डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
कोरोनाके कारण लम्बे समयतक प्रभावित हालातोंके बाद पिछले दो-तीन महीनोंसे लगने लगा था कि अब देशमें हालात पटरीपर आने लगे हैं परन्तु मार्च आते-आते जिस तरहसे कोरोना पाजिटिवके मामले बढ़ते जा रहे हैं वह एक बार फिर चिन्ताका कारण बन रहा है। पिछले १२ सप्ताहोंमें नये केसोंमें ३३ फीसदी वृद्धि देखी गयी है। ८५ दिनोंमें एक दिनमें सर्वाधिक २६३८६ कोरोना पोजिटिव केस १५ मार्चको सामने आये हैं। सबसे खराब स्थिति महाराष्ट्रमें देखी जा रही है तो मौतके मामलोंमें पंजाब डरा रहा है। महाराष्ट्रमें कुछ स्थानोंपर रातका कफ्र्यू तो कुछ स्थानोंपर लाकडाउन भी किया गया है। दुनियाके कुछ देशोंमें कोरोनाकी तीसरी लहरकी बात होने लगी है। यह तो तब है जब दुनियाके देशोंमें कोरोना वैक्सीनेशनमें हमारा देश पहले तीन देशोंमें शुमार हो गया है। कोरोना वैक्सीनेशनमें राजस्थान समूचे देशमें शीर्षपर है तो महाराष्ट्रमें भी वैक्सीनेशनकी स्थिति अच्छी है। इस सबके बावजूद जिस तेजीसे महाराष्ट्र सहित दस राज्योंमें कोरोना पाजिटिव मामलें सामने आ रहे हैं उससे चिंताकी लकीरें उभर आयी है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने गम्भीरतासे लेते हुए उच्चस्तरीय बैठकमें समीक्षा की है और राज्योंके मुख्य मंत्रियोंसे चर्चा कर नयी रणनीति बनानेकी बात की है तो राजस्थानके मुख्य मंत्री अशोक गहलोत कोरोना पाजिटिव मामलोंकी बढ़ते मामलोंको देखते हुए एक्शन मोडमें आ गये हैं। प्रभावित राज्योंसे आनेवाले नागरिकोंके टेस्टके निर्देश दे दिये हैं। हालांकि लगभग सभी राज्य सतर्क होने लगे हैं।
दरअसल लोगोंमें पिछले दिनोंमें कोरोनाके प्रति लोगोंमें गम्भीरता कम हुई है। बाजारोंमें हालात कोरोनासे पहलेकी तरह हो गये है तो शादी-विवाह एवं जलसोंका सिलसिला निकल पड़ा है। इस दौरान कई राज्योंमें स्थानीय निकायोंके चुनावों सहित राजनीतिक गतिविधियां भी तेज हुई है। बंगाल, आसाम, केरल सहित कई प्रदेशोंमें विधानसभाके चुनावकी भेरी बज चुकी है और इन प्रदेशोंमें राजनीतिक रैलियां हो रही है। इसके साथ ही किसान आन्दोलनके चलते धरना-प्रदर्शन और राज्योंकी विधानसभाओंके बजट सेशनके चलते विधानसभाओंपर प्रदर्शनका सिलसिला जारी है। सार्वजनिक वाहनों ही क्या एक तरहसे कोरोना प्रोटोकालकी पालना लगभग नहींके बराबर होने लगी है। हाथ धोने, सेनेटाइजरका प्रयोग, दो गजकी दूरी, मास्क लगाने आदिमें अब औपचारिकता मात्र रह जानेसे स्थितियां गम्भीर होनेकी चेतावनी साफ- साफ हो गयी है। यहांतककी लोग वैक्सीनेशनको भी गम्भीरतासे नहीं ले रहे हैं।
कोरोनाकी वापसीके संकेत डरावने हो गये हैं। बड़ी मुश्किलसे पटरीपर लौटती दिनचर्यापर कोरोनाकी मार भारी पडऩेवाली है। सरकारकी भी अपनी सीमाएं हैं। कोरोनाके कारण प्रभावित आर्थिक गतिविधियोंको लाकडाउनके माध्यमसे बंद करना अब सरकारोंके लिए किसी दुश्वारीसे कम नहीं है। आखिर रोजगार एवं आर्थिक गतिविधियोंको बनाये रखना चुनौतीभरा है। डिमाण्ड और सप्लाईकी चैन जैसे-तैसे कुछ सुधरी है परन्तु नये हालातोंसे यह प्रभावित होनी ही है। ऐसेमें सरकारसे ज्यादा जिम्मेदारी अब आमनागरिकोंकी हो जाती है। कोरोनाका वैक्सीनेशनका काम पूरा नहीं हो जाता है तबतकके लिए सार्वजनिक आयोजनोंके लिए तो सरकारको अनुमति देनेपर सख्त पाबंदी ही लगा देनी चाहिए। लगभग सभी राज्योंमें कोरोना प्रोटोकालकी पालनाके लिए निर्देश जारी है। केन्द्र सरकार भी समय-समयपर निर्देश जारी कर रही है। ऐसेमें राज्य सरकारोंको कोरोना प्रोटोकालकी पालनामें सख्ती करनी ही होगी। बिना मास्कके आवाजाही या कामधामपर सख्त कदम उठाने होंगे। प्रशासनको ऐसे लोगोंके साथ सख्तीसे पेश होना होगा। सोशल डिस्टेंसकी पालनापर ध्यान दिलाना होगा। सार्वजनिक परिवहन साधनों, सार्वजनिक स्थानों आदिपर सख्तीसे पालना करानी होगी।
सरकारों एवं आमजनको यह समझना होगा कि कोरोनाके चलते लाकडाउन ही केवल मात्र विकल्प नहीं हो सकता। आखिर लाकडाउनके हालात आयें ही क्यों लोगोंको स्वयंको भी जिम्मेदार होना होगा। सामाजिक दायित्व निभानेके लिए आगे आना होगा। नाम कमानेके लिए छुटभैया नेताओंकी गतिविधियोंपर रोक लगानी होगी। यदि कोरोना प्रोटोकालकी पालना घरसे ही शुरू की जाय और समझाइससे लोगोंको मोटिवेट किया जाय तभी समाधान संभव है। नहीं तो कोरोनाके नामपर मुफ्त सामग्रीके वितरण और फोटो खिचाकर सोशल मीडियापर डालनेसे कोई हल नहीं निकल सकता। हमें नहीं भूलना चाहिए कि आर्थिक गतिविधियां ठप होनेसे कितने युवा बेरोजगार हुए हैं तो कितनोंके वेतनमें कटौती हुई है। बेरोजगारीके चलते या आयके स्रोत प्रभावित होनेसे कितने ही लोगोंने जीवनलीला समाप्त की है तो कितनोंके ही हालात प्रभावित हुए हैं। ऐसेमें सरकारसे अधिक अब आम आदमी और सामाजिक एवं गैरसरकारी संघटनोंका दायित्व अधिक हो जाता है। सरकारको भी ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे गतिविधियां ठप नहीं हो क्योंकि इसका दंश अर्थव्यवस्था भुगत चुकी है। ऐसेमें नो मास्क नो एण्ट्रीके स्लोगन लगानेकी नहीं इसकी सख्तीसे पालनाकी आवश्यकता हो जाती है। नहीं तो आनेवाला कोरोनाका दौर और भी अधिक भयावह होगा यह हमें नहीं भूलना चाहिए।