सम्पादकीय

 तीसरी लहरकी आशंकाओंका सच


शशांक द्विवेदी       

कोरोना वायरसकी तीसरी लहर बच्चोंके लिए खतरनाक साबित होगी या नहीं इसको लेकर अभीतक स्थिति पूरी तरहसे साफ नहीं हुई है। इस संबंधमें चिकित्सा विज्ञान क्षेत्रकी प्रतिष्ठित पत्रिका लैनसेटकी एक रिपोर्ट सामने आयी है। रिपोर्टमें कहा गया है कि इस बातके अबतक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधारपर यह कहा जा सके कि कोरोना महामारीकी तीसरी संभावित लहरमें बच्चोंके गंभीर रूपसे संक्रमित होनेकी आशंका है। कोरोनाकी तीसरी लहरको लेकर परस्पर विरोधी विचार सामने आ रहे हैं। अनुमानके मुताबिक कोरोनाकी तीसरी लहर बच्चोंको निशाना बनायगी। जबकि दूसरे अनुमानके मुताबिक तीसरी लहरका बच्चोंपर अधिक असर नहीं होगा। तीसरी लहरके बारेमें अतिवादी सोच हमें या तो लापरवाह बना देगी या अवसादमें डाल देगी। लेकिन हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि तीसरी लहरसे पूर्व पूरी तैयारी रखनी चाहिए क्योंकि कोरोनाकी दूसरी लहरमें लापरवाहीकी कीमत पूरे देशने चुकायी। दूसरी लहरने देशको संभलनेका मौका ही नहीं दिया। लॉकडाउनके सहारे महामारीकी पहली लहरका सामना बखूबी करनेवाले भारतमें कोरोनाकी दूसरी लहरने तबाही मचा दी।

पिछले कुछ महीनेमें कोरोनासे इतनी मौतें हुईं, जितनी बीते एक सालमें भी नहीं हुई थी। अब तीसरी लहरको लेकर स्टेट बैंक ऑफ इंडियाकी एक रिपोर्टने चिंता बढ़ा दी है। स्टेट बैंक आफ इंडियाकी इकोरैपकी रिपोर्टमें कहा गया है कि कोरोनाकी दूसरी लहरसे भी घातक तीसरी लहर हो सकती है। रिपोर्टमें कहा गया है कि कोरोनाकी तीसरी लहरका असर देशमें ९७ दिनोंतक यानी तीन महीनेसे भी ज्यादा समयतक रह सकता है। पांच पन्नोंकी रिपोर्टमें कोरोना वायरसकी थर्ड वेवको लेकर कहा गया है कि यदि देश तीसरी लहरके लिए बेहतर तरीकेसे तैयार रहे तो गंभीर मामले जिन्हें ऑक्सीजन, वेंटिलेटरकी आवश्यकता होती है, ऐसे मामलोंकी दरमें गिरावट आयगी। एसबीआईने अपनी रिपोर्टमें आकलन किया कि देशमें कोरोना वायरसकी दूसरी लहर १०८ दिनोंतक रही जबकि तीसरी लहर ९८ दिनोंतक रह सकती है। बेहतर स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और कोविड वैक्सीनमें तेजीके सहारे तीसरी लहरमें गंभीर मामलोंके आंकड़ेको २० प्रतिशतसे घटकर पांच प्रतिशततक लाया जा सकता है। इस तैयारीके साथ कोरोना वायरससे होने मौतोंकी संख्या वर्तमानकी तुलनामें ४०,००० तक कम हो सकती है। एसबीआईने अपनी रिपोर्टमें कहा है कि कोरोना वायरसके खिलाफ टीकाकरण प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए। १२-१८ आयु वर्गमें लगभग १५०-१७० मिलियन बच्चोंके वैक्सीनेशनके लिए विकसित देशों द्वारा अपनायी गयी परन्तु विचार करनेकी आवश्यकता है।

तीसरी लहरके दौरान बच्चोंके संक्रमित होनेकी आशंकाके पीछे कई तर्क दिये जा रहे हैं। विशेषज्ञोंके अनुसार कमजोर इम्यूनिटीसे हर तरहकी बीमारियोंका खतरा छोटे बच्चोंको अधिक होता है। इसी तरह जुलाई-अगस्ततक देशभरमें अधिकांश लोगोंको कोरोनाका टीका लग जायगा। चूंकि बच्चोंके लिए अभी वैक्सीन नहीं आयी है ऐसेमें बच्चोंके लिए खतरा बरकरार रहेगा। विश्व स्वास्थ्य संघटनके अनुसार १६ वर्षसे कम आयुके बच्चोंको कोरोनाकी मौजूदा वैक्सीसन न लगानेमें ही बेहतरी है। क्योंकि इन वैक्सीन्सका ट्रायल अभी छोटे बच्चोंपर नहीं किया गया है और इसीलिए वैक्सीनके प्रभावों और दुष्प्रभावोंके बारेमें अधिकांश जानकारी उपलब्ध नहीं है। पहली लहर और दूसरी लहरके दौरान भी भारतमें कई बच्चोंमें संक्रमणके लक्षण देखे गये। साल २०२० में अमेरिका जैसे बड़े देशोंमें भी कोरोना संक्रमणकी चपेटमें बहुतसे बच्चे आ गये थे। वहीं भारतमें भी बच्चोंके लिए इंफेक्शनका खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

