सम्पादकीय

अब सख्ती ही एक मात्र विकल्प


 राजेन्द्र

दे शमें कोरोना काल की सबसे भयावह तस्वीर हमारे सामने आने लगी है। पिछले १४ माहोंके कोरोना संक्रमण कालके सारे रिकार्ड टूटते हुए इस रविवारको देशमें कोरोना संक्रमितोंका एक दिनका आंकड़ा एक लाख पार कर गया। कोरोनाके पीक समय सितंबरमें भी एक दिनमें अधिकतम ९७ हजार ८६० कोरोना संक्रमित एक दिनमें देशमें सामने आए थे। कोरोनाकी दूसरी लहरकी सूचना जब इंगलैण्ड सहित योरोपीय देशोंसे आने लगी थी तो हम उत्साहित थे कि हमारे यहां दूसरी लहर इसलिए नहीं आएगी कि सरकार द्वारा एहतियाती कदम उठाए जाने लगे हैं। लंबे लाकडाउन और कोरानाके कारण पटरीसे उतरी आर्थिक गतिविधियोंके ठप्प होने से आम आदमी भी रुबरु हो गया था। रोजगारपर संकट आ रहा था तो कारोबार सिमट रहा था। ऐसेमें यह माना जाने लगा था कि आम इससे सबक लेगा। फिर सबसे बड़ा हथियार हमारा वैक्सीनेशन कार्यक्रम था और लगने लगा था कि ज्यों ज्यों वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ता जाएगा कोरोना संक्रमण स्वत: ही अंतिम सांस ले लेगा, पर परिणाम इससे इतर सामने आने लगे हैं जिससे केन्द्र व राज्यों की सरकारें चिंतीत हो गई है। हैं भी चिंताकी बात। कोरोनाका असर सबसे ज्यादा महाराष्टर््सहित दस राज्योंमें देखा जा रहा है। हांलाकि देशके २३ राज्यों में कोरोनाकी दूसरी लहर आने की बात सरकार स्वयं मान रही है। अकेले महाराष्टर््में रविवार को ५७०७४ नए मामलें सामने आए हैं। देशमें कोरोना से मौतके मामलें भी बढ़ रहे हैं। हांलाकि इस बातपर संतोष किया जा सकता है कि देशमें कोरोना वैक्सीनेशनमें तेजी आई है और लोग वैक्सीनेशन को लेकर अवेयर होने लगे हैं।

कोरोनाके नए दौरको देखते हुए महाराष्टर््में कई स्थानोंपर लाकडाउन लगाया गया है तो राजस्थान सहित देशकी कई राज्य सरकारोंने सख्त कदम उठाने शुरु कर दिए है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मोनेटरिंग कर रहे हैं तो राज्योंकी सरकारें भी गंभीर हुई है। राजस्थान सरकार शुरु से ही गंभीर रहने के साथ ही हम सतर्क है कि टेगलाईनके साथ काम कर रही हैं वहीं राजस्थानमें १९ अ्रप्रेलतक आंशिक लाकडाउन लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नियमित समीक्षा कर रहे हैं और आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं।

हांलाकि इस बातपर संतोष किया जा सकता है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना को लेकर राज्योंकी सरकारें सजग रही हैपर सख्तीके अभावमें लापरवाहीके कारण कोरोनाके नए मामलें तेजीसे बढऩे लगे हैं। कोरोना के बढ़ते संक्रमण और वैक्सीनेशनके बीच देशमें करवाए गये एक सर्वेंमें सामने आया है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना नहीं होती तो शायद देशमें प्रतिदिन दो से ढ़ाई लाख तक मामलें सामने आते। हांलाकि यह भी दावा किया गया है कि कोरोनाकी रोकथाम के लिए दवाके स्थानपर बचावके उपाय अधिक कारगर साबित हो रहे हैं। सरकारोंके अवेयरनेस कार्यक्रमोंमें भी बचावको ही बेहतर उपाय बताया जा रहा है। सवाल यह है कि सरकारोंके सख्त प्रावधानोंके बावजूद कोरोनाकी रफ्तारमें एकाएक तेजी किस कारण से आ रही है। आज दुनियाके देशोंमें कोरोना संक्रमणके एक दिनी मामलों में हम शीर्षपर पहुंच गए हैं। यह गंभीर चिंता का कारण है।

