ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, उनपर ही कड़ी बंदिशें लगायी जायं। पूर्ण लॉकडाउनकी जरूरत नहीं है।

‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट प्रकाशित होनेके बाद प्रमुख चिकित्सकोंका सार यह है कि भारतमें कोरोना संक्रमणकी मौजूदा लहर अभी लंबी चलेगी। इसका ढलान कब शुरू होगा, फिलहाल अनुमान लगाना असंभव-सा है, लेकिन संक्रमणकी तीसरी लहर भी आयगी और इतनी ही भयावह हो सकती है। फिलहाल भारतमें संक्रमित मरीजोंकी संख्या २.६० लाखसे ज्यादा और मौतें करीब १५०० हो चुकी हैं। मौतें सितंबर, २०२० के पिछले ‘चरम’ से भी बेहद ज्यादा हैं, लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकोंका मानना है कि यह आंकड़े १४ दिन पहलेके संक्रमणके हैं, लिहाजा नयी संक्रमित संख्या इससे काफी अधिक है।

ऐसा भी नहीं है कि कोरोनाकी पहली लहरके दौरान देशभरमें जो लॉकडाउन लगाया गया था, उसके दौरान सरकार और निजी क्षेत्रके स्तरपर, स्वास्थ्य ढांचेको मजबूत करनेकी, कोशिश नहीं की गयी। हम पीपीई किट्स, वेंटिलेटर और मास्कके क्षेत्रोंमें आत्मनिर्भर हुए। हमने कोरोनाके दो टीके बनाने और उनके उत्पादनमें कामयाबी हासिल की और करीब १२ करोड़ नागरिकोंको टीकेकी खुराकें भी दी जा चुकी हैं। लेकिन इन कोशिशोंके बावजूद कई विसंगतियां सामने आयी हैं। सिर्फ वेंटिलेटरकी ही बात करें तो ५०,००० वेंटिलेटर बनानेके ऑर्डर ज्यादातर उन कंपनियोंको दिये गये, जिनके पास बुनियादी ढांचा ही नहीं था। कोरोनाकी दूसरी लहरसे देशके कई राज्योंमें हालात गम्भीर हो रहे हैं। हालात इतने खराब हो रहे हैं कि लॉकडाउन लगानेकी नौबत आ रही है। स्कूल और कॉलेज तो पहले ही बंद कर दिये गये थे, अब तो कई शहरोंमें भी वीकेंड कफ्र्यू और नाइट कफ्र्यू लगा दिया गया है। बीते मार्चमें फ्रांसमें कोरोना वायरसकी तीसरी लहरकी वजहसे राजधानी पेरिसमें एक महीनेका लॉकडाउन लगाया गया था। पिछले साल जब देशमें कोरोनाने दस्तक दी थी, तब सरकार, प्रशासन और आम लोग भी इस वैश्विक महामारीके प्रति बहुत ही गंभीर थे। लेकिन अब जब फिरसे कोरोना तेजीसे सक्रिय हो रहा है तो सरकार, प्रशासन और आम लोग कुछ खास सतर्क नहीं दिख रहे। हालांकि, वैज्ञानिकोंकी मेहनतकी बदौलत वैक्सीन भी तैयार हो गयी है और लोग आगे आ रहे हैं। लेकिन यह महामारी हमारे देशमें पूरी तरह हारी नहीं है। देशके जिन राज्योंमें कोरोनाके मामले बढ़ रहे हैं वहां तो सबसे पहले और युद्धस्तरपर कोरोनाका टीकाकरण होना चाहिए। लोग कोरोनासे बचावके सारे नियम एवं सावधानियां भूल गये।

यदि महामारीकी दूसरी लहरसे मुकाबला करना है तो राज्य सरकारोंको कोरोना प्रोटोकॉलका सख्तीसे लोगोंसे पालन करवाना होगा अन्यथा इसका खमियाजा पूरे देशको भुगतना पड़ेगा। सरकारके साथ यह हम सबकी भी जिम्मेदारी बनती है कि हम कोरोनासे बचनेके लिए अपने व्यवहार, कार्यकलाप, आचरण और चरित्रमें परिवर्तन लायें। वरना यह जान लीजिए किसी भी महामारीके सामने बड़ीसे बड़ी सरकारें और व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाती हैं। अमेरिकाका उदाहरण हम सबके सामने है। जरूरत सरकारी तथा गैर-सरकारी अस्पतालोंमें कोरोना सहयोगी कर्मियोंकी सुविधाओंमें वृद्धि करनेकी है। लोगोंको अविलंब वैक्सीन लगवानी होगी। अर्थव्यवस्थाकी चिंता छोड़ जन-सुरक्षाको प्राथमिकता देनी होगी, ताकि इस नाजुक दौरका मुकाबला करनेमें सक्षम हो सकें। हमारी सतर्कता खुदको ही नहीं, बल्कि हमारे अपनोंको भी सुरक्षित रखनेमें सहायक होगी। इसलिए सरकारकी गाइडलाइंसका पालन अवश्य करें। इस भयावह दौरका मुकाबला सकारात्मकतासे करना होगा।