सम्पादकीय

एकाग्रता


वी.के. जायसवाल

ईश्वर द्वारा बनायी गयी यह प्राकृतिक दुनिया कुछ इस प्रकारसे रचित है जिसके कण-कणमें उच्चकोटिका विज्ञान समाया हुआ है यही कारण है कि वैज्ञानिक इस दुनियासे दिन-प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखते रहते हैं और नये-नये तरहके शोधोंको संपन्न करते रहते है। प्रत्येक शोधका संबंध आनंदकी अनुभूतिसे संबंधित होता है जिसके लिए एकाग्रताका महत्वपूर्ण स्थान होता है। एकाग्रता प्रयास करनेसे आसानीसे विकसित नहीं हो पाती है, बल्कि यह तभी विकसित होती है जब किसी कार्यको बोधपूर्ण ढंगसे किया जाता है तथा इसके पूर्ण होनेपर आनंदकी प्रबल अनुभूति होने लगती है। कार्यके संपादनमें अनुभव हो रही यही आनंदकी सुखद अनुभूति कार्यके प्रति एकाग्र करनेमें भी मददगार होती है। इस संपूर्ण संसारमें प्रत्येक व्यक्ति प्रकृतिसे अलग-अलग तरहका स्वभाव प्राप्त करता है इस प्रकारसे प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभावके सापेक्ष अलग-अलग ढंगसे ही एकाग्रताकी ओर अग्रसर हो सकता है कुछ लोगोंका स्वभाव पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करनेका अधिक होता है इसलिए ऐसे लोग ऐसा करते हुए अपने स्वभावके अनुसार आसानीसे एकाग्र हो जाते हैं और इसीमें आनंदकी अनुभूति करने लगते हैं वही दूसरे लोग इस प्रकारके भी होते हैं जिनका स्वभाव जीवनमें कुछ ठोस कार्य करने और उससे कुछ प्राप्त करनेसे संबंधित होता है इसलिए अपने स्वभावके अनुसार इस प्रकारके लोग इस प्रकारका कार्य करते ही आनंद अनुभव करने लगते हैं इसीसे ऐसे लोग ऐसे कार्योंको करते हुए आसानीसे एकाग्र हो जाते हैं। वास्तवमें एकाग्रता एक ऐसी शक्ति है जो व्यक्तिको उसकी आंतरिक शक्तिसे जोड़ती है इसी कारण एकाग्रताकी स्थितिमें जब कोई कार्य किया जा रहा होता है तो उसमें आनन्द अपने आप आने लगता है लोगोंको अपने बचपनके दिन अवश्य याद होंगे जब एक बच्चा केवल उस समय आनन्दसे सराबोर होता रहता है जब वह अनावश्यक रूपसे दौड़ते हुए एक तितलीको पकडऩेका प्रयास करता है या जब वह क्रिकेट खेल रहा होता है तब वह और सब कुछ भूल जाता है उसका सारा ध्यान तितली पकडऩे या क्रिकेट खेलनेमें लगा रहता है ऐसी स्थितिमें यह बच्चा एकाग्र भावमें जाकर अपने कार्योंको संपन्न करता है। एकाग्रताका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि हम चुपचाप खाली बैठ जायं और अपने आपको विचारोंसे मुक्त कर ले या कुछ न करें। एकाग्रताका तात्पर्य एकाग्र होकर कार्यको संपन्न करनेसे है जो उस कार्यके प्रति रुचिको उत्पन्न करता है और जब कार्यके प्रति रुचि उत्पन्न होती है तो ऐसा कार्य न केवल आसानीसे संपन्न हो जाता है, बल्कि इसको संपन्न करते समय और संपन्न होनेके बाद दोनों ही स्थितियोंमें अभूतपूर्व आनन्दकी अनुभूति होती रहती है। हम जीवनमें जब-जब जिस प्रकारके आनन्दकी अनुभूति करते हैं वह आनन्द हमारे हृदयमें समा जाता है और छोटे-छोटे टुकड़ोंके सामान हृदयकी गहराइयोंमें इधर-उधर पड़ा रहता है जिसका अहसास हम नहीं कर पाते हैं वास्तवमें एकाग्रता एक ऐसी शक्ति होती है जो हृदयमें पड़े हुए आनंदके पुराने टुकड़ोंको आपसमें जोड़ देती है इसीसे एकाग्रताके वास्तविक क्षणोंमें सुखद अनुभूति होती है।