सम्पादकीय

योगका अर्थ


जग्गी वासुदेव

योगका अर्थ है पूर्ण मिलन यानी हर चीज आपके अनुभवमें एक हो गयी है, लेकिन तर्क कहता है कि बुराई या गंदगीको स्वीकार मत करो। कुछ समय पहलेकी बात है, किसीने मुझसे पूछा, योगका मतलब तो मिलन या एक होना है फिर भेदभाव करनेवाले मनका क्या करें। क्या ऐसा नहीं है कि जो बुरा है उसे हम छोड़ दें और जो अच्छा है, उसे अपना लें। आज जो कीचड़ है, वही कल फूल बन सकता है, आज जो दुर्गंध है, वह कल सुगंधमें बदल सकती है। यदि हम आपके निर्णयसे चलें और सारी गंदगीको बाहर कर दें तो आपके हिस्सेमें न कभी फूल आयगा और न ही खुशबू। इसलिए सबको साथ लेकर चलनेकी सोच कोई पसंदका मुद्दा नहीं है क्योंकि ब्रह्मïांडकी बनावट ऐसी है ही नहीं। आज जो इनसान है, वह कल मिट्टी हो जायगा। यदि हमें आज ही यह समझ आ जाय तो हम इसे योग कहते हैं वरना यदि यही बात अंतमें समझ आती है तो हम इसे अंतिम संस्कार कहते हैं। आपको यह बात समझनी चाहिए कि आप फिलहाल भी इस धरतीका वैसा ही अंश है, जैसा कि आप मरनेके बाद होंगे। आप जिसे ‘मैं’ कहते हैं या जिसे एक कीड़ा, केंचुआ या गंदगी कहते हैं, बुनियादी रूपसे सब एक ही है। आप भोजन और कीचड़के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकते, लेकिन बिना कीचड़के भोजन पैदा हो ही नहीं सकता। यदि सबको समाहित करनेका भाव नहीं होगा तो जीवनमें कोई जैविक एकता होगी ही नहीं। इस जैविक एकताके अभावमें इनसानका संघर्ष अंतहीन हो जाता है। शुरूमें यह एक मानसिक समस्याके रूपमें शुरू होगा। बादमें आप जैसे-जैसे तरक्की करेंगे, आप भावनात्मक रूपसे निराशासे भर उठेंगे। यदि आप आगे और भी तरक्की करते हैं तो यह एक शारीरिक रोगका रूप ले लेगा। जैसे-जैसे हम जीवनके साथ जैविक एकता खोते जायंगे, वैस-वैसे हमारी दशा खराब होती जायगी। तब हम नयी-नयी बीमारियोंकी खोज करेंगे। यदि आप जीवन एवं जीवन बनानेवाले पदार्थों जैसे धरती, जिसपर आप चलते हैं, पानी जो आप पीते हैं, हवा, जिसमें सांस लेते हैं या फिर आकाश जो आपको थामे हुए है, के साथ जाने-अनजाने, सचेतन या अचेतन रूपसे अपनी दूरी बना लेंगे तो विकृति आयगी ही। तब आप एक गरिमापूर्ण जीवन न होकर, एक विकृत जीवन होंगे। यदि आप यह नहीं जानते कि सहज रूपसे जीवनके एक अंशके रूपमें कैसे रहा जाय तो आप एक विकृत जीवन जी रहे हैं। आज पंचानवें फीसदी लोगोंमें यह विकृति है कि वह सहजतासे एक जगह नहीं बैठ सकते। लोगोंको हर वक्त कुछ न कुछ करनेके लिए चाहिए। क्या आपको लगता है कि सारी आपाधापी इसलिए हो रही है, क्योंकि हर व्यक्ति इस बारेमें पूरी तरहसे स्पष्ट है कि वह क्या करना चाहता है। नहीं, वह लोग बाध्य हैं कि वह कुछ किये बिना रह ही नहीं सकते। दरअसल यदि वह एक जगह बिना कुछ किये बैठे रह गये तो वह पागल हो जायंगे।