प्रो. सुरेश शर्मा
एक बार फिरसे इस महामारीने भयंकर रूप धारण कर लिया है। कई देशोंकी व्यवस्थाएं बदल गयी हैं। लगभग एक महीनेसे भारतमें भी इस संक्रमणसे भयंकर स्थिति हो गयी है। देशकी कई राज्य सरकारोंने तीव्र गतिसे फैलते संक्रमण तथा मृत्यु दरमें वृद्धि होनेके कारण फिरसे लॉकडाउन, नाइट कफ्र्यू तथा कई प्रकारकी बंदिशें लगानी शुरू कर दी हैं। बच्चे, युवा, अधेड़ तथा बुजुर्ग सभी परेशान हैं। मास्कके पहरेने चेहरेकी खुशियां छीन ली हैं। एक ओर जीनेकी ख्वाहिश, दूसरी तरफ मौतका खौफ, बहुत ही भयानक मंजर है। इस भयंकर स्थितिसे मनुष्यका जीवन पूरी तरहसे परिवर्तित होता नजर आ रहा है। लोगोंमें मानसिक, शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक बदलाव आने शुरू हो गये हैं। जीवनकी परेशानियां, काम-धंधेकी चिंता, बच्चोंका भविष्य, बैंक लोनकी देनदारी, व्यक्तिपर मानसिक दबाव डाल रही हैं। जन्म संस्कार, कथा, भागवत, विवाह, सेवानिवृत्ति, तीज-त्योहारों, मेलों तथा पर्वोंकी खुशियोंको ग्रहण लग चुका है। भजन, कीर्तन, जागरण, सांस्कृतिक आयोजन, सामूहिक भोजए, कथा-व्रत, उद्यापन, तीर्थ यात्रा, सब कुछ बंद हो गया है। मृत्युपरांत होनेवाले शोक आयोजन, क्रिया-कर्म तथा शोक संतप्त परिवारको ढाढ़स बंधानेके लिए भी सामाजिक रूपसे पहरा है। किसीको सांत्वना देनेके लिए भी सोचना पड़ता है। अपना-अपना सुख-दुख है। जीवनके संबंधोंकी गर्माहट अब शीतल पड़ चुकी है। शिक्षण संस्थानोंमें लगभग ताला लगने जैसे हालात हैं। शिक्षक और विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षणपर मजबूर हो चुके हैं। कक्षा तथा पाठशालाके वातावरणका आनन्द अब सपने जैसा हो चुका है। एक समय था जब विद्यार्थीके पास मोबाइल मिलनेपर उसके माता-पिताको पाठशालामें बुलाकर स्कूल प्रशासन अनुशासनात्मक काररवाई करता था। आज मोबाइल विद्यार्थी, शिक्षक तथा शिक्षा नीति-निर्धारकोंके लिए वरदान साबित हो चुका है।
ऑनलाइन शिक्षणके लिए आर्थिक मजबूरीके कारण जो मोबाइल नहीं खरीद सकते थे, उन्होंने भी एंड्रॉयड मोबाइल खरीदकर बच्चोंको भेंट कर दिये। जो बच्चे दुनियाको अपनी साफ नजरोंसे देख सकते थे उनकी दुनिया केवल मोबाइल स्क्रीनतक सीमित हो चुकी है। मोबाइलका अधिक प्रयोग भविष्यमें बच्चोंको मानसिक, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक रूपसे प्रभावित कर सकता है। अपनी शिक्षाको पूर्ण कर व्यावसायिक जीवनमें भविष्य तलाश रहे युवा भी कम परेशान नहीं हैं। संघटित एवं असंघटित क्षेत्रोंमें नौकरियां लगभग समाप्त हो चुकी हैं। लोगोंके रोजगार छिन गये हैं। देश-विदेशसे घर वापस आ चुके युवा मानसिक तथा आर्थिक दबावमें सुखद भविष्यके लिए चिंतित रहते हैं। युवा-बच्चोंके दुख तथा परेशानीमें उनके माता-पिता कहां सुख-चैनसे रह सकते