रमेश सर्राफ धमोरा
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर २०१८ में पहली बार खाद्य और कृषि संघटनके सहयोगसे विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया था। विश्व स्वास्थ्य संघटनके अनुसार इससे खाद्य सुरक्षा लेकर लोगोंमें जागरूकता फैलायी जा सकती है और विश्व स्तरपर खाद्य पदार्थोंसे होनेवाली बीमारियोंको भी ध्यानमें लाया जा सकता है। खाद्य सुरक्षाके प्रति लोगोंको जागरूक करने मुख्य है। जो खराब भोजनका सेवन करनेकी वजहसे गंभीर रोगोंके शिकार बन जाते हैं। रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्यकी मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती है। जिसके बिना मनुष्यका जीवन बहुत मुश्किल है। इसमें रोटी सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि रोटीके बिना तो मनुष्य जिन्दा भी नहीं रह सकता है। खाद्य सुरक्षाका उद्देश्य यह सुनिश्चित किया जाना है कि हर व्यक्तिको पर्याप्त मात्रामें सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिल सके। विश्व स्वास्थ्य संघटनके आंकड़ोंके अनुसार दुनियामें हर दसमेंसे एक व्यक्ति दूषित भोजनका सेवन करनेसे बीमार पड़ जाता है। जो कि सेहतके लिए एक बड़ा खतरा है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीने भी पूर्वमें अपने मनकी बात कार्यक्रममें देशकी जनतासे बात करते हुए लोगोंसे खानेकी बर्बादी रोकनेकी अपील की थी। उन्होंने कहा कि ऐसा करना गरीबोंके साथ अन्याय एवं समाजद्रोह है। प्रधान मंत्रीने कहा था कि आपने कभी सोचा है कि हम जो जूठन छोड़ देते हैं। उससे हम कितने गरीबोंका पेट भर सकते हैं। उन्होंने कहा था कि इसपर सामाजिक जागरूकता बढऩी चाहिए। भारतमें हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक-तिहाई बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जानेवाला भोजन इतना होता है कि उससे करोड़ों लोगोंकी खानेकी जरूरत पूरी हो सकती है। रिपोर्टमें खुलासा हुआ है कि भारतमें बढ़ती सम्पन्नताके साथ ही लोग खानेके प्रति असंवेदनशील हो रहे हैं। खर्च करनेकी क्षमताके साथ ही खाना फेंकनेकी प्रवृत्ति बढ़ रही है। विश्व खाद्य संघटनके अनुसार देशमें हर साल पचास हजार करोड़ रुपयेका भोजन बर्बाद चला जाता है। एक आकलनके मुताबिक बर्बाद होनेवाले भोजनकी धनराशिसे पांच करोड़ बच्चोंकी जिन्दगी संवारी जा सकती है।
इस संदर्भमें विश्व खाद्य एवं कृषि संघटन द्वारा जारी रिपोर्टमें कहा गया है कि खाद्य अपव्ययको रोके बिना खाद्य सुरक्षा सम्भव नहीं है। इस रिपोर्टमें वैश्विक खाद्य अपव्ययका अध्ययन पर्यावरणीय दृष्टिकोणसे करते हुए बताया है कि भोजनके अपव्ययसे जल, जमीन और जलवायुके साथ जैव-विविधतापर भी बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। रिपोर्टके मुताबिक हमारी लापरवाहीके कारण पैदा किये जानेवाले अनाजका एक-तिहाई हिस्सा बर्बाद कर दिया जाता है। देशमें एक तरफ करोड़ों लोग खानेको मोहताज हैं। वहीं लाखों टन खाना प्रतिदिन बर्बाद किया जा रहा है। हमारे देशमें हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना आस्ट्रेलियाकी कुल पैदावार है। नष्ट हुए गेहूंकी कीमत लगभग ५० हजार करोड़ रुपये होती है और इससे ३० करोड़ लोगोंको सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। हमारे देशमें २.१ करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है। क्योंकि उसे रखनेके लिए हमारे पास पर्याप्त भंडारणकी सुविधा नहीं है। औसतन हर भारतीय एक सालमें छहसे ११ किलो अन्न बर्बाद करता है। सालमें जितना सरकारी खरीदीका धान एवं गेहूं खुलेमें पड़े होनेके कारण नष्ट हो जाता है। उतनी राशिसे गांवोंमें पांच हजार वेयर हाउस बनाये जा सकते हैं।
भारतमें अनाजको अन्नदेवका दर्जा प्राप्त है। यही कारण है कि हमारे देशमें भोजन झूठा छोडऩा या उसका अनादर करना पाप माना जाता है। परन्तु आधुनिकताके चक्करमें हम अपने पुराने संस्कार भूल गये हैं। हमारे यहां शादियों, उत्सवों या त्यौहारोंमें होनेवाली भोजनकी बर्बादीसे हम सब वाकिफ हैं। इसके उपरांत भी हम इन अवसरोंपर ढेर सारा खाना कचरेमें फेंक देते हैं। कई बार तो घरोंके आसपास फेंके गये भोजनसे उठनेवाली दुर्गंध एवं सड़ांध वहां रहनेवालोंके लिए परेशानी खड़ी कर देती हैं। शादियोंमें खानेकी बर्बादीको लेकर भारत सरकार भी चिंतित है। खाद्य मंत्रालयने कहा है कि वह शादियोंमें मेहमानोंकी संख्याके साथ ही परोसे जानेवाले व्यंजनोंकी संख्या सीमित करनेपर विचार कर रहा है। इस बारेमें विवाह समारोह अधिनियम, २००६ कानून भी बनाया गया है। हालांकि इस कानूनका कड़ाईसे कहीं भी पालन नहीं किया जाता है। खानेकी बर्बादी रोकनेकी दिशामें देशमें महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। महिलाओंको अपने घरके बच्चोंमें बचपनसे यह आदत डालनी होगी कि जितनी भूख हो उतना ही खाना लो। एक-दूसरेसे बांट कर खाना भी भोजनकी बर्बादीको बड़ी हदतक रोक सकता है। भोजनकी बर्बादी रोकनेके लिए हमें अपनी आदतोंको सुधारनेकी जरूरत है। धार्मिक लोगों एवं स्वयंसेवी संघटनोंको भी इस दिशामें पहल करनी चाहिए। आजकल कई शहरोंमें समाजसेवी लोगोंने मिलकर रोटी बैंक बना रखा हैं। रोटी बैंकसे जुड़े कार्यकर्ता शहरमें घरोंसे एवं विभिन्न समारोह स्थलोंसे बचे हुए भोजनको एकत्रित कर जरूरतमंद गरीबोंतक पहुंचाते हैं। इससे जहां भोजनकी बर्बादी रुकती हैं वहीं जरूरतमंदोको भोजन भी उपलब्ध होता है। इस दिशामें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रमके अभियान सोंचे, खायें और बचायें भी एक अच्छी पहल है। इसमें शामिल होकर भोजनकी बर्बादी रोकी जा सकती है। वर्तमान समयमें समाजके सभी लोगोंको मिलकर भोजनकी बर्बादी रोकनेके लिए सामाजिक चेतना लानी होगा। तभी भोजनकी बर्बादी रोकनेका अभियान सफल हो पायेगा।