सम्पादकीय

आत्मनिर्भरताकी ओर बढ़ते कदम


राजेश माहेश्वरी
देशके डाक्टरों, वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओंने रात-दिन एक करके वैक्सीनके रूपमें एक विशेष उपहार देश और दुनियाको दिया है। वैक्सीनको मंजूरी मिलनेके ऐलानके बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीने ट्वीट कर इसपर खुशी जाहिर करते हुए लिखा कि ‘आज हर भारतीयको गर्व होगा क्योंकि जिन दोनों टीकोंको मंजूरी मिली है, वह भारतमें ही बने हैं। यह बात इस चीजको भी दर्शाती है कि हमारे वैज्ञानिक आत्मनिर्भर भारतके सपनेको पूरा करनेके लिए कितने उत्सुक हैं।‘ अब सीरम इंस्टीट्यूटके ‘कोविशील्ड’ और भारत बायोटेक-आईसीएमआरके ‘कोवैक्सीन’ के जरिये देशसे कोरोनाका सफाया होगा। पहले चरणमें जुलाईतक ३० करोड़ लोगोंको टीकाकरणका लाभ मिल सकेगा। इसमें सरकारी एवं निजी चिकित्साकर्मियों, फ्रंटलाइन वॉरियर्स, बुजुर्गों एवं बीमारोंको प्राथमिकता दी जायगी। फिलहाल ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, चीनसे लेकर इसरायल, बहरीन, सऊदी अरब सरीखे देशोंमें टीकाकरणकी प्रक्रिया जारी है। भारतकी गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीनके दुनियामें सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर्समें होती है। देशमें वैक्सीन बनानेवाली आधा दर्जनसे ज्यादा बड़ी कम्पनियां हैं।
इसके अलावा कई छोटी कम्पनियां भी वैक्सीन बनाती हैं। यह कम्पनियां पोलियो, मैनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी- मीजल्स, मंप्स और रूबेला समेत दूसरी बीमारियोंके लिए वैक्सीन बनाती हैं। इन कम्पनियोंमेंसे एक सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया है। वैक्सीनके डोजके उत्पादन और दुनियाभरमें बिक्रीके लिहाजसे यह दुनियाकी सबसे बड़ी वैक्सीन कम्पनी है। ५३ साल पुरानी यह कम्पनी हर साल १.५ अरब डोज बनाती है। कम्पनीके दो बड़े प्लांट पुणेमें हैं। हालांकि कम्पनीके नीदरलैंड्स और चेक रिपब्लिकमें भी छोटे प्लांट्स हैं। इस कम्पनीमें करीब ७,००० लोग काम करते हैं। कम्पनी १६५ देशोंको कोई बीस तरहकी वैक्सीनकी सप्लाई करती है। बनायी जानेवाली कुल वैक्सीनका करीब ८० फीसदी हिस्सा निर्यात किया जाता है। इनकी कीमत औसतन ५० सेंट प्रति डोज होती है। इस तरहसे यह दुनियाकी कुछ सबसे सस्ती वैक्सीन बेचनेवाली कम्पनियोंमें है। सीरमकी ख्याति यह है कि वह दुनियाके करीब ७० फीसदी टीकोंका उत्पादन करता है। कमोबेश बच्चोंके लिए बननेवाले ६० फीसदीसे अधिक टीकोंका उत्पादन सीरममें ही किया जाता है। सीरम इंस्टीट्यूटने अभीतक पांच करोड़ कोविशील्ड वैक्सीन तैयार कर ली है।
भारतमें ही नौ ऐसे टीके हैं, जिनपर इनसानी परीक्षण तीसरे चरणमें है अथवा किया जा चुका है। सिर्फ आंकड़ोंका सिलसिलेवार संकलन किया जाना शेष है। कांग्रेस नेता शशि थरूरने ट्वीटके जरिये भारत बायोटेक एवं इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर द्वारा मिलकर तैयार कोवैक्सीनपर सवाल खड़े किये हैं। उनकी दलील है कि इस वैक्सीनके तीसरे चरणके ट्रायलके परिणाम सार्वजनिक नहीं किये गये हैं, जिससे वैक्सीनको लेकर सवाल खड़े किये जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि रूस एवं चीनने तीसरे चरणके ट्रायलके परिणाम सामने आये बिना ही अपने यहां वैक्सीनेशनको मंजूरी दी है। इसके बाद कांग्रेसी नेता जयराम रमेश और सपा प्रमुख अखिलेश यादवने भी कोवैक्सीनको लेकर सवाल खड़े किये हैं। विपक्षी नेताओंने अपनी बयानबाजीसे आम जनमानसमें भ्रमकी स्थिति पैदा करनेकी कोशिश