कोरोनाकी तीसरी लहरकी आशंकाओंके बीच राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने राज्योंसे बच्चोंके लिए हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चरके आंकड़े आयोगमें जमा करनेका आदेश दिया है। हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चरकी किल्लतसे भी बड़ी दिक्कत यह है कि मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर भी पूरी तरहसे चालू हालतमें नहीं है। इसकी मुख्य वजह मेडिकल सिस्टममें टेक्निशियनकी भारी किल्लतका होना और लापरवाह रवैया है। दूसरी लहरके दौरान कई ऐसे मामले खुलकर सामने आये जब वेंटिलेटर राज्योंमें धूल फांकते रहे, कुछ वेंटिलेटर मरम्मतके अभावमें बेकार पड़े रहे। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोगने एक विस्तृत फार्म राज्योंको भेजा है, इसमें बच्चोंके इलाजके लिए कुल अस्पताल, नर्सिंग होम, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, डाक्टर, नर्सोंके आंकड़ों देनेको कहा गया है। दरअसल पब्लिक डोमेनमें मौजूद रिपोर्टमें चाइल्ड हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चरके आंकड़े गायब नजर आते हैं। लिहाजा ऐसेमें राज्योंको इतने बारीक आंकड़े आयोगको देना आसान नहीं होगा। २०११ की जनगणनाके आंकड़ोंके आधारपर लगाये गये अनुमानके मुताबिक ०.४ साल तकके बच्चोंकी जनसंख्या तकरीबन ११ करोड़से ज्यादा यानी कुल आबादीका तकरीबन ११ फीसदी है। १२ करोड़से ज्यादा आबादी ५-९ सालतकके बच्चोंकी है। यानी कुल आबादीका तकरीबन १२.५ फीसदी है। १० से १४ सालतकके बच्चोंकी आबादी भी १२ करोड़से ज्यादा है यानी तकरीबन १२ फीसदी। १५-१९ सालतकके किशोरोंकी आबादी दस करोड़से ज्यादा यानी कुल आबादीके मुकाबले तकरीबन दस फीसदीके आसपास है। २०१९ में जारी हुए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टमके मुताबिक ४६.९ फीसदी लोग भारतमें २५ सालसे कम उम्र हैं। आंकड़ोंको आधार बनायें तो थर्ड वेवकी जदमें आनेवाली आबादी तकरीबन ३५.३८ फीसदी होगी।

सरकारोंके दावे और तैयारियां अपनी जगह हैं, परन्तु जमीनी सचाई चिंताजनक है। गांवोंमें पर्याप्त डाक्टर नहीं हैं और बाल विशेषज्ञोंकी तो भारी कमी है। यह कमी रातोंरात दूर नहीं की जा सकती, क्योंकि पहलेसे ही ग्रामीणोंके लिए प्राथमिक शिक्षा-चिकित्साकी रीढ़ टूटी पड़ी है। कोरोनाने अभिभावकों, डाक्टरों और सरकारोंकी चिंताएं बढ़ा दी हैं। संकट तो उन बच्चोंपर भी आया है, जिनके माता-पिता पहली या दूसरी लहर की भेंट चढ़ चुके हैं। उनके पुनर्वासकी समस्या तो है ही, इस बीच बच्चोंकी खरीद-फरोख्त करनेवाले गिरोहोंके भी सक्रिय होनेके संकेत मिल रहे हैं। कोरोना कालमें गरीबी बढऩेके कारण कुछ माता-पिताओं द्वारा अपने बच्चे बेच देनेकी भी खबरें आयी हैं। बच्चे राष्ट्रका भविष्य हैं, परन्तु इच्छाशक्तिके अभावमें वंचित वर्गके बच्चोंको राष्ट्रका भविष्य न समझनेकी भूल अतीतके उदाहरण लिए खड़ी है। बाल कुपोषण, शारीरिक शोषण, अनाथ और गरीब बच्चोंकी विद्या विहीनताका घोर अंधकार छाया रहा। आज सांविधानिक संस्थाएं बच्चोंके मुद्दोंका संज्ञान ले रही हैं तो इसका कारण संविधानमें बाल अधिकारोंकी व्यवस्था है। इसके बावजूद लाखों बच्चे अशिक्षित और दोहरी शिक्षा नीतिके तहत गुणकारी शिक्षा हासिल करनेमें असमर्थ हैं। एक ओर वह अनाथ बच्चे हैं, जिन्होंने पहली और दूसरी लहरमें अपने माता-पिताको खोया है, जबकि तीसरी लहरमें तो खुद बच्चोंके संक्रमित होनेकी आशंका जतायी जा रही है। बच्चोंके बचावके लिए नया आयोग, नयी नीति अपनानेकी आवश्यकता है।