संत राजिन्दर सिंह
नया साल जब भी शुरू होता है तो बहुतसे लोग संकल्प बनाते हैं। किसीका संकल्प एक दिनमें ही टूट जाता है तो किसीका एक माहमें। हम सब अपनी प्राथमिकताके आधारपर अपनी तरक्की एवं प्रगतिके लिए नववर्ष संकल्प करते हैं। कुछ लोग प्रतिदिन व्यायामका, कुछ ज्यादा मेहनतका, कुछ सुबह जल्दी उठनेका, कुछ व्यवसायिक प्रगतिका, जबकि कुछ शराब-सिगरेट छोडऩेका। इन सभीके साथ हमें आध्यात्मिक प्रगतिका भी संकल्प करना चाहिए। एक अच्छा, नेक, पवित्र और सदाचारी मनुष्य बननेके लिए भी प्रयत्न करना चाहिए। नेक व्यक्ति बननेके लिए हमें बाहरी दुनियामें नहीं, बल्कि अपने अंदर काम करना होगा, अपनी सोच एवं समझको निखारना होगा। हम लोग दुनियाको एक दृष्टिकोणसे देखते हैं। जैसे-जैसे हमारी समझ, संस्कार हो वैसे ही सोच होती है। कई बार कुछ लोग पसंद नहीं आते। सोचनेवाली बात यह है कि क्यों हम कुछ लोगोंको पसंद नहीं करते या क्यों कुछ लोग हमें पसंद नहीं करते? यह इसलिए क्योंकि हम अपने आसपासके लोगोंका आकलन केवल अपनी भौतिक दृष्टिसे करते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि सब धर्मग्रंथ हमें यही समझाते हैं के हम सभी परम पितापरमेश्वरकी संतान हैं। उन्हें किसी भी नामसे पुकारें, उनके हम अंश हैं। जिस प्रकार एक अंष प्रभुका हममें है, ऐसा औरोंमें भी है, पशुओं, परिंदोंमें भी है तो हम प्रभुसे प्रार्थना करें कि जो हमारा दृष्टिकोण है यह खुले ताके सबको हम एक ही नजरसे देख पायें। ये होगा कैसे? जब इनसान भजन-अभ्यास करता है तो प्रभुके दो जाति रूप हैं ज्योति और श्रुति उसका हमें अनुभव होता है। जैसे उसका अनुभव होता है तो फिर हमें यकीन हो जाता है कि हमारे अन्दर कुछ और है जो बाहरसे नहीं आया। हमें जब यह अहसास हो जायगा कि जो प्रभुकी शक्ति हममें काम कर रही है, वह ही दूसरे मनुष्योंमें, जानवरोंमें और पेड़-पौधोंमें भी है, तब हम सबको अपना समझने लगेंगे। हमारी संवेदनशीलता औरोंके प्रति बढ़ जायगी, हमारी सोच एवं समझ सही मायनेमें बढ़ जायगी। जिसकी समझ सही होगी, उसके विचार सही होंगे। जिसके विचार सही होंगे, उसके बोल सही होंगे। जिसके बोल सही होंगे, उसके कार्य सही होंगे तो सही समझ होना बहुत जरूरी है। तो इस नववर्ष हमें अपनी संपूर्ण प्रगतिके लिए आध्यात्मिक संकल्प भी करना चाहिए कि हम रोजाना भजन-अभ्यासमें समय दें, ताकि हमारी सोच एवं समझ विकसित हो सके एवं हमें एक अच्छा, नेक, पवित्र और सदाचारी इनसान बननेमें मदद मिले।