कोरोना वायरसके उत्पत्ति स्थलके यक्ष प्रश्नपर चीन एक बार पुन: सन्देहके घेरेमें फंस गया है। पहले भी यह सन्देह जताया गया था कि चीनके वुहान इंस्टीट्यूट आफ बायोलाजी प्रयोगशालामें प्राणघातक कोरोना वायरसको विकसित किया गया था। इस बार अमेरिकी समाचार-पत्र वाल स्ट्रीट जर्नलने अमेरिकी खुफिया रिपोर्टके हवालेसे दावा किया है कि काफी पहले नवम्बर, २०१९ में चीनकी वुहान प्रयोगशालाके तीन शोधकर्ता बीमार हुए थे और उन्हें अस्पतालमें इलाजके लिए भर्ती किया गया था। इनमें कोरोना जैसी मौसमी बीमारियोंके लक्षण थे। इस घटनाके एक महीनेके बाद चीनमें कोरोनाके पहले मामलोंकी पुष्टिï हुई। शोधकर्ताओंके बीमार होने और अस्पतालमें भर्ती कराये जानेसे इस आशंकाको बल मिलता है कि कोरोना वायरसकी उत्पत्ति स्थल चीन ही है। इसकी विस्तृत जांचकी भी मांग उठी जिससे यह पता लग सके कि कोरोना प्रयोगशालासे लीक हुआ था या नहीं। चीनके वैज्ञानिक और अधिकारी वुहान प्रयोगशालासे कोरोनाके लीक होनेके दावोंको खारिज करते हैं लेकिन इसके समर्थनमें उनके पास कोई ठोस और विश्वसनीय प्रमाण भी नहीं है। फरवरीमें अन्तरराष्टï्रीय विशेषज्ञोंका एक दल चीन गया था और उसने वुहान प्रयोगशालाका भी दौरा किया लेकिन जब वैज्ञानिकोंने कोविड-१९ के प्रारम्भिक मरीजोंका डाटा मांगा तो चीनने इसे देनेसे इनकार कर दिया। इससे चीनपर सन्देह बढऩा स्वाभाविक है। चीनने विश्व स्वास्थ्य संघटनको भी अपने प्रभावमें ले लिया था। विश्व स्वास्थ्य संघटनका एक दल जनवरीमें ही चीनके कई अस्पतालोंमें गया था और अन्तमें जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी थी उसमें कहा गया था कि वायरसके स्रोतकी जानकारी हमें नहीं मिली। यह रिपोर्ट भी पूर्वाग्रहित लगती है। तत्कालीन अमेरिकी राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्पने उसी समय सन्देह व्यक्त किया था कि कोरोना वायरसकी उत्पत्ति चीनकी प्रयोगशालासे ही हुई है। इसके साथ ही अमेरिकी संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फसीने कोरोना वायरसके कुदरती होनेपर भी सवाल खड़ा कर दिया है और कहा है कि इसे स्वीकार करना आसान नहीं है कि इसकी उत्पत्ति प्राकृतिक तौरपर हुई है। इसकी जांच होनी चाहिए कि इस मामलेमें चीनमें क्या हुआ। इससे उन दावोंको फिर बल मिला है कि कोरोना चमगादड़ोंसे मनुष्योंमें नहीं आया है, बल्कि यह चीनकी प्रयोगशालासे फैला है। जो भी हो, यह पूरा प्रकरण जांचका विषय है और इसकी निष्पक्ष जांच भी निश्चित रूपसे होनी चाहिए। इसके लिए पूरे विश्व समुदायको एकजुट होना पड़ेगा जिससे कि चीनका चेहरा बेनकाब हो सके। इस महामारीसे विश्वमें लगभग ३४ लाख ३८ हजार लोगोंकी मृत्यु हुई और लगभग १७ करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। इसलिए इस प्रश्नका उत्तर मिलना ही चाहिए कि कोरोनाका उत्पत्ति स्थल कहां है।
बैंक धोखाधड़ीमें वृद्धि
बैंकोंमें कर्ज धोखाधड़ीके मामले थमनेका नाम नहीं ले रहे हैं। पूर्वकी फर्जीवाड़ेकी घटनाओंसे कोई सबक न लेते हुए कर्ज देनेकी प्रक्रिया यथावत जारी रखना अत्यन्त चिन्ताका विषय है। बैंकिंगकी शीर्ष संस्था आरबीआईने सूचनाके अधिकारके तहत जो जानकारी दी है वह बैंकोंमें व्याप्त भ्रष्टïाचार और घोर लापरवाहीको उजागर करनेवाली है। आरबीआईके अनुसार देशमें संचालित बैंकों और वित्तीय संस्थानोंके साथ मार्च २०२१ तक ४.९२ लाख करोड़ रुपयेका कर्ज फर्जीवाड़ा हुआ है जिसमें सरकारी और निजी बैंक दोनों शामिल हैं। इस सम्बन्धमें ९० बैंकों और वित्तीय संस्थानोंने ३१ मार्च, २०२१ तक धोखाधड़ीके ४५,६१३ मामजे दर्ज कराये हैं। देशके सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआईके साथ सर्वाधिक ७८,०७२ करोड़ रुपयेका लोन फ्राड हुआ जबकि पंजाब नेशनल बैंकके साथ ३९,७३३ करोड़, बैंक आफ इण्डियाके साथ ३२,२२४ करोड़, यूनियन बैंकके साथ २९,५७२ और बैंक आफ बड़ौदाके साथ २७,२४१ करोड़ रुपयेकी धोखाधड़ी हुई। कुल कर्ज धोखाधड़ीमें शीर्ष पांच बैंकोंका योगदान ४२ प्रतिशत है। ये सभी सरकारी बैंक हैं। इसके बाद निजी बैंकोंका नम्बर आता है, जिसमें आईसीआईसीआई बैंकके साथ सबसे अधिक २६,०८४ करोड़ रुपयेकी धोखाधड़ी हुई। दूसरे और तीसरे नम्बरपर यस बैंक और एक्सिस बैंक रहे। बैंकोंमें धोखाधड़ीकी घटनाएं नयी नहीं हैं। इसके पूर्व भी शराब कारोबारी विजय माल्या, हीरा व्यापारी नीरव मोदी और उसका मामा मेहुल चौकसीने बैंकोंको हजारों करोड़ रुपयेका चूना लगाकर विदेश भाग गये लेकिन बैंकोंने इसे कभी गम्भीरतासे नहीं लिया और धोखाधड़ीका यह खेल अब भी बदस्तूर जारी है जो एक सोची-समझी साजिशकी ओर इशारा करती है। इसमें बैंक अधिकारियोंकी प्रमुख भूमिकासे इनकार नहीं किया जा सकता है। बैंकोंमें धोखाधड़ीसे देशकी अर्थव्यवस्थापर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसेमें आरबीआईकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बैंकोंसे दिये जानेवाले कर्जपर पैनी नजर रखे जिससे फर्जीवाड़ेपर अंकुश लगाया जा सके।