सम्पादकीय

दिग्भ्रमित दौरमें दलित राजनीति


 प्रवीण गुगनानी 

भारतीय दलित राजनीति वर्तमान समयमें सर्वाधिक दिग्भ्रमित दौरमें है। दुर्भाग्यसे वर्तमान समय ही इतिहासका वह संधिकाल या संक्रमणकाल है जबकि दलित राजनीतिको एक दिशाकी सर्वाधिक आवश्यकता है। भीम मीमके नामका सामाजिक जहर बाबासाहेब अम्बेडकरके समूचे चिंतनको लील रहा है। भीम मीमके इतिहासको देखना, पढऩा एवं समझना आजके अनसुचित जाति समाजकी सबसे बड़ी आवश्यकता हो गयी है। स्वतंत्र भारतकी राजनीति एवं समाजको जिन दो व्यक्तियोंने सर्वाधिक प्रभावित किया है वह हैं पहले गांधीजी एवं दूजे भीमराव रामजी अंबेडकर यानी बाबासाहेब। इनमेंसे बाबासाहेबकी भारतीय राजनीतिमें बाबासाहेबकी कांग्रेस द्वारा घोर उपेक्षाके बाद भी उनकी स्थापनाका इतिहास पढऩा हो तो एक और व्यक्तिका उल्लेख आवश्यक हो जाता है। वह व्यक्ति है दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल। कांग्रेसकी घनघोर और अटाटूट उपेक्षाके शिकार जोगेंद्रनाथ मंडलने यदि स्वतंत्रता पूर्वकी भारतीय राजनीतिमें बाबासाहेबको सफलतापूर्वक स्थापित न किया होता तो आज भारतमें दलित चिंतनका स्वरूप आमूलचूल भिन्न होता। इसके आगे आज यदि हम नागरिकता संशोधन कानूनके सामाजिक मंथनका अध्ययन, मनन करें तो दो व्यक्तित्वोंका स्मरण आवश्यक हो जाता है पहले जोगेंद्रनाथ मंडल और दूजे बाबासाहेब। इन दोनों महानुभावोंने नागरिकता संशोधन कानून एवं पाकिस्तानमें बसे अल्पसंख्यक हिन्दुओंको भारतीय नागरिकता देनेके कानूनके महत्व एवं आवश्यकताको दशकों पूर्व पहचान लिया था।

प्रारम्भसे ही दलित चिंतनको उपेक्षाकी दृष्टिसे देखनेवाली कांग्रेसकी अंदरूनी राजनीतिने स्वभावत: ही प्रारम्भमें दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल एवं बाबा साहेब अंबेडकरकी घोर उपेक्षा की थी। कांग्रेसने जब बाबासाहेबके प्रति बेहद अपमानजनक रवैया अपनाते हुए संविधान सभामें भेजे गये प्रारंभिक २९६ सदस्योंमें अंबेडकरको जगह नहीं दी थी तब जोगेंद्रनाथ मंडलने अंबेडकर जीको संविधान सभामें सम्मिलित करनेकी भूमिका बनायी थी। जब कांग्रेसने संविधान सभामें अंबेडकर जीको जानेसे रोकनेके लिए तमाम प्रकारके प्रपंच करना प्रारम्भ किये तब मंडलने बंगालके खुलना-जैसोरसे अपनी सीट खाली करके बाबा साहबको चुनाव जितवाकर संविधान सभाके लिए निर्वाचित कराया था और समूची कांग्रेसको चौंकाते छकाते हुए भारतीय राजनीतिमें एक नया अध्याय प्रारम्भ किया था। विभाजनके विषयमें यह तय हुआ था कि जिन क्षेत्रोंमें हिंदू जनसंख्या ५१ प्रतिशतसे अधिक है वह क्षेत्र भारतमें सम्मिलित किये जायेंगे। इसके बाद भी कांग्रेसने तब हद दर्जेकी गलती करते हुए बाबा साहेबको संविधान सभामें अप्रासंगिक करने हेतु बंगालके खुलना-जैसोरको ७१ प्रतिशत हिंदूबहुलवाला क्षेत्र होनेके बाद भी पाकिस्तानको सौंप दिया और तब बाबासाहेब तकनीकी तौरपर पाकिस्तानी संविधान सभाके सदस्य माने गये थे। बाबासाहेबने इसका विरोध किया, जिसके बाद ब्रिटिश प्रधान मंत्रीके हस्तक्षेपसे बाबासाहेब बंबई राज्यसे एमएस जयकर द्वारा खाली की गयी सीटसे चुनकर भारतीय संविधान सभामें पहुंच पाये थे। बाबासाहेब प्रारंभसे ही अखंड भारतके पक्षमें थे। उन्होंने बंटवारेके लिए तैयार महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरूके साथ जिन्नाका भी पुरजोर विरोध किया। उनकी पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तानमें इसका पूरा विवरण है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि मुस्लिम तुष्टीकरणकी नीति के चलते कांग्रेसने देशका बंटवारा कर डाला। बाबासाहेबका यह स्पष्ट मानना था कि जब धार्मिक आधारपर बंटवारा हो चुका है, तब पाकिस्तानमें रहनेवाले हिंदुओंको भारत आ जाना चाहिए। उन्होंने यह यह भी आशंका जतायी थी कि धर्मके आधारपर देशके बंटवारेसे हिंदुओंको गंभीर क्षति पहुंचेगी और ऐसा हुआ भी। जोगेंद्रनाथ मंडलने तब पाकिस्तानी सरकारसे अपने त्यागपत्रमें विस्तृत तौरपर लिखा था कि मंत्री रहते हुए भी वे पाकिस्तानमें दलितोंको मुस्लिमोंके अत्याचारसे नहीं बचा पाये। बंटवारेके बाद पाकिस्तानमें बचे ज्यादातर दलित या तो मार दिये गये या फिर मजबूरीमें उन्होंने धर्मपरिवर्तन कर लिया। अपनी ही हुकूमतमें वह चीखते-चिल्लाते रहे, लेकिन पाकिस्तान सरकार न तो दलित हिंदुओंकी मददके लिए आयी, न ही अन्य अल्पसंख्यक हिंदुओंकी सुरक्षा हेतु उसने कोई कदम उठाया। इस प्रकार देशमें प्रथम मुस्लिम-दलित राजनीतिका प्रयोग हुआ जो कि बेहद असफल एवं निराशाजनक रहा किन्तु यह प्रयोग अब भी यदा-कदा यहां-वहां प्रयुक्त होता रहता है। अपने ही हाथों बनायी गयी इस्लामिक सरकारमें मंडलने जब पाकिस्तानके मुसलमानोंके हाथों निशाना बनाकर दलितोंकी निर्ममतापूर्वक हत्याएं, बलात् धर्मपरिवर्तन और दलित बहन-बेटियोंकी आबरू लुटते देखी तो वह सब कुछ छोड़कर भारत वापस लौट आये और गुमनामीके अंधेरेमें ही उनकी मौत हो गयी। अपने अंतिम क्षणोंमें वह इस प्रयोगपर पछताते रहे, पाकिस्तान जानेका दुख उन्हें सालता रहा। पाकिस्तानके बहुसंख्यक मुस्लिमोंके हाथों लाखों दलितोंके नरसंहारका पश्चाताप उन्हें कचोटता रहा। पश्चाताप इसलिए क्योंकि इनमेंसे बहुतसे दलित परिवार उन्हींकी अपीलपर पाकिस्तानका हिस्सा बननेको तैयार हुए थे।

