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एक दशक में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा भारत, 2022-23 में 8 फीसद रहेगी विकास दर: अरविंद पानागढ़िया


नई दिल्ली, नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के अध्यापक प्रोफसर अरविंद पानागढ़िया अभी भी भारती इकोनोमी के सभी आयामों पर और खास तौर पर राजनीति के आर्थिक पहलुओं पर बहुत ही करीबी नजर रखते हैं। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन को दिए साक्षात्कार में राजनीतिक दलों की अर्थनीति से लेकर वैश्विक मंदी के मंडराते साये में भारतीय इकोनोमी की संभावनाओं पर विस्तार से बात की। पेश है इस बातचीत के कुछ अंशः

देश की अर्थव्यवस्था अभी किस तरफ बढ़ती दिख रही है, क्या हम तेज विकास दर की ओर बढ़ रहे हैं?

कोरोना महामारी ने भारत की इकोनोमी को वर्ष 2020-21 में जो धक्का लगाया था, उससे हम तेजी से उबर रहे हैं। वर्ष 2020-21 में इकोनोमी में 6.6 फीसद की गिरावट आई थी लेकिन उसके बाद के वर्ष 2021-22 में हमने 8.7 फीसद की दर हासिल की थी। उस वर्ष दुनिया की और किसी बड़ी इकोनोमी ने 8 फीसद की विकास दर हासिल नहीं की थी। चालू वर्ष की पहली तिमाही में हमारी ग्रोथ रेट 13.5 फीसद की रही है। लेकिन इस दौरान देश की इकोनोमी में काफी रिस्ट्रक्चरिंग भी हुई है जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है।

कारपोरेट सेक्टर की बात करें तो नये दिवालिया कानून (आइबीसी) के जरिए खराब प्रबंधन वाली काफी कंपनियां सिस्टम से बाहर हो चुकी हैं। कई सुस्त प्रबंधन वाली कंपनियों की जिम्मेदारी दूसरी सक्षम हाथों में दिया जा चुका है। एस्सार स्टील व भूषण स्टील दो उदाहरण हैं। कंपनियों के भीतर काफी सुधार हुआ है। इसका असर जीडीपी के मुकाबले निवेश के बढ़ते अनुपात में मिलता है। वर्ष 2021-22 की तीसरी तिमाही में यह अनुपात 30 फीसद था जो अब 34.7 फीसद हो गया है। ज्यादातर एजेंसियां वर्ष 2022-23 में भारत की आर्थिक विकास दर के 7 फीसद से नीचे रहने की उम्मीद लगा रहे हैं लेकिन मेरा आकलन है कि यह 8 फीसद से उपर ही रहेगा।

क्या हम इस विकास दर को आगे भी बना कर रखने में सक्षम हैं?

निश्चत तौर पर हम इस विकास दर को आगे भी बना कर रखने में सक्षम दिखते हैं। मेरा मानना है कि अगले एक दशक तक भारत की विकास दर 7-8 फीसद बनी रहेगी। इस विकास दर से हम एक दशक में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनोमी बनने मे सक्षम होंगे। लेकिन यह क्रमवार तरीके से होगा। इस विकास दर का काफी असर पूरी इकोनोमी व समाज पर होगा। आम आदमी की आय बढ़ेगी तो वह बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च करेगा। सरकार का राजस्व बढ़ेगा तो वह विकास कार्यों व अत्याधुनिक ढांचागत सुविधाओं को बेहतर बनाने में खर्च करेगी।

तेज विकास दर की संभावनाओं को देखते हुए सरकार का अब फोकस क्या होना चाहिए?

मुझे लगता है कि एक सेक्टर जहां सबसे ज्यादा बदलाव की जरूरत है, वह है कृषि क्षेत्र में लगे लोगों को उद्योग व सेवा सेक्टर में रोजगार के लिए ले आना। अभी भी देश के 43 फीसद लोग कृषि कार्यों से जुड़े हैं। इस बदलना होगा। शहरीकरण को लेकर हमें बड़े बदलाव करने की जरूरत है। चीन व दक्षिण कोरिया जैसे देशों मे शहरीकरण पर जिस तरह का जोर दिया गया है वह हमारे यहां नहीं है। ऐसे मे मैं यही सोचता हूं कि ग्रोथ रेट तो हम तेज कर लेंगे लेकिन शहरीकरण को किस तरह से तेज करेंगे।

यहां सरकार के स्तर पर काफी कुछ करने की संभावनाएं हैं। इसके लिए हमें कुछ प्रमुख नीतियों में सुधार पर ध्यान देना होगा। एक तो श्रम कानून में सुधार जरूरी है। केंद्र सरकार ने श्रम कोड लाने का वादा किया था लेकिन अभी तक उसे लागू नहीं किया जा सका है। जिन उद्योगों में रोजगार के अवसर ज्यादा हैं वहां ज्यादा फोकस करना होगा। टेक्सटाइल ऐसा ही सेक्टर है। दुनिया में टेक्सटाइल निर्यात का बाजार 800 अरब डॉलर का है, भारत की हिस्सेदारी 20 अरब डॉलर के करीब है। विएनताम व बांग्लादेश जैसे देश काफी आगे हैं। यहां हम काफी रोजगार पैदा कर सकते हैं।

इसी तरह से फर्नीचर, टेबल लैंप, किचनकेयर जैसे तमाम छोटे-छोटे उद्योग हैं जहां विशाल वैश्विक बाजार है और भारत के लिए वहां काफी संभावनाएं हैं। भूमि सुधार एक बड़ा लंबित मुद्दा है जो देश की इकोनोमी के भावी विकास को देखते हुए जरूरी है।

आपने हाल ही में एक रिपोर्ट में सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की सलाह दी है, क्या अब सरकारी बैंकों की कोई जरूरत नहीं है?

हमारी रिपोर्ट में धीरे-धीरे सभी सरकारी बैंकों के निजीकरण करने का सुझाव है लेकिन इस बारे में फैसला केंद्र सरकार को करना है। मेरा यह मानना है कि भारत जैसे देश में 12 सरकारी बैंकों की कोई जरूरत नहीं है। वैसे भी यह काम एक बार में होना नहीं है। दो सरकारी बैंकों के निजीकरण करने का ऐलान सरकार ने किया था लेकिन वह नहीं हो पा रहा। अभी सरकारी बैंकों ने काफी अच्छा मुनाफा भी कमाया है, अभी इनसे सरकार को काफी बढ़िया राजस्व मिलेगा। केंद्र को इस बार तुरंत अमल करना चाहिए और यह भी ध्यान रखिए कि अगर दो-तीन बैंकों का अभी निजीकरण किया जाता है तो सरकार कुछ समय बाद इस नीति की समीक्षा कर सकती है कि यह सही है या नहीं।