देशमें कोरोना वायरसकी दूसरी लहर काफी सुस्त हो गयी है। नये माामलोंमें लगातार गिरावटके साथ ही सक्रिय मामलोंकी संख्या भी घट रही है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयने शुक्रवारको जो आंकड़ा जारी किया है उसके अनुसार पिछले २४ घण्टोंमें कोरोनाके ६२,४८० नये मामले दर्ज किये गये और १५८७ मरीजोंकी मृत्यु हुई। मृत्युके आंकड़ोंमें भी कमी आयी है। ठीक होनेवाले मरीजोंकी संख्या निरन्तर बढ़ रही है। लगातार ३६वें दिन ८८,९७७ मरीज ठीक हुए। ७३ दिनोंके बाद सक्रिय मामले आठ लाखके नीचे ७,९८,६५६ पर आ गये। संक्रमण दर पांच प्रतिशतसे नीचे है। स्थितियां राहतकारी अवश्य हैं लेकिन प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने शुक्रवारको भविष्यकी चुनौतियोंको ध्यानमें रखते हुए कहा कि कोरोना वायरस अभी हमारे बीच है और इसके स्वरूप बदलनेकी आशंका भी बनी हुई है। इसके लिए हमें सावधानी तथा तैयारी और ज्यादा बढ़ानी होगी। एक लाखसे अधिक ‘कोविड वारियर्सÓ तैयार करनेका महाअभियान शुरू किया जा रहा है। इसके लिए ‘क्रैश कोर्सÓ कार्यक्रमकी शुरुआत की गयी है। आगामी २१ जूनसे बड़े पैमानेपर टीकाकरण अभियान शुरू किया जा रहा है। हर देशवासीको मुफ्त टीके लगाये जायंगे लेकिन लोगोंको कोरोना प्रोटोकालका पालन भी करना होगा। हमें अपनी तैयारियोंको और ज्यादा बढ़ाना होगा। इस महामारीने हमें अपनी क्षमताओंका विस्तार करनेके लिए भी सतर्क किया है। सुदूर क्षेत्रोंमें संसाधनोंको उपलब्ध करानेके कार्यमें तेजी लायी गयी है। स्वास्थ्य क्षेत्रके लोगोंने कोरोनासे निबटनेके लिए अपने कौशलको समुन्नत किया है और यह समयकी मांग भी है। वस्तुत: देशमें दूसरी लहर भले ही धीमी पड़ गयी हो लेकिन खतरा अभी नहीं टला है। बड़ी चिन्ताकी बात यह है कि लोग कोरोना प्रोटोकालका पालन नहीं कर रहे हैं। सड़कोंपर बढ़ती भीड़ और मास्क नहीं लगानेकी आदत इसका प्रमाण है। इस सम्बन्धमें दिल्ली उच्च न्यायालयने भी चिन्ता जताते हुए सही टिप्पणी की है कि यदि कोविड-१९ के दिशा-निर्देशोंका उल्लंघन होता रहा तो इससे तीसरी लहरको बढ़ावा मिलेगा, जिसकी अनुमति कदापि नहीं दी जा सकती है। उच्च न्यायालयने प्रोटोकालके उल्लंघनको स्वत: संज्ञानमें लेते हुए सख्त हिदायत दी है। अब आम जनताकी जिम्मेदारी है कि यदि वह तीसरी लहरसे बचना चाहती है तो कोरोना प्रोटोकालका अनुपालनअवश्य करे।
वनोंका संरक्षण जरूरी
पेड़-पौधे कुदरतका अनमोल और बहुमूल्य तोहफा ही नहीं, धरतीपर जीवनका प्रतीक भी हैं। पेड़-हमें केवल आक्सीजन और भोजन ही नहीं प्रदान करते हैं, बल्कि भूमि कटाव और प्राकृतिक आपदासे भी रक्षा करते हैं। हमारे जीवन जीनेकी आवश्यक वस्तुएं, दवाइयां, स्वच्छ हवा, स्वच्छ जल, वर्षा प्रदान करनेमें इनका विशेष योगदान है, लेकिन औद्योगिकीकरणकी दौड़ और मानव इच्छाके विस्तारने इसके महत्वको भुला दिया है। वनोंको काटकर शहर बसाये जा रहे हैं, जो मानव स्वास्थ्यपर तो गम्भीर असर डाल ही रहे हैं साथ ही प्राकृतिक आपदाओंको निमंत्रण दे रहे हैं। ऐसेमें सर्वोच्च न्यायालयका यह कहना अति महत्वपूर्ण है कि वन क्षेत्रको कब्जेसे मुक्त रखा जाय। वन क्षेत्रमें किसी प्रकारके निर्माणकी इजाजत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि वनोंको ही सुरक्षित कर हम पर्यावरण सन्तुलनको बनाये रख सकते हैं जो मानव जीवनके लिए बहुत जरूरी है। हालांकि यह आदेश सर्वोच्च न्यायालयके न्यायमूर्ति ए.एम. खानविल्कर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरीकी पीठने हरियाणाके अरावली वन क्षेत्रमें बने करीब दस हजार मकानोंको ढहानेपर रोक लगानेसे इनकार करते हुए दिया है, परन्तु यह आदेश पूरे देशके वन क्षेत्रोंके लिए लागू होना चाहिए, क्योंकि वनोंका संरक्षण जरूरी है। देशमें जिस तरह प्रदूषण और पर्यावरण असन्तुलन बढ़ रहा है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी आगका गोला बन जायगी। इसलिए विकासका मानक पर्यावरण सन्तुलनको बनाये रखनेका होना चाहिए। कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन जैसी गैसोंकी वृद्धिके कारण ग्रीन हाउस इफेक्ट जैसी प्रक्रिया उत्पन्न हो रही है, जो मानव जीवनके लिए अत्यन्त घातक है। इसलिए वनोंके संरक्षणके साथ ही पृथ्वीको हरा-भरा करनेके लिए अधिकसे अधिक संख्यामें पौधे लगाये जायं जिससे दूषित वातावरणको स्वच्छ बनाया जा सके। यह प्रकृतिकी रक्षाके लिए जरूरी भी है।