नई दिल्ली। बिहार में एनडीए की नई सरकार बन चुकी है। बदले हालात में कांग्रेस ने नीतीश को खलनायक के रूप में परिभाषित किया है, लेकिन इसके लिए अंदर की राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं है जिसे पढ़ना अपेक्षित और समसामयिक होगा। विपक्षी एकता की पहल नीतीश ने ही की थी और अंत का प्रारंभ भी उन्होंने ही किया है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे चाहे जो आरोप लगाएं, मगर सच्चाई यह भी है कि विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए के बिहार में बिखराव के लिए राजद से ज्यादा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। उसने प्रत्येक कदम पर जदयू समेत तमाम क्षेत्रीय दलों की अनदेखी की।
….आखिर यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। शहर बदल-बदल कर कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में संयुक्त विपक्ष की पांच बैठकें कीं मगर नतीजा सिफर ही रहा। न सीटें बंटीं और न ही साझा घोषणा पत्र पर काम आगे बढ़ा। नीतीश कुमार की एक बात नहीं मानी गई।
कांग्रेस की नीयत में प्रारंभ से ही खोट था: जदयू
विपक्षी गठबंधन का उन्होंने आइएनडीआइए के बदले भारत नाम सुझाया मगर उसे खारिज कर दिया गया। बिहार की तरह राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार गणना कराने का जिक्र तक करना भी जरूरी नहीं समझा गया।
दरअसल, विपक्षी एकता के प्रथम प्रयास के साथ-साथ बिखराव का प्लॉट भी तैयार होता गया। जदयू का आरोप है कि कांग्रेस की नीयत में प्रारंभ से ही खोट था। तभी तो पटना में गत वर्ष 13 जून को प्रस्तावित संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक में राहुल गांधी एवं खरगे ने जाने से आनाकानी की तो इसे 23 जून करना पड़ा।
कांग्रेस पर लगा आइएनडीआइए को हड़पने का आरोप
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने खरगे के आरोपों का उन्हीं की शैली में जवाब देते हुए कांग्रेस पर आइएनडीआइए को हड़पने का आरोप लगाया। इस क्रम में नीतीश के प्रयासों का जिक्र भी जरूरी हो जाता है।
नीतीश कुमार की मेहनत पर कांग्रेस ने फेरा पानी
बिहार में भाजपा का साथ छोड़कर नीतीश ने 10 अगस्त 2022 को राजद व कांग्रेस समेत सात दलों की सरकार बनाई थी और उसी दिन संकेत दिया था कि कांग्रेस को साथ लेकर विरोधी दलों का मोर्चा बनाएंगे।
कांग्रेस को अलग करके तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटे क्षेत्रीय दलों से नीतीश ने देवीलाल की जयंती पर हरियाणा के फतेहाबाद में 25 सितंबर 2022 को हाथ जोड़कर आग्रह किया था कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं। उसी दिन उन्होंने लालू के साथ दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की और विपक्षी एकता का सूत्रपात किया।
इसके बाद उन्होंने घूम-घूम कर क्षेत्रीय दलों को एक करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया। उन्होंने केसीआर के तीसरे मोर्चे के प्रयासों पर पानी फेर दिया परंतु कांग्रेस ने नीतीश को इस लायक भी नहीं समझा कि उन्हें संयोजक बना दे या कोई जिम्मेदारी सौंप दे। राहुल का वह बयान भी नीतीश को चुभता रहा, जिसे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के प्रथम चरण में क्षेत्रीय दलों के बारे में दिया था। राहुल ने कहा था कि क्षेत्रीय दलों के पास कोई विचारधारा नहीं है।