सम्पादकीय

देशकी अर्थव्यवस्थाको आक्सीजन देनेवाला बजट


योगेश कुमार गोयल

केन्द्र सरकारके मौजूदा कार्यकालका तीसरा बजट कोरोना महामारीके बीच देशका पहला आम बजट था, जो बतौर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणका तीसरा बजट था। कुल ३४८३२३६ करोड़ रुपयेके खर्चेका यह बजट ऐसे समयमें पेश किया गया, जब देशकी आजादीके बाद भारत पहली बार अधिकारिक तौरपर आर्थिक मंदीके दौरसे गुजर रहा है। २०२१-२२ का यह बजट १९५२ के बाद सबसे खराब अर्थव्यवस्थाकी छायामें पहला बजट था। बजटमें सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारतपर फोकस करनेके अलावा मानव पूंजी नवजीवन संचार, स्वास्थ्य और कल्याण, इंफ्रास्ट्रक्चरको मजबूती देनेकी दिशामें काम, आकांक्षी भारतके लिए समावेशी विकास, इनोवेशन और अनुसंधान एवं विकासको प्राथमिकता दी गयी है।

वित्तमंत्रीने बजटमें प्रत्येक सेक्टरको कुछ न कुछ देनेकी कोशिश की गयी है। ग्रामीण क्षेत्रके विकासके साथ कृषि क्षेत्रपर भी ध्यान दिया गया है। प्रधान मंत्रीके मुताबिक यह बजट सभी राज्योंके विकासपर जोर देनेवाला बजट, जान भी जहान भी बरकरार रखनेवाला बजट, नियम और प्रक्रियाको सरल बनानेवाला बजट है। उनका कहना है कि बजटको पारदर्शी बनाया गया है, जिसमें किसानोंकी आय बढ़ानेपर जोर दिया गया है। बजटमें कई राज्योंमें बुनियादी ढांचा परियोजनाओंकी घोषणा करते हुए पूंजीगत व्ययको पिछले सालकी तुलनामें करीब ३४ फीसदी ज्यादा बढ़ाकर ५.५४ लाख करोड़ और देशका स्वास्थ्य बजट १३७ फीसदी बढ़ाकर ९४ हजारसे २२३८४६ करोड़ रुपये किया गया है तथा कोविड टीकोंपर ३५ हजार करोड़ रुपये खर्च करनेका लक्ष्य है। अर्थव्यवस्थाको रफ्तार देनेके लिए सड़क, परिवहन, रेलवे तथा ऊर्जा जैसे बुनियादी क्षेत्रोंमें ३७ फीसदी ज्यादा बजट देनेकी घोषणा की गयी है। वित्त वर्ष २०२०-२१ के बजटमें सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमोंके लिए ७५७२.२० करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे लेकिन सरकार द्वारा इस बार एमएसएमईके लिए आवंटन दोगुना कर १५७०० करोड़ रुपये कर दिया गया है। स्टार्टअपको टैक्स देनेमें जो शुरुआती छूट दी गयी थी, उसे ३१ मार्च २०२२ तक बढ़ा दिया गया है। प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) तथा अन्य ऋण समर्थन योजनाओंके लिए आवंटन बढ़ाकर १२४९९.७० करोड़ रुपये किया गया है तो चालू वित्त वर्षके लिए २८०० करोड़ रुपये है। चीन सीमापर गतिरोधके बीच रक्षा बजटमें २५ हजार करोड़की वृद्धि हुई है, जिसमें २०७७६ करोड़ आधुनिकीकरणके मदमें बढ़ाये गये हैं। रेलवेके लिए ११००५५ करोड़ रुपयेकी राशि आवंटित की गयी है।

यह बजट पेश करना और सभी वर्गोंका ख्याल रखना वित्तमंत्रीके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि कोरोनाकी वजहसे देशमें लाखों लोगोंकी मौत हो चुकी है और कोरोना कालमें देशके स्वास्थ्य तंत्रकी खस्ताहालीको लेकर बार-बार प्रश्नचिह्नï लगे हैं, देशकी अर्थव्यवस्थाकी स्थिति पूरी तरह डांवाडोल है, सरकारी खजानेमें पैसे नहीं हैं। ऐसेमें अर्थव्यवस्थाको नये पंख देनेके प्रयास करनेके साथ सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाका पुनर्निर्माण करना सरकारके लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि बजट पेश करनेसे पहले ही वित्तमंत्रीने कहा था इस बारका बजट सदीका सबसे बेहतर बजट होगा लेकिन कई वर्गोंको इस बजटसे पूरी तरह निराशा हाथ लगी है। अधिकांश लोगोंका मानना था कि कोरोनाकी मार झेल रही जनताको टैक्स कम करके कुछ राहत देनेका प्रयास किया जायगा लेकिन बजटमें ऐसा कुछ नहीं दिखा। दरअसल टैक्स कम होनेसे ही आम आदमीकी जेबमें पैसा आयगा और उसकी जेबमें पैसा होगा, तभी वह बाजारमें खर्च करेगा, जिससे अर्थव्यवस्थाको गति मिलेगी।

