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कहां गए सरकार के दावे! 1100 किमी पैदल चलकर बेंगलुरु से ओडिशा पहुंचे 3 प्रवासी मजूदर, दाने-दाने के हुए मोहताज


अनुगुल। ओडिशा सरकार के विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बड़े-बड़े दावों के बावजूद राज्य में प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा का कोई अंत नहीं दिख रहा है। काम की तलाश में दूसरे राज्यों में श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन की खबरों के साथ बहुप्रचारित कल्याणकारी योजनाएं केवल कलम और कागज तक ही सीमित प्रतीत होती हैं।

बिना वेतन के कर रहे थे मजदूरी

कालाहांडी जिले में प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जिले के जयपटना ब्लॉक के तिंगपटना गांव के तीन मजदूर, जो काम की तलाश में बेंगलुरु गए थे, हाल ही में दक्षिणी राज्य से कथित रूप से अमानवीय यातना के बाद पैदल घर लौटे। सूत्रों के मुताबिक, तीनों मजदूर बिना वेतन के काम करने को मजबूर थे। इसके अलावा, उन्हें प्रताड़ित किया जाता था और भोजन भी उपलब्ध नहीं कराया जाता था।

1100 किलोमीटर की दूरी पैदल किया तय

कोई अन्य विकल्प न पाकर उन्होंने ओडिशा लौटने का फैसला किया। सूत्रों ने बताया कि अपने परिवहन खर्च को वहन करने में असमर्थ तीनों ने लगभग 1100 किलोमीटर की दूरी तय की और आठ दिनों का सफर तय कर अपने गांव पहुंचे।

मजदूरों की पीड़ा को देखते हुए कुछ सामरियों ने उन्हें घर वापस जाते समय कुछ भोजन कराया और थोड़े बहुत पैसे दिए। प्रवासी मजदूरों के अनुसार, मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिलने के बाद उन्हें दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए बेंगलुरु जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

बेंगलुरु में हुई मरपीट, नहीं दिए गए पैसे

एक रिपोर्ट के अनुसार, ये तीन प्रवासी श्रमिक 12 सदस्यों के समूह का हिस्सा हैं, जो दो महीने पहले एक बिचौलिए की मदद से ओडिशा से बेंगलुरु पहुंचे थे। जब उन्होंने काम करने के बाद मजदूरी की मांग की, तो तीनों को कथित तौर पर नियोक्ता द्वारा पीटा गया।

प्रवासी श्रमिकों में से एक ने कहा हम पैसा कमाने के लिए बेंगलुरु गए थे, लेकिन काम खत्म करने के बाद उन्होंने वादा किए गए पैसे देने से इनकार कर दिया। जब हमने मांग की तो हमारे साथ मारपीट की। आखिरकार जब हमसे सहा नहीं गया तो हमने भागकर घर वापस लौटने का फैसला लिया।