सम्पादकीय

कोरोना कालमें मानसिक नियंत्रण जरूरी


 प्रो. संजय द्विवेदी

कोरोनाके इस दौरने हर किसीको किसी न किसी रूपमें गंभीर रूपसे प्रभावित किया है। किसीने अपना हमसफर खोया है तो किसीने अपने घर-परिवारके सदस्य, दोस्त या रिश्तेदारको खोया है। इन अपूरणीय क्षतिका किसी न किसी रूपमें दिलोदिमागपर असर पडऩा स्वाभविक है, लेकिन मनोचिकित्सकोंका कहना है कि ऐसी स्थितिका लम्बे समयतक बने रहना आपको मानसिक तौरपर बीमार बना सकता है। इसलिए जितनी जल्दी हो सके उस दौरसे उबरकर आगेके रास्तेको सुगम एवं सरल बनानेके बारेमें विचार करें। इसके लिए परिजनोंके साथ मनोचिकित्सक या काउंसलरकी भी मदद ली जा सकती है। जो सदमेसे उबारनेमें काफी मददगार साबित हो सकते हैं। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊके मनोचिकित्सा विभागके एसोसिएट प्रोफेसर डा. आदर्श त्रिपाठीका कहना है कि जिस तरीकेसे शरीरके हर अंगका इलाज संभव है, उसी तरहसे मानसिक स्वास्थ्यका भी इलाज मौजूद है। बहुत सारी समस्याएं काउंसलरसे बात करके और उनके द्वारा सुझाये गये उपाय अपनाकर ही दूर हो जाती हैं तो कुछ दवाओंके सेवनसे दूर हो जाती हैं। इसलिए सरकारका भी पूरा जोर है कि जो लोग कोरोनाको मात दे चुके हैं लेकिन दिलोदिमागसे उसे भुला नहीं पाये हैं, उनको मानसिक तौरपर संबल देनेके साथ ही उन लोगोंकी भी काउंसिलिंग एवं इलाजपर ध्यान दिया जाय जो अपने किसी करीबीको खोनेके गमसे उबरनेमें दिक्कत महसूस कर रहे हैं।

मानसिक तनावकी स्थितिमें भी कोई गलत कदम न उठायें, जिसको अपने सबसे करीब समझते हैं उससे बात करें। यकीन माने बात-बातमें कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा। ऐसेमें यदि परिवारके साथ हैं तो आपसमें बातचीत करते रहें। एक-दूसरेकी बातको ध्यानसे सुनें। बेवजह टोकाटाकीसे बचें। यदि अकेले रह रहे हैं तो कोई फिल्म या सीरियल देखें और किताबें पढ़ें। ध्यान, योग और प्राणायामका भी सहारा ले सकते हैं। अपने करीबीसे वीडियो कॉल या फोन करके भी बातचीत कर सकते हैं, इससे भी मन हल्का होगा और हर समय दिमागमें आ रहे नकारात्मक विचार दूर होंगे। यह मानकर चलें कि यह वक्त किसीके लिए भी बुरा हो सकता है, किन्तु ऐसी स्थिति हमेशा तो नहीं बनी रहनेवाली। यह वक्त भी गुजर जायगा। जो वक्त गुजर गया, उसमें से ही कुछ सकारात्मक सोचें। अपने अन्दर साहस लायें। शुरूमें भले ही मन न करे फिर भी हर दिनकी कुछ ऐसी कार्ययोजना बनायें जो सार्थकता और उत्पादकतासे भरपूर हो। कुछ दिनतक ऐसा करनेसे निश्चित रूपसे उसमें मन लगने लगेगा और कोरोना कालके उस बुरे दौरकी छाप भी दिलोदिमागसे हटने लगेगी। दिनचर्यामें ४५ मिनटका समय शारीरिक गतिविधियोंके लिए जरूर तय करें। नकारात्मक समाचारोंसे दूरी बनानेमें ही ऐसे दौरमें भलाई है। तनाव या अवसादसे उबरनेके लिए नशीले पदार्थोंका सहारा भूलकर भी न लें। तनाव एवं अवसादसे मुक्ति पानेका सबसे उपयोगी तरीका यही है कि दूसरोंके लिए कुछ अच्छा सोचें और उनकी भलाईके लिए कदम बढायें। यह भलाई किसी भी रूपमें हो सकती है, जैसे- भावनात्मक रूपसे या आर्थिक रूपसे या किसी अन्य मददके रूपमें। जब दूसरोंकी भलाई या अच्छाईके बारेमें सोचते हैं या मदद पहुंचाते हैं तो वह निश्चित रूपसे आपको एक आंतरिक शांति और सुकून प्रदान करती है।

