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अहमदाबाद ब्लास्ट केस में फैसला: 2008 में सिलसिलेवार बम धमाकों से दहल गया था शहर


अहमदाबाद, । आज से 13 साल पहले 2008 में हुए सिलसिलेबार बम धमाकों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। आज अहमदाबाद की विशेष अदालत ने इस मामले के 49 दोषियों के लिए सजा का ऐलान करते हुए 38 को फांसी और 11 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इस घटना में 56 लोगों की मौत हुई थी, साथ ही 200 लोग घायल हो गए थे। आइए आपको बताते हैं उस काले दिन की डरावनी कहानी और उसके बाद से अब तक क्या हुआ……

26 जुलाई 2008 का वो मनहूस दिन

शाम के समय बाजार गुलजार थे और लोग अपने दैनिक जीवन में व्यस्त थे। अगले ही पल आने वाले खतरे से हर कोई अनजान था। शाम के 6:30 बजे होंगे जब बाजार में अचानक जोरदार धमाका हुआ, लोग सहम गए वो कुछ समझ पाते कि तभी एक के बाद एक लगातार 21 धमाके हुए। 45 मिनट में सब कुछ तबाह हो गया, 56 लोग मारे गए, 260 लोग जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे, और जो बच गए वे मृत्यु के भयानक दृश्य और भयानक दास्तां के सामने थे जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

धमाके के बाद गुजरात की सूरत पुलिस ने 28 जुलाई से 31 जुलाई 2008 के बीच शहर के अलग-अलग इलाकों से 29 बम बरामद किए थे। ये धमाके भीड़-भाड़ वाली जगहों पर दहशत फैलाने के इरादे से किए गए थे। विस्फोट से कुछ मिनट पहले, टेलीविजन चैनलों और मीडिया को कथित तौर पर ‘इंडियन मुजाहिदीन’ द्वारा विस्फोटों की चेतावनी का एक ई-मेल प्राप्त हुआ था। गुजरात पुलिस के सामने चुनौती बहुत बड़ी थी, क्योंकि इसी अवधि के दौरान आतंकवादी समूह ‘इंडियन मुजाहिदीन’ द्वारा हस्ताक्षरित सीरियल धमाकों की कई घटनाओं का पता नहीं चला था, जिसमें बेंगलुरु, जयपुर, मुंबई, वाराणसी (वाराणसी) में विस्फोट शामिल थे। गुजरात में हुए इन धमाकों के मामलों की जांच क्राइम ब्रांच के पुलिस कमिश्नर आशीष भाटिया की अध्यक्षता में अहमदाबाद सिटी की क्राइम ब्रांच की विशेष टीमों को सौंपी गई।

विशेष जांच दल का हुआ गठन

अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाकों में बेगुनाह लोगों की जान चली गई थी। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने न केवल गुजरात से बल्कि देश से आतंकवादी गतिविधियों को समाप्त करने पर विचार किया। इस मामले में इन आतंकवादियों को गिरफ्तार करने के लिए गुजरात सरकार के नेतृत्व में एक विशेष पुलिस दल का गठन किया गया था। तत्कालीन जेसीपी क्राइम के नेतृत्व में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की एक विशेष टीम का गठन किया गया था। अभय चुडासमा (डीसीपी क्राइम) और हिमांशु शुक्ला (एएसपी हिम्मतनगर) इस टीम का हिस्सा थे। इन मामलों की जांच तत्कालीन डीएसपी राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, उषा राडा और वीआर टोलिया को सौंपी गई थी। अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की इस विशेष टीम ने 19 दिनों में इस मामले का पर्दाफाश किया और 15 अगस्त 2008 को पहली गिरफ्तारी की।

11 लोगों को गिरफ्तार के बाद खुलने लगी जांच की परतें

15 अगस्त 2008 को गुजरात पुलिस ने इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन की साजिश का खुलासा करते हुए 11 लोगों को गिरफ्तार किया। सिमी के तत्कालीन सदस्यों ने पाकिस्तान और अंडरवर्ल्ड में मौजूद एजेंसियों की मदद से भारत में सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया था। जांच में आगे खुलासा हुआ कि अहमदाबाद धमाकों की योजना बना रहे इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों ने मई 2008 के दूसरे सप्ताह में अहमदाबाद के वटवा इलाके में एक मकान किराए पर लिया था। इसे अहमदाबाद निवासी जाहिद शेख ने किराए पर लिया था। घर को मुख्यालय के रूप में इस्तेमाल किया गया था जहां मुफ्ती अबू बशीर और मोहम्मद कयामुद्दीन अब्दुल सुभान उर्फ ​​तौकीर सहित अन्य सदस्य विस्फोट की योजना बनाने और उसे अंजाम देने के लिए रुके थे। विस्फोट से एक दिन पहले 25 जुलाई 2008 को घर को खाली करा लिया गया था। जांच में सामने आया कि 40 मुस्लिम लड़के, जिनमें से 23 गुजरात के थे, सभी ने मई 2008 में मध्य गुजरात में प्रशिक्षण लिया था। इन विस्फोटों में पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में आईएसआई की संलिप्तता के साक्ष्य भी मिले थे। पुलिस का मानना ​​था कि 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के जवाब में आईएम के आतंकियों ने इन धमाकों को अंजाम दिया था।

साइकिल के टिफिन बाक्स में रखे थे अधिकतर बम

ज्यादातर बम साइकिल पर टिफिन बाक्स में रखे गए थे। एलजी और सिविल अस्पतालों में गैस सिलेंडर से भरे वाहनों में बम रखे थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ सकें। सभी बम टाइमर सेट किए गए थे। इनमें अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था। अहमदाबाद सीरियल बम धमाकों के मामलों की सुनवाई और सूरत से बमों की बरामदगी को अहमदाबाद शहर के अतिरिक्त जिला सत्र न्यायालय के विशेष न्यायालय में एक साथ लिया गया। फैसला 1 फरवरी, 2022 को विशेष अदालत में सुनाया जाना था, लेकिन जज के कोरोना से संक्रमित होने के कारण 8 फरवरी को फैसला सुनाया गया।

82 आरोपित गिरफ्तार, मुकदमा आगे बढ़ा

इस केस में 82 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था और दो की मौत हो गई थी। चारों के खिलाफ अभी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। कुल 76 आरोपियों की सुनवाई हो चुकी है। तीन के खिलाफ आरोप अभी दायर किए जाने बाकी हैं जबकि 66 पर सुनवाई हो चुकी है। इन मामलों में गिरफ्तार किए गए कुल आरोपियों में से नावेद नईमुद्दीन कादरी को मानसिक बीमारी के आधार पर जमानत पर रिहा कर दिया गया है और अयाज रजाकमिया सैय्यद मामले में सार्वजनिक गवाह बन गए हैं, जिन्हें गुजरात उच्च न्यायालय ने जमानत मिल गई है।

सात जज बदले गए

नवंबर 2009 में शुरू हुए मुकदमे में 1100 लोगों की गवाही हुई। 28 लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। इस मामले की सुनवाई लॉकडाउन के दौरान भी जारी रही। देश में पहली बार एक साथ 49 आरोपियों को आतंकवाद के अपराध में दोषी ठहराया गया है। मामले की पूरी सुनवाई में अब तक सात जज बदले जा चुके थे।