सम्पादकीय

भुखमरीका दंश


दुनियाभरमें भुखमरीके कारण हर एक मिनटमें ११ लोगोंकी मौत हतप्रभ करनेवाली है। भुखमरीसे मरनेवाले लोगोंकी संख्या कोविड-१९ के चलते जान गंवानेवालोंकी संख्याको पीछे छोड़ दिया है। गरीबी उन्मूलनके लिए काम करनेवाले संघटन ‘आक्सफैमÓ की रिपोर्ट हैरान करनेवाली है। रिपोर्टके अनुसार पिछले एक वर्षमें पूरी दुनियामें अकाल जैसे हालातका सामना करनेवाले लोगोंकी संख्या छह गुना बढ़ी है। दुनियामें करीब १५.५ करोड़ लोग भुखमरीका दंश झेल रहे हैं जो विश्व समुदायके लिए कलंककी बात है। विकसित देश अपने विकासका दम्भ तो भरते हैं लेकिन अपने गिरेबांमें झांक कर देखें कि मानव जीवनके लिए मूलभूत आवश्यकताओंके प्रति कितने सचेत हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये आंकड़े उन बेबस लोगोंसे बने हैं जो अकल्पनीय पीड़ासे गुजर रहे हैं। इनके बारेमें विश्व समाजको सोचना होगा। अफगान, इथोपिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और यमन भुखमरीसे सर्वाधिक प्रभावित हैं। इन सभी देशोंमें संघर्षके हालात हैं जहां आम नागरिकोंको भोजन-पानीसे वंचित रखकर भुखमरीको युद्धके हथियारके रूपमें उपयोग किया जा रहा है। यह मानवीय संवेदनहीनताकी पराकाष्ठïा है। जो धन मानवीय राहत पहुंचानेके लिए खर्च होनी चाहिए वह युद्धक सामग्रीके लिए खर्च हो रही है, जो उचित नहीं है। मौजूदा दौरमें पूरा विश्व बारूदकी ढेरपर बैठा हुआ है। तीसरे विश्वयुद्धका खतरा मंडरा रहा है जो विनाशका सूचक है। कोरोना संकटकालमें सेनाओंपर होनेवाला खर्च पूरी दुनियामें ५१ अरब डालर बढ़ गया है जो भुखमरीसे निबटनेके लिए आवश्यक धनसे छह गुना ज्यादा है। आज दुनियाकी जो स्थिति बन रही है, वह आनेवाले कलके लिए शुभ संकेत नहीं है। भुखमरीके अन्य कारणोंपर नजर डालें तो बेरोजगारी, बीमारी, कुपोषण, बढ़ती आबादी, भण्डारणके कुप्रबन्धनके चलते अनाजकी बर्बादीके साथ समाजमें बढ़ती शोषणकी प्रवृत्तिसे स्थिति विषम होती जा रही है। इन समस्याओंसे निबटनेके लिए चौतरफा प्रयास होना चाहिए। वैश्विक संस्थाएं निकम्मी और निरर्थक साबित हो रही हैं। भुखमरीसे मौत बेहद पीड़ादायक और अमानवीय है। बदलते हालातमें जो लोग खाद्य असुरक्षाके भीषण संकटका सामना कर रहे हैं उनके लिए वैश्विक स्तरपर सार्थक कदम उठानेकी जरूरत है।

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक कानून देशकी राष्टï्रीय आवश्यकता है। देशके सभी नागरिकोंको एक समान कानूनके दायरेमें रखना चाहिए, क्योंकि जब हमारा राष्टï्रीय चरित्र, संविधान और मुद्रा एक है तो कानूनमें इस प्रकारकी विविधता क्यों रहे? जिस तरह भारतीय दण्ड संहिता और सीआरपीसी सबपर लागू है, उसी तर्जपर समान नागरिक कानून होना चाहिए, जो सबके लिए हो चाहे वह किसी भी धर्मका हो। समान नागरिक कानूनको किसी धर्म या सम्प्रदायकी जगह देशहितकी दृष्टिïसे देखनेकी जरूरत है। समान नागरिक कानूनके लिए आजादीके बादसे ही आवाज उठने लगी थी और लम्बे समयसे इसपर चर्चा भी चल रही है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्तिके अभाव और भारतकी विविधताको देखते हुए अबतक लागू नहीं किया जा सका है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय इसे लागू करनेकी वकालत कर चुका है। दिल्ली उच्च न्यायालयने एक बार फिर देशमें समान नागरिक कानून लागू करनेका प्रासंगिक सुझाव दिया है। उच्च न्यायालयने कहा है कि समान नागरिक संहिता न होनेसे दूसरे धर्म या सम्प्रदायमें शादी और तलाकके मामलोंमें परेशानी होती है। आजकी युवा पीढ़ीको इससे जूझना न पड़े, इसलिए संविधानके अनुच्छेद ४४ में जो समान नागरिक सहिंताकी उम्मीद दिखायी गयी थी, उसे अब हकीकतमें बदल देना चाहिए। कानूनके सामने सब समान और सबके लिए एक समान कानून लोकतंत्रकी बुनियादी जरूरत है। जिस तरह नयी स्थितियोंको देखते हुए देशमें ३४ वर्ष बाद नयी शिक्षा नीति बनायी गयी है, उसी प्रकार एक समान कानून देशकी बहुत बड़ी कानूनी आवश्यकता है। समान नागरिक कानून लागू होनेसे सबसे अधिक लाभ हर समाजकी महिलाओंको होगा, जो पितृसत्ताका शिकार होनेको मजबूर हैं। ऐसेमें समान नागरिक कानून लागू करनेका उपयुक्त अवसर भी है। देशमें राजनीतिक स्थिरता है और केन्द्र सरकारके पास पूर्ण बहुमत है, इसलिए मोदी सरकारकी जिम्मेदारी बनती है कि वह देशमें एक समान कानून लागू करनेकी दिशामें दृढ़ इच्छाशक्ति दिखायें।