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आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल पर १.६३ करोड़ का हर्जाना


लखनऊ (आससे.)। आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल पर डेढ़ करोड़ से ज्यादा का जुर्माना लगाया गया है। यह जुर्माना बंगला खाली न करने पर लगाया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आईएएस अफसर को नोटिस भेजा है। अभय सिंह राठौड़, लखनऊ उत्तर प्रदेश की चर्चित आईएएस अधिकारी और लखीमपुर खीरी की जिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने सरकारी बंगले में देर तक कब्जा बनाए रखने के आरोप में 1.63 करोड़ रुपये का हर्जाना लगाने का नोटिस भेजा है। यह बंगला उन्हें 2015 में केंद्रीय कृषि मंत्री की विशेष कार्य अधिकारी के रूप में आईएआरआई पूसा रोड कैंपस, दिल्ली से आवंटित किया गया था। मिली जानकारी के मुताबिक, आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल ने बंगला आवंटन की अवधि समाप्त होने के बाद भी खाली नहीं किया। उनका कहना है कि उन्होंने माता-पिता के इलाज और सरकारी अनुमति लेकर बंगले में रुकने की आवश्यकता महसूस की। इस बीच आईएआरआई ने लगातार बंगला खाली करने का अनुरोध किया, लेकिन बंगला फरवरी 2025 तक दुर्गा शक्ति नागपाल के कब्जे में रहा, जबकि ढ्ढ्रक्रढ्ढ के नियमों के अनुसार, आवंटन अवधि के दौरान बंगले का किराया 6,600 रुपये प्रति माह था।आवंटन समाप्त होने के बाद कब्जा बनाए रखने पर हर्जाना लगातार बढ़ा। पहले महीने का हर्जाना 92,000 रुपये तय हुआ, दूसरे महीने 1.02 लाख रुपये, तीसरे महीने 1.10 लाख रुपये, चौथे महीने 1.28 लाख रुपये, पांचवें महीने 1.65 लाख रुपये, छठे महीने 2.39 लाख रुपये और आठवें महीने से हर माह 4.60 लाख रुपये के हिसाब से जुर्माना बढ़ता गया। इस हिसाब से मई 2022 से फरवरी 2025 तक कुल 1.63 करोड़ रुपये का हर्जाना तय हुआ।एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्गा शक्ति नागपाल का कहना है कि उन्होंने जुर्माने की माफी के लिए राज्य सरकार के माध्यम से अनुरोध दिल्ली सरकार को भेजा है और यह विचाराधीन है। नागपाल 2010 बैच की आईएएस अधिकारी हैं और पहले भी सुर्खियों में रही हैं। 2013 में नोएडा में बालू माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई और मस्जिद की दीवार गिराने के मामले में उन्हें निलंबित किया गया था। बाद में उनके पति और अन्य माध्यमों से अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद उनका निलंबन रद कर दिया गया।2019 में उनका ट्रांसफर वाणिज्य मंत्रालय में हो गया और इसके बाद ढ्ढ्रक्रढ्ढ ने बंगला खाली करने की मांग की। बंगला फरवरी 2025 में खाली किया गया। इस मामले ने सरकारी अधिकारियों के सरकारी आवास के उपयोग और जवाबदेही के नियमों पर एक बार फिर चर्चा पैदा कर दी है।