सम्पादकीय

पश्चिम बंगालमें तुष्टीकरणकी नीतिसे बेहाल जनता


प्रवीण गुगनानी

बंगालीमें एक कहावत है, डूबे-डूबे झोल खाबा इसी भावार्थकी एक हिंदी कहावत है- ऊंटकी चोरी नेवड़े नेवड़े नहीं हो सकती। दोनों ही कहावतोंका एक-सा अर्थ है कि बड़ी चोरी आज नहीं तो कल पकड़ी ही जायेगी। पश्चिम बंगालमें हिंदू हितोंकी चोरी भी ममता बनर्जीका एक ऐसा ही चोरी थी जिसे पकड़ा भी जाना तय था और उसका दंड मिलना भी तय था। यहां ममता दीदी द्वारा हिंदू हितोंको चोरी करना या बलि चढ़ानेका कार्य डूबे-डूबे झोल खाबाकी शैलीमें नहीं, बल्कि बड़ी ही बेशर्मीसे सीनाजोरी करके किया जा रहा था। चोरी ऊपरसे सीनाजोरी करनेकी ही हद थी जब ममताने उनके द्वारा प्रतिवर्ष कराये जानेवाले एक कार्यक्रममें कहा था, पश्चिम बंगालमें ३१ फीसदी मुस्लिम हैं इन्हें सुरक्षा देना मेरी जिम्मेदारी है और यदि आप इसे तुष्टीकरण कहते हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। यहां उल्लेखनीय है कि ममता दीदी उन्हें केवल सुरक्षा नहीं दे रही थीं, बल्कि मुस्लिमोंको हिन्दुओंके विरुद्ध समय-समयपर भड़का रही थीं और हिन्दुओंको बार-बार चिढ़ा रही थीं। ममता बनर्जी पंडालोंमें दुर्गा पूजा एवं विद्यालयोंमें सरस्वती पूजाको रोक रही थीं। मुहर्रमके कारण दुर्गा विसर्जनकी तिथियां आगे बढ़ायी जा रही थीं। मुस्लिमों हेतु नयी सस्ती, सहज, आसान कर्ज नीति लायी जा रही थी, मुसलमानों हेतु नयी रोजगार नीति लार्य जा रही थी, मदरसोंको धड़ाधड़ मान्यता एवं सहायता दी जा रही थी, इमामों मौलवियोंको भत्ते, मुस्लिमोंको आवास सब्सिडी, आवास भत्ता, फुरफुरा शरीफ डेवलपमेंट अथारिटीके माध्यमसे वित्तीय सहायतासे लाद देना, दो करोड़ बच्चोंको छात्रवृत्ति, मुस्लिमोंको उच्च शिक्षा एवं सरकारी नौकरीमें १७ फीसदी आरक्षण आदि ऐसे कार्य थे जो मुस्लिम तुष्टीकरणके लिए तीव्र गतिसे किये जा रहे थे।

ममता बनर्जीके लिए इस चुनावमें संकट बन चुके अब्बास सिद्दीकी भले ही भाजपासे चिढ़कर कहते हों किंतु कहते अवश्य हैं कि मुहर्रमके कारण दुर्गा विसर्जनकी तिथि आगे बढ़ाये जानेके निर्णय गलत थे। बंगालमें ३५ वर्ष वामपंथका शासन एवं दस वर्ष ममताका शासन वस्तुत: ऐसा शासन था जिसमें रामके इस प्रदेशमें रामका नाम लेना ही गुनाह हो गया था। वामी तो रामके विरोधी थे ही, ममता उनसे भी बड़ी रामविरोधी निकली और चलती गाड़ीसे स्वयं निकलकर जय श्रीरामके नारे लगाते बच्चोंको बड़ी ही निर्लज्जतासे डांटने लगी थीं। बच्चोंको श्रीरामका नारा लगानेपर डांटना एक छोटी किन्तु प्रतीकात्मक बड़ी घटना है जिसके बड़े ही विशाल अर्थ निकलते हैं। अतीव ईश्वरवादी, संस्कृतिनिष्ठ एवं राष्ट्रपे्रमी प्रदेश बंगालमें ३५ वर्षोंतक अनीश्वरवादी एवं संस्कृति विरोधी वामियों एवं दस वर्षोंका ऐसा ही ममताका शासन अपने आपमें आश्चर्यका ही विषय है। ४५ वर्षोंके इस रामविरोधी या यूं कहें हिन्दू विरोधी शासनकालमें भाजपा बंगालमें २०१६ तक एक-एक विधानसभा सीट जितानेको भी तरसती रही थी। इसी मध्य चमत्कार हुआ जब २०१८ के पंचायत चुनावमें भाजपाने प्रतिशत मत लेकर सनसनी फैला दी थी और फिर यहांसे प्रारंभ हुई बंगालमें वामपंथसे रामपंथकी यात्रा जिसका अगला पड़ाव २०१९ के लोकसभा चुनावमें आया और भाजपाको बंगालने जय श्रीराम कहते हुए ४० प्रतिशत मत एवं ४२ मेंसे १८ लोकसभा सीटें दे दी। वर्तमान समयमें जबकि विधानसभा चुनावके पांच चरण संपन्न हो चुके हैं तब बंगालमें पुराने वामपंथी भी एक सुरमें यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि ‘२१ में राम और २६ में वाम’ यानी वर्तमानमें सत्ता ममतासे लेकर भाजपाको दे दो और फिर २०२६ के विधानसभा चुनावमें वाम मोर्चाकी सरकार पुन: ले आओ। आश्चर्यजनक है किंतु यही सत्य है।