२०१३ में डा. मनमोहन सिंहकी कांग्रेस सरकारने डा. बाबा साहब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेस नामसे उनके सभी भाषणों एवं लेखनको प्रकाशित किया था। इस पुस्तकके १७वें खंडके पृष्ठ संख्या ३६६ से ३६९ बड़े ही उल्लेखनीय हैं। २७ नवंबर, १९४७ को बाबासाहेबने लिखा कि मुझे पाकिस्तान और हैदराबादकी अनुसूचित जातियोंके लोगोंकी ओरसे असंख्य शिकायतें मिल रही हैं और अनुरोध किया जा रहा है कि उनको दुख और परेशानीसे निकालनेके लिए मैं कुछ करूं। पाकिस्तानसे उन्हें आने नहीं दिया जा रहा है और जबरन उन्हें इस्लाममें परिवर्तित किया जा रहा है। हैदराबादमें भी उन्हें जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है, ताकि मुस्लिम आबादीकी ताकत बढ़ायी जाय। आंबेडकरने लिखा, अनुसूचित जातियोंके लिए जैसी स्थिति भारतमें है वैसी ही पाकिस्तानमें है, वह आगे लिखते हैं, मैं यही कर सकता हूं कि उन सभीको भारत आनेके लिए आमंत्रित करूं। पृष्ठ ३६८ पर बाबासाहेब लिखते हैं कि जिन्हें हिंसाके द्वारा इस्लाम धर्ममें परिवर्तित कर दिया गया है, मैं उनसे कहता हूं कि आप अपने बारेमें यह मत सोचिये कि आप हमारे समुदायसे बाहर हो गये हैं। मैं वादा करता हूं कि यदि वह वापस आते हैं तो उनको अपने समुदायमें सम्मिलित करेंगे और वह उसी तरह हमारे भाई माने जायंगे जैसे धर्मपरिवर्तनके पहले माने जाते थे। बाबासाहेबने १८ दिसंबर, १९४७ को तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरूको एक पत्र में लिखा था कि पाकिस्तान सरकार अनुसूचित जातिके लोगोंको भारत आनेसे रोकनेके लिए हर हथकंडे अपना रही है। मेरी नजरमें इसका कारण यह है कि वह उनसे निम्न स्तरका काम करानेके साथ यह भी चाहती है कि वह भूमिहीन श्रमिकोंके रूपमें उनकी जमीनोंपर काम करें। नेहरू जीसे उन्होंने अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान सरकारसे कहें कि भारत आनेके इच्छुक लोगोंको भारत आनेमें कोई रुकावट पैदा न करे।