राष्ट्रीय

अकेले चुनाव लड़ेगी बसपा-मायावती


नयी दिल्ली (आससे.)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन के फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं तो कुछ छोटे दल आपस में ही गठबंधन कर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती ने साफ कर दिया है कि 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड मंष उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगी बल्कि अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगी। हालांकि, अकेले चुनावी मैदान में उतरने का फैसला कर मायावती कहीं जोखिम भरा कदम तो नहीं उठा रही हैं? उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष मायावती ने शुक्रवार को 65वें जन्मदिन के मौके पर मेरे संघर्षमय जीवन और बीएसपी मूवमेंट का ‘सफरनामा, भाग-16Ó पुस्तक जारी की। इस दौरान मायावती ने सबसे बड़ा एलान करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीएसपी किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव में 2007 की तरह बीएसपी की जीत का दावा किया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बसपा अकेले चुनावी मैदान में उतरकर बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर पायेगी। दरअसल, 2012 और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था. 2007 में अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली बसपा को 2012 में सपा के हाथों करारी मात खानी पड़ी थी जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी। वहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा महज 19 सीटों पर सिमट गयी थी, जिसके बाद 2019 में सपा के साथ मिलकर गठबंधन किया। इसका सियासी तौर पर बसपा को फायदा मिला, लेकिन चुनाव के बाद दोनों की दोस्ती में दरार आ गयी। अब मायावती अकेले मैदान में उतर रही हैं तो सपा छोटे दलों के साथ किस्मत आजमाने के मूड में है। अखिलेश यादव ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है, जिसका राजनीतिक आधार बरेली-बदायूं और आगरा इलाके के शाक्य, सैनी, कुशवाहा, मौर्य समुदाय के बीच है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में जनवादी पार्टी के संजय चौहान, सपा के चुनाव निशान पर चंदौली में चुनाव लड़कर हार चुक?े हैं, लेकिन 2022 में भी सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। यूपी में पिछले दिनों उपचुनाव में सपा ने राष्ट्रीय लोकदल के लिए बुलंदशहर की सीट छोड़ी थी। इसके यह संकेत हैं कि आगे भी वह अजित सिंह के साथ तालमेल कर सकते हैं। हालांकि, अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को अडजस्ट का ऑफर दिया था, लेकिन शिवपाल ने उसे रिजेक्ट कर दिया है और अपना अलग गठबंधन बनाने का फैसला किया है। बिहार की तर्ज पर असदुद्दीन ओवैसी और ओम प्रकाश राजभर ने मिलकर उत्तर प्रदेश में भी छोटी पार्टियों के साथ मिल कर ‘अधिकार संकल्प मोर्चाÓ का गठन किया है। इस मोरचा की अगुवाई भले ही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कर रहे हों, लेकिन चेहरा असदुद्दीन ओवैसी बन गये हैं। इस मोर्चे में पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्रीय उदय पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी और प्रेमचन्द प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी शामिल है। इसके अलावा राजभर आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और शिवपाल यादव से लेकर भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद तक से मुलाकात कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में साल 2002 से ही छोटे दलों से गठबंधन की राजनीति शुरू कर जातियों को सहेजने की पुरजोर कोशिश की जा रही थी, लेकिन इसका सबसे प्रभावी असर 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला, जब बीजेपी ने सूबे में अपने सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया। इस फॉर्मूले के जरिए बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, लेकिन ओम प्रकाश राजभर ने बाद में साथ छोड़ दिया।