नई दिल्ली, दिल्ली हाई कोर्ट ने अदालत के कर्मचारियों की काम को लेकर लापरवाही को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। नौकरी से बर्खाश्त किए जाने के निर्णय को चुनौती देने वाली निचली अदालत के दो कर्मचारियों की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट नेह कहा कि अदालत से जुड़े कर्मचारियों को काम के प्रति इस तरह की लापरवाही को नजरअंदाज या माफ नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि अदालतों से जुड़े होने के कारण वे अपने कार्यों के परिणामों के बारे में अज्ञानता का दावा नहीं कर सकते हैं।
कामकाज तको लेकर सतर्क और सूचित रहने की जरूरत
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विभू बाखरू व न्यायमूर्ति अमित महाजन की पीठ ने कहा कि न्यायिक कार्यों के उद्देश्य के लिए न्यायिक अधिकारी अपने न्यायालय के कर्मचारियों पर निर्भर हैं। ऐसे में अदालत के कर्मचारियों को यहां के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के प्रति सतर्क और अच्छी तरह से वाकिफ होना चाहिए। अदालत के कर्मचारी उन प्रक्रियाओं और प्रासंगिक सुरक्षा उपायों की अनदेखी का दावा नहीं कर सकते, जिनका पालन किया जाना अनिवार्य है।
जज के फर्जी हस्ताक्षर से आदेश जारी करने पर विवाद
साकेत कोर्ट में रीडर सुनील कुमार सैनी और सहायक अलहमद तरुण कुमार ने उन्हें बर्खाश्त करने के 17 फरवरी 2018 के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश तलवंत सिंह के निर्णय को चुनौती दी थी। सुनील और तरुण साकेत कोर्ट में मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट (यातायात) कार्यालय में तैनात थे। इस अदालत में मोटर वाहन अधिनियम- 1988 के तहत आने वाले अपराधों को देखा जाता था। आरोप था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा जज के फर्जी हस्ताक्षर से आदेश जारी करने पर विवाद हुआ था।