सम्पादकीय

सख्त कदम जरूरी


देशमें कोरोना संक्रमणके मामले जिस तेज गतिसे बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए अब सर्वाधिक प्रभावित दस राज्योंको सख्त कदम उठाने की जरूरत है क्योंकि ८०.८ प्रतिशत मामले दस राज्योंमें ही सामने आये हैं। इन राज्योंमें महाराष्टï्र, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और केरल शामिल हैं, जहां प्रतिदिन मामले लगातार बढ़ रहे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार बुधवार को पिछले २४ घण्टेमें एक लाख ८५ हजार २४८ संक्रमणके नये मामले सामने आये और १०२५ लोगों की मृत्यु हो गयी। भारतमें कोरोना संक्रमितोंकी संख्या बढ़कर एक करोड़ ३८ लाख ७० हजार ७३१ हो गयी है। कोरोनाकी भयावह स्थितिको देखते हुए महाराष्टï्र सरकारने १४ अपै्रल को रात आठ बजे से अगले १५ दिनोंतक के लिए राज्यव्यापी कफ्र्यू लगा दिया है। महाराष्टï्र सरकारने इसे ‘बे्रक द चेनÓ अभियानका नाम दिया है। राज्यमें केवल अत्यावश्यक सेवाएं जारी रहेगी और लाकडाउन जैसी पाबंदिया लागू रहेगी। महाराष्टï्र सरकारका यह कदम उचित है। इससे संक्रमणका प्रसार रोकनेमें सहायता मिलेगी। उत्तर प्रदेशमें भी कोरोना बेकाबू हो गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालयने राज्य सरकारको सुझाव दिया है कि वह ज्यादे संक्रमित शहरोंमें लाकडाउनके बारेमें सोचे। रात्रि कफ्र्यू संक्रमणका प्रसार रोकनेके लिए छोटा कदम है। उच्च न्यायालयने यह भी हिदायत दी है कि सड़कपर कोई भी व्यक्ति बिना मास्क दिखायी नहीं दे अन्यथा पुलिसके खिलाफ अवमानना की काररवाई की जायगी। सबसे ज्यादे प्रभावित राज्योंकी सरकारोंको सख्त कदम उठानेके बारेमें यथाशीघ्र निर्णय करनेकी जरूरत है। इसमें विलम्ब नहीं होना चाहिए क्योंकि लापरवाह जनता संक्रमणको बढ़ानेमें अपना सक्रिय योगदान कर रही है। इन सभी राज्योंमें अस्पतालोंकी व्यवस्था भी ठीक नहीं है। वहां आवश्यक संसाधनोंकी कमी है जिससे जनताको काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। अस्पतालोंके सन्दर्भमें अनेक शिकायतें मिल रही हैं। इससे कोरोनाके खिलाफ जंगमें शिथिलता आ रही है। टीकाकरणका अभियान भी तेज चलना चाहिए और सभी केन्द्रोंपर पर्याप्त संख्यामें स्वास्थ्यकर्मियों और टीकेकी उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। निजी क्षेत्रके उन अस्पतालोंके खिलाफ सख्त कदम उठाये जाय जो सेवासे अधिक शोषणको महत्व देते हैं। संकटकी इस घड़ीमें सभी को सेवा और संयमकी भावनासे कार्य करनेकी जरूरत है तभी कोरोनाको परास्त किया जा सकता है।

निजताकी सुरक्षा

निजताकी सुरक्षा लोगोंका मौलिक अधिकार है। इसका दुरुपयोग देशकी सुरक्षाके लिए गंभीर खतरा है ही साथ ही लोगोंकी गोपनीयतामें सेंध लगाने वाला है। व्हाट्सएप की नयी निजता नीति लोगोंके मौलिक अधिकारका हनन करने वाली है। नयी नीतिके तहत वाणिज्यिक विज्ञापन और मार्केटिंग के लिए फेसबुक और इसकी सभी समूह कम्पनियोंके साथ व्यक्तिगत डेटा साझा करना है, ताकि व्यक्तिगत डेटाको किसी तीसरे पक्षको दिया जा सके। किसी कारपोरेट या बड़ी विदेशी कम्पनीको भारतके लोगोंके कंधेपर बन्दूक रखकर अनैतिक तरीकेसे लाभ कमानेके लिए अप्रिय नीतियोंको लागू करनेकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यहीं कारण है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने दिल्ली उच्च न्यायालयमें कहा है कि विज्ञापनके लिए अपने उपभोक्ताओंका डाटा जमा करना और उनका इस्तेमाल करना पूरी तरह गलत है। इसीलिए व्हाट्सएपकी नयी निजता नीतिमें प्रतिस्पर्धा पहलूकी जांचका आदेश दिया गया है। हालांकि फेसबुक और व्हाट्सएप की ओर से पेश अधिवक्ताने सीसीआईके आदेश को अनुचित बताते हुए कहा है कि चंूकि यह मामला शीर्ष न्यायालयमें विचारधीन है तो सीसीआईको हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उच्च न्यायालयने दोनों पक्षोंको सुननेके बाद हालांकि फैसला सुरक्षित रख लिया है, लेकिन व्हाट्सएप ने जो दृष्टिïकोण अपनाया है वह मनमाना अनुचित और असंवैधानिक है। इसे भारत जैसे लोकतांत्रिक देशमें स्वीकार नहीं किया जा सकता है। व्हाट्सएप व्यक्तिगत उपयोगकर्ताका डेटा धोखेसे इक_ïा कर रहा है जो भारतीयोंके मौलिक अधिकारका हनन है। व्हाट्सएप जैसी प्रौद्योगिकी कम्पनियोंको संचालित करनेके लिए केन्द्र सरकारको कड़े दिशा निर्देशोंके साथ ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो नागरिकों और व्यवसायोंकी गोपनीयताकी रक्षा करें। व्हाट्सएप और फेसबुककी मनमानी पर अंकुश लगानेके लिए सरकारको सख्त कदम उठानेकी जरूरत है।