सम्पादकीय

ध्यानके नजरियेसे


ओशो

हजारों सालोंसे जैन शाकाहारी रहे हैं। उनके सभी २४ गुरु योद्धा जातिसे आते हैं और वह सब मांसाहारी थे। उन लोगोंका क्या हुआ। ध्यानने उनके पूरे नजरियेको बदल दिया। न केवल उनके हाथोंसे तलवार छूट गयी, बल्कि उनका योद्धावाला उग्र स्वभाव भी गायब हो गया। ध्यानने उन्हें अस्तित्वसे प्रेम करना सिखाया। वह संपूर्ण रूपसे एक हो गये। शाकाहारी होना उस क्रांतिका केवल एक हिस्सा है। हम शाकाहारवादको बढ़ावा नहीं देते हैं। हमारे लिए इसका कोई महत्व भी नहीं है। यह मेरा सिद्धांत भी नहीं है क्योंकि यह बस एक उप-उत्पाद है। मैं इसपर जोर नहीं देता, बल्कि मैं ध्यानपर जोर देता हूं। मैं कहता हूं और अधिक सतर्क रहें और अधिक शांत रहें, अधिक खुशहाल रहें, अधिक उन्मादमें रहें और अपने आंतरिक केंद्रको तलाशें। यदि आप शाकाहारवादको एक धर्म या सिद्धांतकी तरह जीते हैं तो आपको लगातार मांसके लिए उत्कंठा होती रहेगी। आप उसके बारेमें लगातार सोचते रहेंगे या उसका सपना देखते रहेंगे और आपका शाकाहारी होना आपके अहंकारके लिए केवल एक सजावट मात्र रह जायगा। मैं जानता हूं कि यदि आप ध्यान करते हैं तो आप एक नयी ग्रहणशीलता और संवेदनशीलताको विकसित करने जा रहे हैं जिसके तहत आप जानवरोंको मार नहीं सकते हैं। शाकाहारी समुदायके पास कई प्रकारके स्वादिष्ट भोजन है। ध्यानके कारण उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया था। लेकिन वह अधिकसे अधिक स्वादिष्ट भोजनकी खोज करने लगे, ताकि उन्हें मांसका स्वाद याद न रहे। यह पृथ्वी और मनुष्य पर्याप्त मात्रामें शाकाहारी भोजन उगानेमें सक्षम है जैसे कि सब्जियां, फल और ऐसे कई फल जिसका अस्तित्व पहले नहीं था। केवल संकरण (दूसरी जातियोंसे एक नयी जातिके पौधेको जन्म देना) की आवश्यकता है और फिर हर रोज हमारे पास कई प्रकारके बेहतर भोजन उपलब्ध होंगे। याद रखें कि संपूर्ण जानवर साम्राज्य हमारा ही हिस्सा है, यहांतककी पेड़ भी। अब वैज्ञानिक इस निष्कर्षको स्थापित कर रहे हैं कि पेड़ भी जीवित होते हैं। न केवल वह जीवित होते हैं, बल्कि उनमें आपसे भी अधिक संवेदना होती है।