सम्पादकीय

जीवनमें अनिश्चितता


श्रीश्री रवि शंकर

जीवनमें अनिश्चितताको देखो, यही सत्य है। जरा पीछे घूमकर दृष्टि डालो, अब तक तुमने जो कुछ भी किया वह स्वप्न की तरह लगेगा। भविष्यमें तुम चाहे कुछ भी करो, शहरको महापौर बना तुम कई बार रोए-रोए हो, क्रोधित हो,  बहुत बार लड़ाई, झगड़ा किए हो, तो क्या सब कुछ गुजर गया। भूतकालमें विलीन हो गया। आने वाला कल भी इसी तरह समाप्त हो जाएगा। अभी यह पल भीए चाहे अच्छा हो या बुरा यह भी चला जाएगा। यदा कदा कुछ असुखद पल आ जाते हैं। पता है क्यों आते हैं ताकि तुम्हें सुखद पलोंका एहसास होता रहे। मान लो तुम्हारे जीवन में कभी दु:ख आए ही नहीं, तो सुख भी नहीं रहेगा। तुम सुखको पहचानोगे कैसे, तुम्हारा जीवन उदासीन और स्थित हो जाएगा। तुम पत्थरकी तरह हो जाओगे। अत: तुम्हें जीवनसे भरपूर रखनेके लिए प्रकृति कभी-कभी, कहीं-कहीं थोड़ा कचोट देती है। इससे हमारा जीवन मुखरित हो जाता है। इसको स्वीकार कर लो। भगवान भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करते हैं। कभी-कभी वे भी तुम्हें काटते हैं। तब तुम रोने लग जाते हो, लेकिन जरा पीछे मुड़कर देखो और सच-सच बताओ मुझे कि जब भी मुश्किल आयी क्या तुम्हें इस कठिनाई से निकाला नहीं गया। जब भी कोई परेशानी आईए कहीं से एक मदद करने वाला भी आया और तुम्हें बचा लिया। ऐसी कितनी कहानियां हैं कि लोग नदीमें डूब रहे थे। आसपास कोई नहीं थाए फिर भी पता नहीं कैसे वे बच गए। मैं ये नहीं कहता कि जाओ नदी या समुद्रमें कूद पड़ो और देखो कोई तुम्हें बचाता है या नहीं। मेरा तात्पर्य है कि जीवनमें तुम्हें कभी डरनेकी आवश्यकता नहीं है। हमेशा एक सहारा रहेगा, तो जीवनमें हर दु:खुद पल तुम्हारी भलाईके लिए होंगे ताकि जीवन और सजीव तथा आनंदमय हो सके। अन्यथा जीवनका कोई उद्देश्य नहीं। क्यों लोग जनमते हैं, क्यों सब कुछ भुगतने जब एकदिन मरना ही है, क्या यही जीवन है, क्या केवल विलोंका भुगतान करनेके लिए तुम जन्मे होघ् अगर केवल टैक्स भरने, बिजली और फोनके बिल भरने के लिए तुमने जन्म लिया है तो यह जीवन निरर्थक है। तुम दिन रात मेहनत करते हो। तुम शुक्रवारके आनेका इंतजार करत हो। पूरे सप्ताह पागलोंकी तरह काम करना, थके मांद घर आना, खाना, सो जाना, दूसरे दिन फिर वही दिनचर्या। सप्ताहांत भी एक बंधे बंधाए नित्य कर्म की तरह हो गया है, वहीं गपशप, उन्हीं लोगोंके साथ बैठना, पीना, पिलाना, वही सिनेमा देखना, एक ही ढर्रे की बातचीत। अगर तुम जागरूक हो, तो पाओगे कि कितनी मूर्खता है। जब भी चार-पांच व्यक्ति बैठे बात कर रहे हों, तो बस ध्यान दो। किसी बातचीत के सिलसिलेको तुम तुरंत मोड़ सकते हो।