नई दिल्लीः केन्द्र सरकार ने आज बताया है कि हरियाणा में इस साल पराली जलाने के मामलों में 25 फीसदी की कमी आई है जबकि पंजाब में ऐसे मामले 25 प्रतिशत बढ़े है. इस बात की जानकारी राज्यसभा में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रश्नकाल के दौरान दी है. उन्होंने बताया है कि हर साल पराली के कारण दिल्ली में एक अक्टूबर से 30 नवंबर तक वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है. तब हवा की दिशा भी पूर्व की ओर होती है. इन सभी कारणों से स्मॉग होता है. जावड़ेकर ने बताया है कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार की ओर से बड़ी संख्या में मशीनें दी गईं जिनका पूरा उपयोग नहीं हो रहा है.
प्रदूषण में 2 प्रतिशत से 40 फीसदी हिस्से का योगदान पराली का
उन्होंने कहा है कि हरियाणा में इस साल पराली जलाने के मामलों में 25 फीसदी की कमी आई जबकि पंजाब में यह 25 प्रतिशत बढ़ गया है. उन्होंने कहा है कि वायु प्रदूषण में दो प्रतिशत से 40 फीसदी हिस्से का योगदान पराली जलाने की वजह से होता है. जावड़ेकर ने बताया है कि इस समस्या से निपटने के लिए पूसा संस्थान ने एक डी-कम्पोजर तैयार किया है. उन्होंने कहा है कि इंडियन ऑयल इसी तरह बायो-मिथिनेशन और बायो-गैस तैयार करने के लिए प्रयासरत है. उम्मीद है कि आने वाले समय में यह प्रयोग बड़ा उपयोगी साबित होगा. एक अन्य पूरक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया है कि 122 शहरों में राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम लागू होगा.
कचरे को रिलाइकिल कर उपयोग करने के प्रयास जारी
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह भी बताया है कि प्रदूषण के कारणों की हर शहर में मैपिंग अलग होती है इसलिए हर शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक भी अलग होता है. उन्होंने बताया कि दिल्ली में हर साल जाड़े में वायु गुणवत्ता का मुद्दा आता है. इसकी वजह प्रदूषण ही है. जावड़ेकर ने कचरे के कारण होने वाले प्रदूषण संबंधी पूरक प्रश्न के उत्तर में बताया है कि प्रदूषण दूर करने के लिए कई तरह की पहल सरकार की ओर से की गई हैं. कचरे का पृथक्करण करने के बाद उसका चक्रीकरण करना और फिर उसका पुन: उपयोग करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
गौरतलब है कि कुछ जगहों पर ऐसी पहल सफल रही हैं. जैव चिकित्सकीय अपशिष्ट के प्रबंधन के बारे में पूछे गए एक पूरक प्रश्न के उत्तर में बारे में पर्यावरण मंत्री ने कहा है कि इस बारे में समुचित दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. उन्होंने कहा कि कोविड-19 काल में पीपीई किट आदि की वजह से जैव चिकित्सकीय अपशिष्ट की मात्रा तेजी से बढ़ी लेकिन इनका समुचित तरीके से प्रबंधन भी किया गया है.