की है। गौरतलब है कि पल्स-पोलियो बूंदोंका विरोध पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नाइजीरिया और इंडोनेशिया आदि देशोंमें आज भी किया जा रहा है। भारतमें भी एक कट्टरपंथी तबकेने विरोध किया था, लेकिन पोलियो ऑपरेशन इतना कामयाब रहा कि २०११ के बादसे पोलियोका एक भी केस सामने नहीं आया है। विश्व स्वास्थ्य संघटन २०१४ में भारतको ‘पोलियो-मुक्तÓ देश घोषित कर चुका है। सरकार और प्रशासन सतर्क हैं। विपक्षके कुतर्कों, तथ्यहीन बयानबाजीका माकूल जवाब उचित फोरमसे सरकार और प्रशासन दे रहा है। डाक्टर्स इन टीकोंको सुरक्षित और प्रभावकारी मान रहे हैं। विशेषज्ञोंके अनुसार इस वैक्सीनके विकासमें पर्याप्त रिसर्चवर्क और प्रयोग किये गये हैं।
अब करोड़ों देशवासियोंको इस वैक्सीनकी डोज दी जायगी तो टीकेका असर और सुरक्षासे जुड़े सवाल भी स्पष्टï हो जायंगे। एम्सके पूर्व निदेशक डाक्टर एमसी मिश्रके मुताबिक, वैक्सीन बनानेमें नौ महीनेतकका समय गया है। इस दौरान सुरक्षाकी सभी शर्तोंको पूरा किया जा रहा है। हर वैक्सीनमें कुछ न कुछ साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन कोरोनाकी वैक्सीनमें अबतक ऐसा कोई खतरा सामने नहीं आया है। बेशक भारतकी आबादी और विविधताके मद्देनजर कोरोनाका टीकाकरण भी एक गम्भीर चुनौती होगा, क्योंकि देशमें सवाल उठानेवाले और आशंकाएं जतानेवाले मूढ़ लोगोंकी संख्या भी कम नहीं है। भारतमें चेचक, पोलियो, रुबेला, खसरा, काली खांसी, टेटनेस, हेपेटाइटिस-बी आदि १२ बीमारियोंके टीकाकरण औसतन हर साल किये जाते हैं। विरोध पोलियो और चेचक सरीखे टीकोंका भी किया गया था, जिन्होंने एक पूरी पीढ़ीको विकलांग होने और अंतत: मौतसे बचाया था। कोरोना वायरस महामारी की घातक, जानलेवा मार हम झेल चुके हैं। डेढ़ लाखसे अधिक जानें यह बीमारी अबतक ले चुकी है। सरकार देशमें वैक्सीनेशनकी तैयारियां पूरी कर चुकी है सरकार। सभी राज्योंमें वैक्सीन पहुंचानेसे लेकर स्टोरेज और वितरणतककी उचित व्यवस्था। ७१९ जिलोंके करीब ५७,००० प्रतिभागियोंकी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है। भारत सरकारने सभी नागरिकोंका टीकाकरण करनेके लिए करीब ५० हजार करोड़ रुपये रुपये (सात अरब डॉलर) की राशिको रखा है। ब्लूमबर्गकी एक रिपोर्टसे इस बातकी जानकारी मिली है। रिपोर्टके मुताबिक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके प्रशासनने १.३ अरबकी आबादीमें प्रति व्यक्ति लगभग छहसे सात डालरकी पूरी कीमतका आकलन किया है।
रिपोर्टके मुताबिक टीका आनेके बाद आपको १४७ रुपये चुकाना पड़ सकता है। हर शख्स को टीकेके दो शॉट लगेंगे। अबतक जिस राशिका प्रावधान किया गया है, वह ३१ मार्चको खत्म हो रहे वर्तमान वित्तीय वर्षके लिए है और इस कामके लिए आगे फंडकी कोई किल्लत नहीं होगी। वैसे सरकारका प्रयास है कि कोविशील्डको मुख्य वैक्सीनके रूपमें इस्तेमाल किया जाये तथा कोवैक्सीनको दूसरी पंक्तिका रक्षा कवच बनाया जाये। तबतक कोवैक्सीनके फाइनल आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हो जायंगे। तमाम तरहकी राजनीति और बयानबाजीके बीच देशमें कोरोना जैसी महामारीसे बचावके लिए वैक्सीनके विकास और उत्पादनको भारतीय वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओंकी महत्वपूर्ण सफलताके रूपमें देखा जाना चाहिए और उनका स्वागत करना चाहिए। आत्मनिर्भर भारतकी दिशामें वैक्सीनका विकास और उत्पादन मीलका पत्थर तो साबित होगा ही, वहीं इस वैक्सीनको बनाकर भारतने दुनियाको अपनी ताकत, मेधा और प्रतिभाकी उज्जवल तस्वीर दिखा दी है।