भारत दुनियाकी छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और कोरोनाके दौरमें भारतकी चरमराई अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरीपर लौट भी रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोषके अनुसार वित्त वर्ष २०२१-२२ में भारतकी विकास दर ११ प्रतिशतसे अधिक होनेकी संभावना है। बजटमें ग्रामीण बुनियादी ढांचेके लिए १४ हजार करोड़की राशि आवंटित हुई है और नाबार्डके तहत उपलब्ध राशिको दोगुना करके ५००० करोड़की वृद्धि की गयी है। सरकारी बैंकोंको २२ हजार करोड़की मददके अलावा सार्वजनिक क्षेत्रमें बैंकका री-कैपिटलाइजेशन करनेपर भी सरकार का फोकस है। सालभरसे कोरोनाकी मार झेल रहे करदाताओंको उम्मीद थी कि सरकार आयकर स्लैबमें बदलाव कर कुछ राहत देगी लेकिन वित्तमंत्रीने करदाताओंको इस दिशामें निराश किया। हालांकि आयकरमें सुधारकी घोषणा करते हुए ७५ वर्षसे ज्यादा उम्रके ऐसे बुजुर्गोंको आयकर रिटर्न भरनेसे छूट दी गयी है, जिनकी आयका एकमात्र स्रोत पेंशन है। दरअसल कोरोना कालने करोड़ों लोगोंके रोजगार छीन लिये हैं, ऐसेमें देशमें रोजगारके नये अवसर पैदा करना सरकारके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। रोजगार तभी बढ़ेंगे, जब अर्थव्यवस्थामें तेजी आयगी। लघु और मध्यम उद्योगोंको प्रोत्साहित करनेके लिए इस क्षेत्रमें १५.७ लाख करोड़ रुपयेकी बड़ी राशि आरक्षित करनेकी घोषणा की गयी है। आत्मनिर्भर भारतकी घोषणाके तहत देशकी जीडीपीकी १३ फीसदी राशि ऐसी योजनाओंपर खर्च करनेकी घोषणा हुई है।

इस बारके बजटमें सरकार द्वारा अपनी आय बढ़ानेके लिए विनिवेश और निजीकरणपर काफी जोर दिया गया है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने कई सरकारी कम्पनियोंके विनिवेश अर्थात् सरकारका हिस्सा बेचनेकी घोषणा की है। इस साल १.७५ लाख करोड़ रुपयेका विनिवेश लक्ष्य रखा है और पहली बार इस तरहसे सरकारी सम्पत्तियोंकी बिक्री शुरू होगी। सरकारने एलआईसीमें अपना एक हिस्सा बेचनेका भी निश्चय किया है। बीमा क्षेत्रमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा अभीतक ४९ फीसदीतक थी, जिसे सरकारने ७४ फीसदीतक बढ़ानेका ऐलान कर दिया है। सरकारका मानना है कि यदि लक्षित सरकारी सम्पत्तियोंकी बिक्री हो सकी तो घाटा कम रखनेमें मदद मिलेगी।

किसान आन्दोलनके बीच बजटमें कृषि क्षेत्रमें कृषि कर्जका लक्ष्य १६.५ लाख करोड़ रुपये रखा गया है, साथ ही सरकारने ऑपरेशन ग्रीन स्कीमकी भी घोषणा की है, जिसमें कई फसलोंको शामिल कर किसानोंको लाभ पहुंचाया जायगा। कुल मिलाकर देखा जाय तो केन्द्रीय बजटमें सरकारका फोकस बुनियादी संरचनापर निवेश बढ़ानेको लेकर रहा है और आर्थिक विकासको गति देनेके भरपूर प्रयास किये गये हैं। हालांकि लोगोंको सीधे तौरपर कोई बड़ी राहत नहीं दी गयी है लेकिन उनपर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं लादा गया है। आर्थिक विशेषज्ञोंके मुताबिक बजटमें भले ही गरीबों या आम लोगोंको अपने लिए कुछ मिलता नहीं दिख रहा हो लेकिन अर्थव्यवस्थाको ऑक्सीजन देनेके लिए यह ठीक-ठाक बजट साबित हो सकता है।