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- महामारी से सबको दिलायें निजात
- 36 घंटे का निर्जला उपवास हुआ पूर्ण, व्रती ने किया पारण
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पटना (आससे)। चैती छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान के अंतर्गत सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्ध्य दिया गया। उसके साथ ही व्रतियों ने ३६ घंटे का निर्जला उपवास संपन्न कर विधि पूर्वक पारण किया। कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में भयावह स्थिति बनी हुई है, कम संसाधनों में ही व्रतियों ने इस अनुष्ठान को पूरा किया।
गंगा घाट, नदी, तालाब, पोखर आदि पर जाना वर्जित था। इसलिए उन्होंने अपने घर की छत या बालकॉनी में भगवान भास्कर को अर्ध्य देकर उनसे प्रार्थना में इस महामारी से हम सब को जल्द निजात मिले की कामना की।
इस बार छठ महापर्व पर ग्रह-गोचर का युग्म संयोग बना था। सायंकालीन अर्ध्य में व्रतियों ने रवियोग में अस्ताचलगामी सूर्य देवता को पहला अर्ध्य दिया।
वहीं चैत्र शुक्ल सप्तमी को सुकर्मा योग में व्रतियों ने उदीयमान सूर्य को अर्ध्य देकर इस चार दिवसीय अनुष्ठान का समापन किया। लोक आस्था का महापर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है, एक चैत्र और दूसरा कार्तिक मास में। और, इसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। यह पर्व ऋग्वैदिक काल से चला आ रहा है। व्रती अपने घर-परिवार की सुख-समृद्धि, बाल-बच्चों के आयु, आरोग्य के लिए यह व्रत करती है।
सूर्य को अर्ध्य देने से मनोकामना पूर्ति
उदीयमान सूर्य को अर्ध्य देने से आयु, यश और बल की प्राप्ति होती है। बुद्धि प्रखर, मुख मंडल पर तेज, वैभव तथा पराक्रम मिलता है। कई व्रतियों ने स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य को दूध से अर्ध्य दिया। उदीयमान सूर्य की पहली किरण को सूर्य की पत्नी उषा कहा जाता है, वहीं अस्ताचलगामी सूर्य की अंतिम किरण को सूर्य की दूसरी पत्नी प्रत्युषा कहा गया है।