सम्पादकीय

अस्पतालोंमें बढ़ती आगकी घटनाएं


 आशीष वशिष्ठï

अस्पतालोंमें आग लगनेकी बढ़ती घटनाएं चिंताका विषय है। आये दिन अस्पतालोंमें आग लगनेसे जानतक चली जाती है। छोटे-छोटे मासूमों और मरीजोंको लेकर बड़ी उम्मीदके साथ लोग अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन जब इनके साथ इस तरहकी घटनाएं होती हैं, तब उनपर दुखोंका पहाड़ टूट पड़ता है। इन हादसोंके पीछे कहीं न कहीं प्रशासनिक लापरवाही प्रमुख कारण है। गत २६ मार्चको मुंबईके एक मॉलकी पांचवीं मंजिलपर स्थित ड्रीम्स मॉल सनराइज अस्पतालमें आग लगनेसे नौ मरीजोंकी मौत हो गयी। ३१ मार्चको दिल्लीमें सफदरजंग अस्पतालके आईसीयूमें आग लगनेकी खबर प्रकाशमें आयी। गनीमत रही कि घटनामें कोई हताहत नहीं हुआ। बीते २८ मार्चको कानपुरके स्वरूप नगर इलाकेमें स्थित एलपीएस इंस्टिट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजीके एक हिस्सेमें भीषण आग लगनेसे हड़कम्प मच गया। आनन-फाननमें १५० से ज्यादा मरीजोंको दूसरे वार्डमें स्थानांतरित किया गया।

जनवरी २०२१ को महाराष्टï्रके भंडाराके सरकारी अस्पतालका अग्निकांड याद करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जहां दस नवजात बच्चोंकी मौत हो गयी थीं। पिछले वर्ष अगस्तमें अहमदाबाद स्थित श्रेय अस्पतालके आईसीयूमें पांच और छहकी रातको आग लगनेसे कोरोना वायरसके आठ मरीजोंकी मौत हो गयी थी। इसके बाद २६ और २७ नवंबरकी रातमें राजकोटके एक निजी अस्पतालके आईसीयूमें आग लगनेसे कोविड-१९ से संक्रमित पांच मरीजोंकी मौत हो गयी। वडोदरामें भी एसएसजी अस्पतालके आईसीयूमें आग लग गयी, लेकिन मरीजोंको समयपर बाहर निकाल लिया गया। बीते वर्ष आठ अप्रैलको लखनऊके किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटीके ट्रॉमा सेंटरकी दूसरी मंजिलपर आग लग गयी थी। गनीतम रही कि इस घटनामें कोई मरीज घायल नहीं हुआ और उन्हें सुरक्षित स्थानोंपर पहुंचा दिया गया। मई २०१८ में लखनऊके ग्लोब अस्पतालमें आग लगनेके बाद भगदड़के दौरान कई तीमारदार जान बचानेके लिए खिड़कीसे पार्किंगकी तरफ कूद गये, जिसमें तीन महिलाओं सहित कई लोगोंको चोटें आयीं। इनमेंसे एककीकी रीढ़की हड्डी टूट गयी। वर्ष २०१८ में मुंबईके ‘कर्मचारी राज्य बीमा निगमÓ यानी ईएसआईसी अस्पतालमें आग लगनेकी चार घटनाएं हुई लेकिन स्थितियां जसकी तस बनी रहीं। दिसंबरमें ईएसआईसी अस्पतालमें आग लगनेसे दस लोगोंकी मौत हो गयी थी। इस हादसेमें सैकड़ों लोग गंभीर रूपसे घायल भी हुए थे। १८ अक्तूबर २०१६ को ओडिशाकी राजधानी भुवनेश्वरके सम अस्पतालमें आग लगनेसे २१ मरीजोंकी मौत हो गयी और १२० से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

मोटे तौरपर यदि देखा जाय तो देशके अधिकतर सरकारी और प्राइवेट अस्पतालोंमें आगसे बचावको लेकर जो उपाय किये गये हैं। उन उपायोंकी देखरेख करनेवाला कोई नहीं है। यहांतक कि रेत, मिट्टी या बाल्टीके उपाय भी अस्पताल भवनोंमें नहीं किये जाते हैं, जिससे कि कभी आग लग जाय तो बड़ा हादसा हो सकता है। फायर एक्सटिंग्विशर तो अस्पतालोंमें जरूर लगे होते हैं, परन्तु इनकी एक्सपायरी डेट देखनेवाला भी कोई नहीं होता है। कई अस्पतालोंमें तो ऐसे अग्निशमन यंत्र भी लगे हुए हैं, जो सालोंसे बदले नहीं गये हैं। इनकी देखरेख करनेवाला भी कोई नहीं है। आग लग जाय तो आगको फैलनेसे रोकनेके लिए यह काफी कारगर साबित होते हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल और रखरखावको लेकर न तो कभी किसीको कोई प्रशिक्षण दिया जाता है और न ही कोई ध्यान दिया जाता है। अस्पताल प्रबंधनकी जिम्मेदारी है कि वहां पर्याप्त मात्रामें आग बुझानेके उपकरणकी व्यवस्था करे और नियमित मॉनिटरिंग करे। अस्पतालोंमें स्मोक अलार्म होना आवश्यक है तथा समय-समयपर उसकी मरम्मत तथा वार्डमें सुरक्षा गार्ड होना आवश्यक है। वहीं अमूमन अस्पताल भवनोंका निर्माण करते समय भी अग्निशमन विभागकी सलाह नहीं ली जाती है। नियमके अनुसार हर अस्पताल या बड़े भवनमें एक प्रवेश द्वार और एक निकासी द्वार अलग-अलग होनी चाहिए। जिससे कि आग लगनेकी स्थितिमें लोग निकासी द्वारका सहारा लेकर अपना बचाव कर सके। साथ ही इन भवनोंका निर्माण ऐसे स्थानोंपर करना होता है, जहांतक अग्निशमन विभागका वाहन आसानीसे पहुंच सके। इस बातपर भी कोई ध्यान नहीं देता है। भवनोंका नक्शा पास करते समय भी स्थानीय प्रशासन, नगर निगम या विकास प्राधिकरण अग्निशमन विभाग से कोई सलाह नहीं लेता है।