हैं। उनपर भी बच्चोंकी पढ़ाई, नौकरी तथा शादी-विवाहकी चिंताका दबाव है। छोटा-मोटा कारोबार, उद्योग-धंधा, दुकानदारी, रेहड़ी-फड़ी मजदूरी करनेवाला धंधेकी मंदीसे परेशान है। व्यापारीको ग्राहक नहीं मिल रहा। ग्राहकके पास पैसे नहीं हैं। शादी-विवाह, धर्म-कर्म, उत्सव, मेले, त्यौहार सब बंद हैं। विशेष अवसरोंपर खरीद-फरोख्त होती है। जब खास मौका ही नहीं तो क्यों कोई खरीदेगा। वैसे भी ऑनलाइन शॉपिंगसे कोई भी अपनी मनपसंद वस्तु मंगवा सकता है। मोबाइलपर वस्तु पसंद कर सकते हैं। घरके दरवाजेपर सामान पहुंच जाता है। पेमेंट मोबाइल ऐपसे हो जाती है। वस्तु यदि पसंद न आये तो वापस भी हो जाती है। दुकानदार अपनी दुकानपर बैठा ग्राहकका इंतजार करता रहता है। दुकानका किराया तथा कई प्रकारके टैक्स, बैंक लोन इत्यादि उसे मानसिक रूपसे परेशान करते हैं। ट्रांसपोर्टर, बस मालिक, कारोबारी तथा विभिन्न काम-धंधेके लिए कर्ज लेनेवाले व्यवसाय न चलनेसे बैंकोंके भारी-भरकम ऋणपर ब्याजसे परेशान हैं। पेट्रोल, डीजल तथा गैसकी बढ़ती कीमतोंने आम आदमीके जीवनमें आग लगा दी है।
बिजली-पानी तथा अन्य सुविधाएं महंगी हो चुकी हैं। घर-मकान, दुकान तथा संस्थानमें कारोबारके लिए ऋण लेनेवालोंको बैंकोंकी देनदारियोंने परेशान किया है। सबको आनन्द एवं खुशियां देनेवाला कलाकार इस समय आर्थिक संकटसे जूझ रहा है। जो व्यक्ति स्वयं कष्ट या परेशानीमें होगा, वह औरोंके चेहरेपर गीत गाकर कैसे हंसी-खुशी ला सकता है। भजन, कीर्तन, जागरण, सांस्कृतिक कार्यक्रम बंद हैं। बैंड-बाजाए, ऑर्केस्ट्रा, सज्जा-सजावट, लाइट-टेंट, झांकियां, साउंड, पंडित, नाई, बोटिये, हलवाई, डीजे, छोटा-मोटा कारोबार करनेवाले सब कोरोनाकी बंदिशोंसे बेहाल हैं। मंदिरोंके बाहर प्रसाद, हलवा, फूल-पत्ती, पूजाका सामान, मूर्तियां तथा अन्य सामग्री कोई नहीं खरीदता। मेलोंमें झूले, सर्कस, टिक्की-चाट, टी-स्टाल, सौंदर्य प्रसाधन, कपड़े, बर्तन, ग्रॉसरी, गुलदस्ते, गुब्बारे तथा खिलौने बेचनेवाले बेमौत भूखे मरनेपर विवश हैं। दंगलोंमें कुश्तियां करनेवाले पहलवानोंको दांव-पेच दिखाकर पैसा नहीं मिल रहा। किसान पशुओंके आतंक तथा भयंकर सूखेकी स्थितिसे निराश हो चुका है। इस साल वर्षा न होनेके कारण फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। ट्रैक्टरकी बुवाई, बीज, खाद तथा मजदूरी बहुत महंगी हो चुकी है। किसानको अपने निवेशकी भरपाई भी नहीं हो रही। गांवोंमें लोगोंने पशु पालने लगभग बंद कर दिये हैं। घास कोई खरीदता नहीं है। वर्तमान स्थितिमें सभीको अपना मानसिक, मनोवैज्ञानिक, संवेगात्मक, आर्थिक तथा सामाजिक संतुलन बनाये रखनेकी आवश्यकता है। आशा की जा सकती है कि मनुष्यका वर्तमान कष्ट शीघ्र समाप्त होगा तथा फिरसे दुनियामें सुख-शांति एवं खुशियोंका वातावरण होगा।