पटना

राजगीर: विरासतों के संरक्षण को लेकर नालंदा विश्वविद्यालय ने किया हेरिटेज वॉक


राजगीर (नालंदा)(आससे)। मूर्त और अमूर्त विरासतों का संरक्षण आज वैश्विक मंच पर एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। भगवान महावीर और गौतम बुद्ध की धरती बिहार अपनी विरासतों के लिए दुनिया भर में विख्यात है। नालंदा विश्वविद्यालय अपने प्राचीन नालंदा की परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए 2014 से ही इन विरासतों को सहेजने में जुटा हुआ है। लोगों को प्राचीन विरासत के प्रति जागरुक करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय ने एक बार फिर बिहार हैरिटेज श्रृंखला की शुरुआत की है। कुलपति प्रो. सुनैना सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व में, नालंदा विश्वविद्यालय विरासत और ऐतिहासिक महत्व की पहाड़ियों के संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इसके साथ ही संग्रहालय के दौरे और विरासत के संरक्षण के लिए लोगों को जागरुक  की जा रही है।

विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज,  स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायरन्मेंट स्टडीज इन कार्यक्रमों के आयोजन में सक्रिय रूप से जुटा हुआ है। 10 सितंबर 2021 को नालंदा विश्वविद्यालय ने विरासत के संरक्षण और लोगों को जागरुक करने के लिए हैरिटेज वॉक के तीसरे कार्यक्रम  श्द राजगीर वॉकश् का आयोजन किया। इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय छात्रें और विश्वविद्यालय के कर्मचारियों समेत लगभग 45 सदस्यों ने भाग लिया। करीब छह किमी लंबी यह हेरिटेज वॉक ब्रह्मकुंड से शुरू हुई।

इस दौरान टीम ने जरादेवी मंदिर, मनियार मठ, सोन भंडार गुफा और जरासंध का अखाड़ा जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों का दौरा किया। इस वॉक का समापन मखदूमकुंड पहुंच कर हुआ। राजीगर वॉक के दौरान टीम के सदस्यों को इन स्थलों के ऐतिहासिक, पुरातात्विक, दार्शनिक और पारिस्थितिक महत्व के बारे में जानकारी दी गई। इसके साथ ही उन स्थलों की पवित्रता और पर्यावरण के बीच के सामंजस्य को लेकर भी चर्चा हुई। टीम ने स्थानीय लोगों के साथ भी सार्थक चर्चा करके विरासतों को संरक्षित करने के लिए जागरुक करने की पहल की।

नालंदा विश्वविद्यालय की टीम ने इससे पहले 28 अगस्त और चार सितंबर को राजगीर में वैभारगिरी और गृद्धकूट पहाड़ियों पर पहुंच कर उसके संरक्षण के लिए अभियान की शुरुआत की थी। नालंदा विश्वविद्यालय पहाड़ियों और प्राचीन विरासतों को संरक्षित करने के लिए आगे भी इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करेगा। इन कार्यक्रमों में शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों को जोड़ा जायेगा।