सम्पादकीय

भारतकी रणनीतिसे बदले चीन और पाकिस्तानके सुर


 रविकान्त त्रिपाठी

भारतसे लगी चीन और पाकिस्तान सीमापर लम्बे समयसे चल रही तनातनी अचानक शान्त हो गयी, यह भारत और चीनके बीच कई दौरकी वार्ताके बाद बनीं सहमतिका परिणाम था। चीन पीछे क्यों हटा यह कौतूहलका विषय हो सकता है लेकिन यह भारतकी रणनीतिक और कूटनीतिक विजय कही जाय तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। चीनके इस व्यवहारमें उसकी कुछ मजबूरियां भी हो सकती हैं लेकिन भारतके इस रणनीतिक आक्रामक रवैयेका चीनके पास कोई माकूल जवाब नहीं था। पूर्वी लद्दाखके क्षेत्रमें चीन जिस प्रकारसे आक्रामक था उसे देखकर ऐसा नहीं लगता था कि चीन इतनी आसानीसे पीछे हटनेवाला है लेकिन यदि आपके पास बेहतर रणनीति हो तो आप विरोधीको आसानीसे घुटनोंपर बैठा सकते हैं पूर्वी लद्दाखमें यही हुआ। गलवानकी घटनाने चीनको पहले ही पिछले पांवपर ला दिया था वहां उसे ऐसी चुनौती और जवाब मिला जिसकी चीनने कभी कल्पना भी नहीं किया होगा। पैगांगके फिंगर इलाकेमें भी भारतने बहुत ही होशियारी और फुर्तीसे रणनीतिक बढ़त हासिल कर ली थी चीनके पास भारतकी इस आक्रामकताका कोई तात्कालिक जवाब नहीं था। वैसे हो सकता कि चीनका पीछे हटना उसकी रणनीतिका हिस्सा हो परन्तु यह भी हो सकता कि ऐसा उसने विकल्पके अभावमें किया हो। वैसे भी दो कदम आगे और एक कदम पीछे हटना चीनकी पुरानी चाल रही है यही कारण है कि चीन कभी विश्वसनीय नहीं रहा। भारतकी सेनाको दुनियाकी कुछ चुनिंदा पेशेवर सेनाओंमेंसे एक माना जाता है यही कारण है कि भारतने बार-बार ये कहा कि वह पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चोंपर युद्धके लिए तैयार है। भारतीय सैनिकोंको बर्फीले पहाड़ोंपर लड़ाईका गहरा अनुभव तो है ही अन्य युद्धोंका भी बड़ा अनुभव है जबकि चीनके साथ ऐसा नहीं है। मेरा ऐसा कहनेका मतलब चीनको कमतर आंकनेका नहीं है केवल वस्तुस्थितिको स्पष्ट करना है। नि:संदेह चीन एक शक्तिशाली राष्ट्र है परन्तु उसकी अनेक कमियां भी सामने आयीं, जो उसे झेंपनेको मजबूर करती हैं क्योंकि इस दौरान ऐसे कई अवसर आये जब युद्ध अवश्यम्भावी लगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ और चीनने शांतिके प्रस्तावको माना और पीछे हटनेको तैयार हुआ और गत वर्ष मईसे पहलेवाली स्थितिमें आनेको विवश हुआ। सबसे आश्चर्यजनक व्यवहार तो पाकिस्तानका लगा, तनातनी चीनसे थी और पाकिस्तान सकतेमें था उधर चीन पीछे हटनेको सहमत हुआ और इधर पाकिस्तान एलओसीपर तुरंत संघर्ष विरामको राजी हो गया। स्पष्ट होने लगा है कि पाकिस्तानका अबतकका सारा व्यवहार चीनके ही उकसावेका परिणाम था। चीन पाकिस्तानी आतंकियोंको लगातार हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध कराता रहा है अनेक अवसरोंपर ऐसे हथियार, गोला बारूद एवं ड्रोन भारतीय सेना द्वारा पकड़े गये हैं। पाकिस्तानके इस रुखको चीन यह साबित करनेकी कोशिश करता रहा है कि यह संघर्ष कश्मीरको लेकर है परन्तु यह सारी खुराफात ही चीनकी उपज थी। चीनकी शातिराना चाल यही थी कि अक्साइचिनके साथ-साथ गिलगिट बाल्टिस्तान एवं अधिकृत कश्मीरको भी अपने कब्जेमें लिया जाय तभी तो चीन काराकोरम दर्रेसे गिलगिट होते हुए कराची पोर्टतक हाइवेसे पहुंच बना रहा है और जब भारतने कश्मीरसे धारा ३७० को हटा दिया तो चीनकी बौखलाहट बढ़ गयी, उसे यह लगने लगा कि उत्तर दिशासे भारतको घेरनेकी कोशिश अब नाकाम होगी दूसरी ओर पूर्वी लद्दाखके सीमावर्ती इलाकेमें बन रही सड़कोंको लेकर भी चीन काफी सशंकित था।

