कोरोना व पाल्यूशन ने पटाखा रोजगार को दिया जोर का झटका
-राम नरेश चौरसिया-
पटना। दीवाली में इस बार बम-पटाखों की गूंज नहीं सुनाई देगी। प्रदूषण नियंत्रण और विधि व्यवस्था नियंत्रण के नाम पर बिहार में पटाखे नहीं छूटेंगे। बिहार के चार जिले क्रमश: पटना, मुजफ्फरपुर, गया और हाजीपुर में पटाखों पर वैन लगा दिया गया है। इस वैन से इस बार बिहार में करोड़ों के पटाखा रोजगार को लकवा मार गया है। धंधे पर वैन लगाये जाने से इससे जुड़े हजारों लोगों को जबरदस्त झटका लगा है। कोरोना की मार झेल रहे पटाखा व्यवसायी, कर्मचारी और मजदूर आज दूसरे धंधे की तलाश में हैं।
बिहार में दीवाली के एक महीने पहले से ही पटाखा का रोजगार पसर जाता था। पटना, गया, मुजफ्फरपुर और हाजीपुर में बीड़ी बम, अनार और फलझडिय़ां छूटने लगती थी, किंतु इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हैं। कहीं-कहीं अनार, फुलझड़ी और चरखियां छूट भी रही है, तो चोरी-छिपे। पटना, फुलवारी, गया और सीवान में तो लोकल स्तर पर फुलझड़ी और कुल्हिया का निर्माण भी होता था, किंतु अब न इसके कारिगर रहें, न आयटम बनाने वाले। ले दे कर तमिलनाडू-शिकाकाशि मेड पटाखें ही बिहार में आ रहे हैं।
इस मौसमी धंधे से बिहार में हजारों लोग जुड़े है। कोरोना का असर कमने के बाद इससे जुड़े लोग और कारिगरों में उम्मीद जगी थी कि इस बार उनका कल्याण होगा, परंतु सरकार और प्रशासन के ताजा आदेश ने उनकी तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया।पटना, गया, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, छपरा, भागलपुर, मोतिहारी और बाढ़-बख्तियारपुर में आतिशबाजी की दुकानें दीवाली शुरू होने के एक महीने पहले से ही सज जाती थी।
पटाखा का धंधा मौसमी होने के कारण इससे स्थानीय और बाहरी लोग भी जुड़ जाते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। बड़ी संख्या में कर्ज लेकर भी लोग पटाखे का धंधा करते है। इस साल भी पटना में ५० से भी ज्यादा लोगों ने कर्ज लेकर यह धंधा शुरू करने का प्रयास तो किया, परंतु वैन के आदेश ने उनके प्रयासों को तगड़ा झटका दे दिया। वैसे भी कोरोना के दौरान इस बार पटाखा ऑयटमस का बहुत कम प्रोडक्शन हुआ है। इसको लेकर पटाखा व्यापार और प्रोडक्शन से जुड़े लोगों ने खुद को समेटना शुरू कर दिया है।
पटना सिटी का इलाका कभी पटाखा व्यवसाय का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। दो दशक पूर्व राम कृष्ण प्रसाद चौधरी और पप्पू चौधरी की ही पटाखा दूकाने थी, जहां से आतिशबाजी ऑयटम खरीदने के लिए लोग देर रात तक लाइन लगाये रहते थे। धीरे-धीरे मो. रिजवान, राजेश रॉय, अशोक गुप्ता और अमित कुमार रॉय जैसे लायसेंसियों की संख्या बढ़ी। इस बीच फिर एके रॉय से इस धंधे से खुद को किनारे कर लिया। यानी तीन ही लायसेंसी आतिशबाज बिक्रेता रह गए।
पटाखों की बढ़ी कीमतों और वैन को लेकर लोग मायूस हैं। इससे जुड़े व्यवसायी और पटना नगर निगम के पार्षद राजेश रॉय निगम की मौजूदा हालात को लेकर हतप्रभ है। उन्होंने कहा कि बिहार में पटाखों की बिक्री और प्रोडक्शन पर तो वैन लगा दिया गया है, किंतु तमिलनाडू के शिवाकाशि में यह बन रहा है। सरकार को ले मेन आतिशबाजी प्रोडक्शन सेंटरों को वैन करना चाहिए। पटाखा पर १८ प्रतिशत टैक्स भी लग रहा है। आतिशबाजी को जीएसटी के दायरे में लाने के बाद से इसकी हालत और बदतर हुयी है। यह हाल तब है, जब बिना बेरियम के पटाखा बन रहा है।वैसे, बिहार में शिवाकाशि, श्री कैलाश्वरी फायर वक्र्स, गणेश, साई ओर सपना के गीन पटाखें आ रहे हैं। इस बार चोरी-छिपे फुलझडिय़ां, बीड़ी बम और अनार ही बच्चें-किशोर छोड़ सकेंगे, हालांकि प्रशासन की सख्ती ने उन पर सवाल खड़े कर दिये हैं।