एक बात साफ हो जानी चाहिए कि कोरोनासे लड़ाई केवल और केवल लाकडाउनसे नहीं लड़ी जा सकती। लाकडाउन को तो अंतिम विकल्पके रुपमें ही देखा जाना चाहिए। र्लाकडाउनके कारण बहुत कुछ खो चुके हैं। थोड़ी सी साबधानी ही हमें इससे बचा सकती है। यही कारण है कि अब सरकार पांच सूत्री रणनीति लागू करने जा रही है। इसमें टेस्टिंग,ट्र्सिंग और ट्रीटमेंटके साथ ही कोविड बचाव संबंधी सावधानियां और टीकाकरण में तेजी लाना शामिल है। सरकारकी रणनीति अपनी जगह सही है पर नए संक्रमणको रोकनेमें सबसे ज्यादा जो कारगर हो सकती है वह है आमनागरिकों द्वारा कोरोना प्रोटोकाल की सख्तीसे पालना। सरकारको भी कोरोना प्रोटोकालकी पालनाके लिए सख्ती करनी ही होगी। एक सख्ती से काफी कुछ ठीक किया जा सकता है तो फिर लोगोंको घरोंमें बंद कर सबकुड ठप्प करना ठीक नहीं हो सकता। दो गज की दूरी, मास्क जरुरी और बार-बार हाथ धोनेकी पालन तो करनी  और करानी है। इसमें भी सरकार के जिम्मे मास्क जरुरीकी पालना कराना है। कोई भी हो कितना भी प्रभावी हो मास्क नहीं पहने हो तो जुर्माना और सजा जो भी हो उसकी सख्तीसे पालना करवाई जाए। इसमें किसी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए। पिछले एक साल के कोरोना कालका विश्लेषण किया जाए तो जिस जिस देशकी सरकारने कोरोना कालमें सख्ती की है उसे वहां की जनताने सराहा है और कड़े फैसलों का समर्थन किया है। जहां डिलमिल रवैया रहा वहां राजनीतिक अस्थिरता भी देखनेको मिल रही है। ऐसे में कोरोना प्रोटोकालकी पालना में किसी तरह की रियायत नहीं होनी चाहिए।

एक और सरकारोंको सार्वजनिक परिवहन वाहनों यातायात के साधनों और बाजारों, माल्स आदि में सख्तीसे पालना करानी होगी तो राहगीरों, रेस्टूरेंट वेंडरो, ठेलों-खोमचों वालोंपर भी मास्क पहननेकी सख्ती करनी ही होगी। सबसे बड़ी बात यह कि मानवताको बचानेके लिए यदि कोरोना संक्रमण कालके लिए सार्वजनिक आयोजनोंपर कार्यक्रमोंपर सख्तीसे पावंदी लगा दी जाए तो यह कारगर उपाय हो सकता है। आखिर किसी एक की नासमझी का खामियाजा अन्य लोगोंको क्यों भुगतना पड़े। हांलाकि इसपर दो राय हो सकती है पर मेरा मानना है कि देशमें नीचले स्तर से लेकर विधान सभाओं और अन्य उपचुनावोंको स्थगित रख दिया जाएं तो कोरोना संक्रमण पर प्रभावी रोक लगाई जा सकती है। यदि पुराने चुने हुए लोग साल दो साल ज्यादा भी काम कर लें तो इससे कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला है जबकि चुनावों के कारण चुनावी रैलियां व अन्य गतिविधियां बढऩेसे प्रोटोकालकी पालनकी बात करना बेमानी ही है। इसी तरहसे सभी तरहके प्रदर्शनोंपर भी सख्ती से रोक लगा देनी चाहिए। धारा १४४ की सही मायनेमें पालना यानी की पांचसे अधिक लोग एकत्रित ना हो, मास्क नहीं लगानेपर सख्ती से वसूली और सोशल डिस्टेसिंगकी पालनामें सख्ती होगी तभी कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है।