कोरोनाके लक्षण आनेके बाद भी उसे सामान्य सर्दी, खांसी एवं जुकाम-बुखार मानकर नजरअन्दाज करनेकी भूल हुई हो तो न घबराये। जांचमें देरी करनेकी चूक हुई हो, रिपोर्टके इन्तजारमें जरूरी दवाएं न शुरू करनेके चलते स्थिति गंभीर बननेसे अपनोंको खोने जैसे सवाल बार-बार दिमागमें कौंधते ही हैं। संयम बनाये रखें। घबरानेसे कुछ हासिल होनेवाला नहीं है। उनको बतायें कि जैसे ही कोरोनासे मिलते-जुलते लक्षण नजर आयें तो अपनेको आइसोलेट करनेके साथ ही जांच करायें। स्वास्थ्य विभाग द्वारा तय दवाओंका सेवन शुरू कर दें। ऐसा करनेसे कोरोना गंभीर रूप नहीं ले पायेगा। बहुत कुछ संभव है कि बिना अस्पताल गये कोरोनाको कम समयमें घरपर रहकर ही मात दे सकते हैं। चिकित्सा वैज्ञानिकोंका कहना है कि नींदको भी एक तरहकी थेरेपी माना जाता है। चिंताके चलते पूरी नींद न लेना अवसादकी ओर ले जाता है। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, सिर और शरीरमें दर्द, थकान, याददाश्तमें कमी आना, चिड़चिड़ापन, क्रोधकी अधिकता, हार्मोनका असंतुलन, मोटापा, मानसिक तनाव जैसी समस्याएं अनिद्राके कारण जन्म लेती हैं। कई बार चिकित्सक पर्याप्त नींदकी सलाह देकर रोगोंसे छुटकारा दिलानेका काम करते हैं। हर व्यक्तिको सात-आठ घंटेकी नींद अवश्य लेनी चाहिए। टीवी, लैपटॉप एवं मोबाइलपर ज्यादा समय न देकर सेहतके लिए अनमोल नींदको जरूर पूरी करें जो कि ताजगी और फुर्ती देनेका काम करेगी। ध्यान, योग और प्राणायामके जरिये एकाग्रता ला सकते हैं, नकारात्मक विचारोंसे मुक्ति दिलानेमें भी यह बहुत ही कारगर हैं। कोरोना कालमें बहुतसे लोगोंने इसे जीवनमें अपनाया है और फायदेको भी महसूस कर रहे हैं। इम्यून सिस्टमको भी इससे बढ़ाया जा सकता है। हमारे खानपानका असर शरीर ही नहीं, बल्कि मनपर भी पड़ता है, इसलिए संतुलित आहारके जरिये भी मनको प्रसन्न रख सकते हैं। भारतीय थाली (दाल, चावल, रोटी, सब्जी, सलाद, दही) संतुलित आहारका सबसे अच्छा नमूना है। संतुलित भोजन हमारे शरीरके साथ ही मानसिक स्थितियोंको स्वस्थ बनाता है। विश्व स्वास्थ्य संघटनसे लेकर सरकारतकको इस बातका अहसास है कि कोरोनाके चलते मानसिक स्वास्थ्यकी समस्याएं बढ़ सकती हैं। अनेक राज्य सरकारोंके स्वास्थ्य विभागों, सामाजिक संस्थाएं और चिकित्सा संस्थाएं लोगोंकी मदद कर रही हैं। जरूरत है धैर्यसे इस संकटसे निबटने की। भरोसा कीजिए हमारे संकट कम होंगें और जिंदगी मुस्कुरायगी।