आग लगनेका मुख्य कारण शार्ट सर्किट ही होता है। सुरक्षा मापदंडोंका पालन नहीं किया जाता है। विशेषज्ञोंके अनुसार अस्पतालोंमें आगकी घटनाएं बढऩेका कारण यह है कि जब अस्पताल बनता है उस समयके विद्युत भारके हिसाबसे मेन केबलमें वायरिंग कर दी जाती है। कुछ समय बाद अस्पतालोंमें नयी मशीनें और लगा दी जाती हैं। साथ ही नये-नये डिपार्टमेंट भी खोल दिये जाते हैं। इस कारण विद्युत भार बढ़ता चला जाता है। अस्पतालोंके जिम्मेदार लोग इस बढ़े हुए विद्युत भारको नजरअंदाज कर देते हैं और जब किसी समय एक साथ विद्युत भार बढ़ जाता है, तब वायरिंग गर्म होकर शॉर्ट सर्किट हो जाता है और आग लग जाती है। विद्युतीय तंत्रका रखरखाव एवं निरीक्षण नियमित रूपसे नहीं किया जाता है। विद्युतीय बाधा उत्पन्न होनेपर उसकी मरम्मत की जाती है, तबतक आग लगने जैसी घटन हो चुकी होती है। शासन ऐसी घटनाओंको लेकर गम्भीर नहीं है। प्रभावित व्यक्तिको मुआवजा देकर कामकी इतिश्री कर देता है। सुरक्षाकी दृष्टिïसे असस्पतालोंमें दक्ष और जिम्मेदार तकनीकी कर्मचारियोंको लगाया जाना चाहिए। अस्पतालोंमें आये दिन आगजनीकी घटनाएं देखनेको मिलती हैं। इसका मुख्य कारण लापरवाही ही है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। आये दिन अस्पतालोंमें आग लगनेकी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। अस्पतालमें मरीज जीवन बचाने आते हैं। ऐसे संवेदनशील स्थानोंपर प्रशासनको हमेशा सजग रहना होगा। नियमित रूपसे निगरानी रखनी होगी। सरकारको अस्पतालोंके लिए विस्तृत गाइड लाइन जारी करनी चाहिए। जहां भी खामियां पायी जाती हैं तो उस अस्पतालका लाइसेंस रद कर देना चाहिए। अस्पतालोंमें लगातार आग लगनेकी घटनाएं हो रही हैं। लापरवाहीपर कड़ी सजा हो, सब अपनी जिम्मेदारी समझें। जिला प्रशासनको भी अस्पतालोंका औचक निरीक्षण कर वहांकी खामियोंको दूर करनेका प्रयास करना चाहिए।

अस्पतालोंमें आग लगनेकी बढ़ती घटनाओंके लिए शत-प्रतिशत भ्रष्टïाचार जिम्मेदार है। भ्रष्टïाचारके प्रति सरकारोंका उदासीन रवैया है। इसके कारण ही लापरवाही बरतनेवाले बेखौफ रहते हैं। सरकारको चाहिए कि वह प्रशासनिक व्यवस्थामें सुधार करते हुए मुस्तैदी दिखाये और दोषी अधिकारियों और कर्मचारियोंपर सख्त काररवाई करे। इसके अलावा कई बार स्टाफकी कमी होने र भी ऐसे गंभीर परिणाम देखनेको मिलते हैं। सरकारको इस दिशामें पर्याप्त सुधारकी जरूरत है। किसी भी विभागकी प्रशासनिक व्यवस्थाके अधिकारी और कर्मचारी यदि मानवीय संवेदनाओंको दृष्टिïगत रखते हुए यदि अपनी जिम्मेदारी निभायंगे तथा कर्मको पूजा मानकर कार्य करेंगे तो निश्चित रूपसे इस तरहकी घटनाओंसे निजात पायी जा सकती है। अब न चेते तो इस प्रकारकी घटनाओंकी पुनरावृत्ति होनेसे कोई रोक नहीं सकता है।