पटना

उपेक्षा का शिकार मगध की ऐतिहासिक धरती


      • नवपाषाण काल से लेकर पाल काल तक की संस्कृतियों के पुरावशेष धार्मिक धरोहरों के रूप में यहां है विद्यमान
      • पुरातत्वविद डा. शत्रुध्न दांगी ने बांकेबाजार में खोज की है कई दुर्लभ प्रतिमाएं

 

गया (अक्षय कुमार)। देश को स्वाधीनता मिले आज 75 वर्ष हो रहे हैं। इस उपलक्ष्यमें देश भारतके गौरव की जागरण यात्र अमृत- महोत्सव के रूप में मना रहा है। किन्तु, भारत का विश्व प्रसिद्ध मगध क्षेत्र आज भी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। मगध की धरती ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पुरातात्विक धरोहरों से भरा पड़ा है। विश्व को प्रभावित करने वाली कई सभ्यताएं एवं संस्कृतियांँ यहां पनपीं हैं। नवपाषाण काल से लेकर पाल काल तक की संस्कृतियों के पुरावशेष धार्मिक धरोहरों के रूप में यहां विद्यमान हैं। यह क्षेत्र सुंदरता, विशालता और प्राचीनता के लिए पूरे दक्षिण पूर्व एशिया को गौरवान्वित करता है।

गया और बोधगया से मात्र 50 किलोमीटरकी दूरी पर बसा बांके बाजार जो आज बांकेधाम के नाम से प्रसिद्ध है, वहां अन्वेषण के दौरान पुराविद् डाक्टर शत्रुघ्न दांगी ने 1983 में टंडवा पहाड़ी पर सात घोड़ों पर सवार सूर्य की प्रतिमा, आठ प्रस्तर खंभों से निर्मित सूर्य मंदिर के अवशेष, सूर्य तालाब, गणेश, कार्तिकेय और बुद्ध की प्रतिमा को पहाडी़ पर खोजा है। प्रस्तर चट्टानों से निर्मित इसी पहाड़ी पर शिव मंदिर के अवशेषों को भी खोजा और खुदाई के दौरान उन्होंने हनुमान सन् 47340 के तीन सिक्कों को तथा पहाड़ी की तलहटी में डांगी राव की गढ़ी को खोजा।

कुछ दिन बाद बलथरवा के पास थाड़ी नामक पहाड़ी की एक गुफा में लिपियुक्त बौद्ध स्तूप की अद्भूत हेमाटाईट पेंटिंग्स की खोज की, जिससे सम्पूर्ण गया जिला विश्व के पुरातात्विक नक्शे पर महत्वपूर्ण हुआ है। यह स्थल करीब तीन किलोमीटर में फैले महाविहारों के अवशेषों के साथ लगभग 10-12 फीट चौड़े पत्थर और बीच में मिट्टी से भरे दीवारों से आवृत है। इन खोजों के लिए पुरातत्व निदेशालय निदेशक बिहार, बुद्ध गया टेंपल मैनेजमेंट कमिटी बोधगया, जिलाधिकारी गया तथा बिहार के राज्यपाल महोदय ने भी इन्हें प्रशस्ति पत्र दिया और सम्मानित किया है।

इसी पहाड़ी श्रृंखला में आगे चलकर शंकरपुर के पास एक प्राचीन शैलाश्रय में पड़े गोल बड़े चट्टान में भी लाल रंग से चित्रित आदम युगके अवशेषों को खोजा है। इसे ग्रामीण ‘तेलखवा’ नाम से पुकारते हैं। इसकी तुलना बिहार पुरातत्व निदेशालय के निदेशक डा. प्रकाश चरण प्रसाद ने 30,000 वर्ष पुरानी हजारी बाग के इश्को और पिपरवार के पर्वत श्रृंखलाओं में प्राप्त पेंटिंग्स की तुलना से की है। यह स्थल आज भी पूर्ण रूप से उपेक्षित है और देख-रेख के अभाव में अपना अस्तित्व भी अब खोने को है। पर्यटन के दृष्टिकोण से इन सभी स्थलों को सुरक्षित और संरक्षित करने की आवश्यकता है।