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उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दल नहीं दुहराएंगे राष्ट्रपति चुनाव में हुई फूट की सियासी चूक


 नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मूर्म की उम्मीदवारी के एनडीए के दांव से लगे सियासी झटके को देखते हुए विपक्षी दल उपराष्ट्रपति चुनाव में अपने उम्मीदवार का एलान करने में जल्दबाजी नहीं करेंगे। विपक्षी दलों के बीच हुई शुरूआती चर्चा के संकेतों से साफ है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष अपना साझा उम्मीदवार उतारेगा मगर इस बार वह एनडीए उम्मीदवार की घोषणा का इंतजार करने के मूड में है। दरअसल विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी के जोर-शोर से हुए एलान के बावजूद विपक्ष के खेमे में पड़ी फूट की कहानी उपराष्ट्रपति चुनाव में दोहराने का जोखिम नहीं लेना चाहता।

विपक्षी दलों के नेताओं की उपराष्ट्रपति चुनाव पर बुधवार को हुई पहली औपचारिक बैठक के दौरान राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के एलान में हुई रणनीतिक चूक को नहीं दुहराए जाने को लेकर आम सहमति दिखी। सूत्रों के अनुसार इस बात पर विपक्षी खेमे के लगभग सभी नेता सहमत हैं कि 2024 की राजनीतिक लड़ाई में भाजपा का पूरी एकजुटता से मुकाबला करने के लिए नतीजे की परवाह किए बिना उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारा जाएगा। लेकिन सभी सत्तापक्ष का उम्मीदवार देखने के बाद। ताकि विपक्ष में बिखराव से हुई किरकिरी दोहरायी न जाए।

देखो और इंतजार करो की रणनीति पर चल रहा है विपक्ष

उपराष्ट्रपति चुनाव में देखो और इंतजार करो की रणनीति पर चलने की जरूरत बताते हुए कई विपक्षी नेताओं ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू फैक्टर के चलते विपक्षी खेमे से चार पार्टियां अब तक एनडीए उम्मीदवार के साथ जाने का फैसला कर चुकी हैं। इसमें जेडीएस, बसपा, झामुमो और अकाली दल शामिल है। इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी के इस मसले पर सस्पेंस को भी विपक्षी खेमा अपने मुफीद नहीं मान रहा है।

उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस और विपक्षी खेमे के कई अन्य दल इसलिए भी ज्यादा सतर्क हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी का ऐलान किए जाने तक बढ़-चढ़कर सक्रिय रही तृणमूल कांग्रेस द्रौपदी मुर्मू की उम्मीवारी के एलान के बाद से धीमी पड़ गई है।

सूत्रों के मुताबिक कुछ विपक्षी नेताओं का तो यह भी मानना था कि ममता बनर्जी ने यह कहकर सिन्हा की उम्मीदवारी की गंभीरता पर खुद ही सवाल उठा दिए कि यदि एनडीए ने मुर्मू के नाम की पहले घोषणा की होती तो वे उनका समर्थन कर सकती थीं।

जाहिर तौर पर विपक्षी खेमा उपराष्ट्रपति चुनाव में ऐसी स्थिति नहीं आने देना चाहता। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ही उपराष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी पर विपक्षी खेमे के तमाम नेताओं से चर्चा का जिम्मा सौंपा है।

कांग्रेस अपने किसी नेता को उम्मीदवार बनाने पर नहीं देगी जोर

हालांकि, सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव की तरह उपराष्ट्रपति पद के लिए भी कांग्रेस अपने किसी नेता को उम्मीदवार बनाने पर जोर नहीं देगी बल्कि इसके विपरीत विपक्षी खेमे के अन्य किसी दल या सामाजिक-बौद्धिक जगत की किसी विशिष्ट शख्सियत को प्रत्याशी बनाने में उसकी ज्यादा दिलचस्पी है। वैसे उपराष्ट्रपति चुनाव विपक्ष के लिए राजनीतिक मुकाबला करने के संकेत से ज्यादा कुछ नहीं होगा क्योंकि लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के वोटों के आधार पर होने वाले इस चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत है और उसके उम्मीदवार का उपराष्ट्रपति चुना जाना तय है।