बंगालमें मैदानी स्तरपर यह बात सतहसे ऊपर आकर दिख रही है। बंगालमें मृत्युशैयापर पड़े वामपंथका अब यही मंतव्य भी है और नियति भी। सार यह कि ममताको सबक सिखानेका मन बंगालने बना लिया है। यह सब अचानक नहीं हुआ है, मुस्लिम तुष्टीकरणकी ममताकी नीतिने बंगालकी जनताको विवश कर दिया था। भाजपाके घोर विरोधी एवं ममताके समर्थक माने-जानेवाले नोबेल सम्मानित अर्थशास्त्री अमृत्य सेनकी संस्था प्रतीचि ट्रस्टने अपनी २०१६ की रिपोर्ट लिविंग रिएलिटी ऑफ मुस्लिम्स इन वेस्ट बंगालमें कहा गया था कि तृणमूलके प्रभाववाले क्षेत्रोंमें मुसलमानोंकी स्थिति अन्य लोगोंकी अपेक्षा बहुत सुधर गयी है। हावड़ाके पंचपारा मदरसेके बड़े इमामके अनुसार ममता बनर्जीके आनेके बादसे स्थिति बेहतर हुई है। अब बच्चोंको राशन, कपड़ा, किताबें सब कुछ मिलता है। पुरानी सरकारकी तुलनामें इस सरकारने बेहतर काम किया है। हुबलीके एक शख्स मोहम्मद फैसलका कहना है कि ममता बनर्जीने जो काम किया है, उसके बाद दीदीके खिलाफ कोई नहीं जा सकता है। ममता बनर्जीने जो हम लोगोंके लिए किया है, हमारे बच्चोंके लिए किया है, वैसा कभी नहीं हुआ। हम लोग बहुत खुश हैं दीदीके राजमें। दीदीने हम लोगोंका बहुत ध्यान रखा है। एक बात यह भी बड़ी विशेष है कि ममता राजमें बंगाल पुलिसमें भी मुस्लिम नियुक्तिका अनुपात भी बड़े आश्चर्यजनक ढंगसे बढ़ गया है। कम शिक्षित मुस्लिम समाजको अधिक शिक्षित हिंदू समाजकी अपेक्षा अधिक नौकरियां मिलना भला बिना किसी उच्चस्तरीय षड्यंत्रके कैसे संभव है। ममता दीदी द्वारा राज्यकी ९७ प्रतिशत मुस्लिम जनताको ओबीसीमें सम्मिलित कर लिया जाना एक बड़ा सामाजिक अन्याय और असमानता उत्पन्न करनेका कारण है यहां। इन कष्टप्रद एवं संघर्षप्रद परिस्थितियोंमें २०१९ के लोकसभा चुनावके पूर्व यहां भाजपाके चाणक्य अमित शाहने संघटन सुदृढ़ करने हेतु मध्यप्रदेशके कद्दावर नेता एवं हरियाणा चुनावमें प्रभारीके तौरपर स्वयंको सिद्ध कर चुके कैलाश विजयवर्गीयको बंगाल भेजा। कैलाश विजयवर्गीयने भी जैसे इंदौरको छोड़कर बंगालको अपना घर ही बना लिय। अथक परिश्रम, सुदृढ़ योजना, कार्यकर्ताओंके घर-परिवारतक पहुंचना, उनके दु:ख-सुखमें सतत सम्मिलित होना, केंद्र सरकारकी योजनाओंको बंगालमें सुव्यवस्थित रीती-नीतिसे संचालित करना आदि कैलाश विजयवर्गीयकी इस सफल कार्यशैलीकी विशेषताएं रही है। भाजपाके प्रदेश प्रभारी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीपर बंगाली जनताके विश्वासको मतोंमें बदलनेमें सफल होते दिखाई पड़ रहे हैं। इन सब कार्योंसे बंगालमें भाजपाका संघटन नये सिरेसे खड़ा होता चला गया। बंगालमें एक नया राष्ट्रीय भाव भी सम्मिलित होता चला गया और वह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीकी रागमें राग मिलाकर ‘आमार शोनार बांगला’ भारत माताकी जयका भी जयघोष करने लगा। बंगालकी भद्र जनताको ‘खेला होबे’ जैसा असभ्य नारा चिढ़ा रहा है, शोनार बंगलाके लोग कभी खिलंदड़ नहीं रहे हैं वह समूचे भारतको बौद्धिक दिशा देनेमें सक्षम लोग रहे हैं। बंगालके इस विधानसभा चुनावमें बंगालकी जनता शेष राष्ट्रको क्या संदेश देती है यह देखना बड़ा ही रुचिकर एवं अध्ययन-अध्यापनका विषय रहनेवाला है।