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कश्मीरी हिंदू निर्वासन दिवस: आंसू हैं, दर्द है पर 32 साल बाद भी इंसाफ की उम्मीद बाकी है


 19 जनवरी 1990 की वह काली रात। कट्टरवाद का ऐसा बवंडर उठा कि लाखों कश्मीरी हिंदू अपनी ही मिट्टी पर बेगाने हो गए। तब से इंसाफ के इंतजार में 32 बरस बीत गए पर न रिसते जख्‍माें पर मरहम लग पाया और न ही अपनी माटी नसीब हुई। घर, जमीन सब लुट चुका था और बचे थे केवल आंसू, दर्द और आश्‍वासनों के ढेर में दफन होती उम्‍मीदें। इसके बावजूद न अत्याचारी हौसला तोड़ पाए और न हक के लिए लड़ने का जज्‍बा। आंसुओं को छिपाने का प्रयास करते हुए जम्मू के जगटी में एक कमरे के मकान में रह रहे बुजुर्ग कहते हैं कि इंसाफ की आस अभी टूटी नहीं है। अपने हक और अपनी माटी (पनुन कश्मीर) के लिए यह लड़ाई अंतिम सांस तक जारी रहेगी।

श्रीनगर या कश्‍मीर के किसी भी शहर से गुजरें आज भी उन खंडहर को रही हवेलियाें को अपनों के लौटने का इंतजार है। कश्‍मीरी हिंदुओं ने निर्वासन से पहले क्‍या झेला होगा, इमारतों का वह मौन उस दर्द की दास्तां सुना रहा है। वह दौर ऐसा था कि सरकारें इस मुद्दे पर चुप थी और कोई उनके दर्द को सुनने वाला नहीं था या फिर सुनकर भी अनसुना कर दिया था। पर इन कश्‍मीरी हिंदुओं ने अपनी लड़ाई को कमजोर नहीं होने दिया। वह उस हर द्वार पर दस्‍तक देते रहे, जहां उम्‍मीद की हल्‍की किरण भी दिखाई पड़ती थी।

इन तीन दशक में कई बार सत्‍ता बदली, सियासत बदली और हर बार इन कश्‍मीरी हिंदुओं की आखों में  नई उम्‍मीद तैरती दिखी, पर कश्‍मीरी हिंदुओं को घर लौटा लाने के ख्‍वाब केवल सत्‍ता और सियासत के दांवपेंच में उलझकर रह गए।

अब फिर बड़ी उम्मीद जगी है। सरकार पहली बार हरकत में दिखी है। शासन पहली बार उनकी बात सुन रहा है पर वह इतनी बार छले गए कि अभी भी विश्‍वास की डोर छूटती दिखती है। सम्‍मान बहाल करने की दिशा में पहला बड़ा कदम बढ़ा दिया गया है और जमीन पर कब्जों से जुड़े मामलों की त्वरित गति से सुनवाई हो रही है। बड़ी संख्या में मामलों का तेजी से निपटारा भी किया है। औने-पौने दाम पर बेची गई संपत्ति भी उनके नाम होने लगी है। शासन की यह सतर्कता उत्‍साहित अवश्‍य करती है पर घाटी वापस लौटने की राह यहां से भी आसान नहीं दिखती।

निर्वासित समुदाय से जुड़े राजकुमार टिक्कू कहते हैं कि वह दहशत का मंजर आज भी याद है। हालात ही नहीं सब कुछ उलटा होता जा रहा था। लाउड स्पीकरों पर घाटी छोड़ देने की मिल रहीं थी। अपनी जान से ज्यादा बहु-बेटियों की इज्जत बचाने के लिए रातों रात घर-बार छोड़ जम्मू के लिए निकल आए थे। कुछ जम्मू में रुक गए तो कुछ देश के अन्य राज्यों की तरफ। जितनी आसानी से यह सब करने दिया गया, उतना ही यह डर बढ़ा रहा है।

लंबे समय से चल रही थी साजिश

19 जनवरी की तैयारी 1989 में शुरू हो चुकी थी। चार जनवरी 1990 को स्थानीय अखबारों में जिहादी संगठनों ने इश्तिहार छपवा कश्मीर हिंदुओं को घाटी छोड़ने या फिर इस्लाम कुबूल करने लिए कहा था। इसके बाद पंडितों के मकानों व धर्मस्थलों पर हमले शुरू हो गए। कश्मीरी हिंदू नेताओं, बुद्धिजीवियों और यहां तक की महिलाओं को भी निशाना बनाया जाने लगा था।

तीन लाख कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे

एक सर्वे के अनुसार कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरु होने से पहले वादी में 1242 शहरों, कस्बों और गांवों में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे। निर्वासन के बाद 242 जगहों पर सिर्फ 808 परिवार रह गए। जिहादियों के फरमान के बाद कश्मीर से बेघर हुए सिर्फ 65 हजार कश्मीरी ङ्क्षहदू परिवार जम्मू में पुनर्वास एवं राहत विभाग के पास दर्ज हुए।

इंटरनेट मीडिया पर बुलंद की आवाज 

कश्‍मीरी हिंदुओं ने इंटरनेट मीडिया को अपनी आवाज बनाया और खुलकर आक्रोश व्‍यक्‍त किया। बुधवार को देश और दुनिया भर से एक साथ, एक सुर में जिहादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई जारी रखने की आवाज भी बुलंद की। कश्‍मीरी पंडितों से जुड़े मुद्दे इंटरनेट मीडिया के अलग-अलग प्‍लेटफार्म पर ट्रेंड भी करते दिखे।

कश्मीरी हिंदू मांंग रहे अपना होम लैंड

पनुन कश्मीर के वीरेंद्र रैना ने कहा कि हम अपनी मिट्टी से जुडऩा चाहते हैं पर हमारी घाटी वापसी तभी हो पाएगी, जब वहां हमारे लिए अलग से होम लैंड स्थापित किया जाए। जांच आयोग हिंसा के मामलों की जांच करे।

पंडितों की प्रमुख मांगें

1. कश्मीर के मंदिरों को संरक्षित करने के लिए मंदिर बिल को पारित किया जाए। इससे हम कश्मीरी पंडितों को यकीन होगा कि सरकार सच में कश्मीरी हिंदुओं की घाटी वापसी चाहती है।

2. कश्मीर हिंदू घाटी में एक ही स्थान पर बसना चाहेंगे। उन्हें अलग होम लैंड चाहिए। अर्थात पनुन कश्मीर। इससे ही वह घाटी में सुरक्षित रह सकेंगे।

3. कश्मीरी पंडितों के लिए रोजगार की व्यवस्था हो।

4. उनके खिलाफ हुए हमलों की जांच हो और दोषियों पर कार्रवाई हो।

घाटी वापसी के यह हुए प्रयास

1: निर्वासितों को प्रधानमंत्री पैकेज के तहत छह हजार नौकरियां देने का वादा था। तीन हजार से अधिक नौकरियां दी भी गईं।

2: निर्वासितों को संपत्तियों पर कब्जे दिलाने के लिए वेबसाइट लांच की गई है। हजारों शिकायतों के आधार पर जमीन के कब्जे दिलाने के आदेश हो भी चुके हैं।

3: मंदिरों का वैभव लौटाने का प्रयास किया जा रहा है।