पाकिस्तानको चीनने अपना मोहरा बना रखा था जो दिनोंदिन असफल, निर्बल और बोझिल होता जा रहा था यह चीनके लिए चिन्ताका विषय था। संभवत: यह भी एक कारण हो सकता है चीनके गलवान और फिंगर इलाकेमें उग्र होनेका। चीनको लगने लगा कि अक्साइचिनको लेकर अब कठिन समय आने लगा है, चीनकी इसी चिंताने पाकिस्तानको भी पीओकेको लेकर चिंतित कर दिया और चीन पाकिस्तान दोनों सीमाओंपर शांतिके पक्षधर हो गये। लेकिन बात यहां कुछ और भी है, विगत १२ मार्चको क्वाडके नेताओंकी वर्चुअल बैठक हुई जिसमें भारत अमेरिका, जापान और आस्टे्रलियाके राष्ट्र प्रमुखोंने हिस्सा लिया जिसमें भारतकी ओरसे प्रधान मंत्री मोदी अमेरिकाकी ओरसे राष्ट्रपति जो बाइडन जापानके प्रधान मंत्री योशिहिडो सुगा और आस्टे्रलियाके प्रधान मंत्री स्काट मोरिसनने भाग लिया। यह अपने तरहकी ऐसी पहली बैठक थी जिसमें चारों देशोंके प्रमुखोंने खुलकर अपनी बात रखी और क्वाडकी एक निश्चित रूपरेखा प्रस्तुत की। क्वाडकी संकल्पना २०१७ में की गयी थी परन्तु एक दशकतक कोई विशेष प्रगति नहीं हो सकी, २०१७ से कुछ नये सिरेसे विचारोंके आदान-प्रदानके बाद क्वाडकी संकल्पना तेजीसे आगे बढ़ी और तभीसे चीन इस संघटनके प्रति बेहद सशंकित रहा और वर्तमानमें उसकी हर शंका सच साबित होती प्रतीत हो रही है क्योंकि क्वाड आज एक मजबूत संघटनके रूपमें स्थापित हो चुका है इसका प्रमाण है इस बैठकमें तय किये गये मजबूत मानदंड। अपने आरंभिक वर्षोंमें क्वाडके देश आपसमें सैन्य अभ्यासकी कवायदतक ही सीमित थे लेकिन अब जो बैठक इन देशोंके बीच हुई है उसमें साझा हितके क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दोंपर विचार-विमर्श, एक स्वतंत्र खुले और समावेशी हिंद प्रशांत क्षेत्रको बनाये रखनेकी दिशामें विचारोंके आदान-प्रदानपर, समकालीन चुनौतियों मसलन लचीली सप्लाईचेनकी व्यवस्था, नयी उभरती तकनीकि, समुद्री सुरक्षा और जलवायु परिवर्तनपर विचारोंके आदान-प्रदानपर, कोविड-१९ महामारीका मुकाबला करने और हिंद प्रशांत क्षेत्रमें सुरक्षित समान और सस्ते टीके सुनिश्चित करनेमें सहयोगके अवसरों पर सहमति बनीं है, जो सुरक्षा व्यापार तकनीकी और स्वास्थ्यके क्षेत्रमें चीनको एक गम्भीर चुनौती है। दरअसल हिंद प्रशांत क्षेत्रमें क्वाड देशोंका लगभग एकाधिकार है बेहतर तकनीकीके मामलेमें भी यह देश विश्वमें अग्रणी हैं और सैन्य क्षेत्रमें तो इनका दबदबा है ही ऐसेमें चीनके लिए क्वाड एक चुनौतीसे कम नहीं है। दूसरे दृष्टिकोणसे कहें तो हिंद महासागरमें भारतका लगभग एकाधिकार है और चीनका आधेसे अधिक व्यापार इसी हिंद महासागरीय क्षेत्रसे होता है ऐसेमें चीनका सशंकित होकर पीछे हटना स्वाभाविक है। जबसे कोरोना चीनसे पूरी दुनियामें फैला तभीसे पूरा विश्व चीनसे खुन्नसमें है और चीन इस कृत्यसे पिछले पांवपर है और उसी तनातनीके दौरमें विश्वके देशोंने भारतका प्रत्येक स्तरपर समर्थन किया है जो चीनके लिए सबसे बड़ा सबक हैै। पाकिस्तान और चीनकी इस पैंतरेबाजीमें इस बदले वैश्विक हालातका बहुत बड़ा महत्व है लेकिन इस सारे घटनाक्रममें भारतके लिए एक बहुत बड़ा संदेश छिपा है जिसे भारतीय शासनके द्वारा पढ़ा जाना चाहिए।

पाकिस्तान, चीनकी कमजोरी है और पाकिस्तानकी कमजोरी उसका अधिकृत कश्मीर है, इसी पाकिस्तानअधिकृत कश्मीरको चीन अपने लिए एक वैकल्पिक व्यापारिक मार्गके रूपमें प्रयोग करना चाहता है चीनका प्रयास यही है कि अक्साइचिनकी तरह गिलगिट भी उसके कब्जेमें आ जाय परन्तु भारतके अडिग विरोधने उसे पिछले पांवपर ला दिया है। रणनीतिक रूप यह जरूरी हो गया है कि पाकिस्तानअधिकृत कश्मीर एवं अक्साइचिनको भारत अपने कब्जेमें ले क्योंकि यह भारतका हिस्सा हैं ऐसा होते ही सिंघ और बलूचिस्तानमें स्वतंत्र होनेके लिए एक बड़े विद्रोहकी आशंका बनेगी जो पाकिस्तानको तोड़ देगा और तिब्बतमें भी आजादीकी मांग उठेगी, हांगकांग पहलेसे आन्दोलित है ताइवान आक्रोशमें है शिनजियांगसे भी आजादीकी मांग उठेगी ऐसेमें चीन शताब्दीके सबसे घोर दबावमें होगा, व्यापारिक प्रतिबंधोंने तो उसे पहलेसे ही आर्थिक दबावमें ला दिया है फिर अक्साइचिनकी वापसी भी आसान होगी।