आर.के. सिन्हा
कोरोना वायरसकी दूसरी लहरने भारतको घुटनेपर आनेपर मजबूर कर दिया है। ऐसी घटनाओंको लोग भूल जाना चाहते हैं और बहुत जल्दी भूल भी जाते हैं। यदि बात गुजरे सौ-सवा सालोंकी करें तो स्पेनिश फ्लूके कारण भी भारतमें बहुत भारी तबाही मची थी। करोड़ों लोग मारे गये थे। गांवके गांव साफ हो गये थे। भारतमें इस महामारीको वह सैनिक लाये जो प्रथम विश्वयुद्धमें लड़ाई लडऩे गये थे। इसने १९१८ के बाद देशभरमें भयंकर तबाही मचायी थी। साहित्यमें भी स्पेनिश फ्लू या अन्य महामारियोंका जिक्र न के बराबर हुई। स्पेनिश फ्लूमें भारतकी लगभग दो करोड़ आबादी मर गयी थी जबकि पूरी आबादी ही बीस करोड़के लगभग थी। यानी दसमें एक व्यक्ति मर गया था। लेकिन न कोई उपन्यास, न कहानी, न कविता। प्रेमचंद जैसे उपन्यासकार और टैगोर जैसे कवि उस समय सक्रिय थे। निरालाजीके परिवारके कई सदस्य शिकार हुए थे जिनमें उनकी पत्नी भी थीं। अपनी आत्म कथ्यात्मक कहानी कुल्ली भाटमें उन्होंने इस महामारीका हल्का-सा उल्लेख किया है। लेकिन उनके समग्र साहित्यको देखते हुए यह कुछ भी नहीं है। भारतने हैजा, चेचक, प्लेग और पोलियो जैसी महामारियोंको भी झेला है।
प्लेगका मुख्य कारण खुली नालियां, खराब सीवेज प्रणाली आदि ही रही थीं। सूरतके स्थानीय निकायने कचरा साफ किया और नालियोंको खोला और इस प्रकार प्लेगके फैलावपर नियंत्रण पाया था। यदि बात बिल्कुल हालके दौरकी करें तो डेंगू और चिकनगुनियाका प्रकोप भी अच्छाखासा रहा। दोनों ही मच्छरजनित रोग थे और देशके विभिन्न हिस्सोंमें गंदे पानीके ठहरावने इन मच्छरोंके लिए प्रजनन आधार प्रदान किया। इन्होंने पूरे भारतमें लोगोंको प्रभावित किया था। इन प्रकोपोंके कारण देशके कई हिस्से प्रभावित हुए और राजधानी दिल्लीमें ही सबसे अधिक मरीज सामने आये थे। अब बात कर लें ओडिशामें २०१४ में पीलियाके प्रकोप की। इसका मुख्य कारण दूषित पानी ही था। पीनेके पानीकी पाइपलाइनोंमें गन्दा पानी प्रवेश कर गया जो कि इस बीमारीका कारण बना था। इसी दौरान स्वाइन फ्लूका प्रकोपसे भी देशको सामना करना पड़ा। स्वाइन फ्लू एक प्रकारका इन्फ्लूएंजा वायरस ही है। इससे २०१४ में गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र और तेलंगाना वायरसके कारण सबसे अधिक प्रभावित राज्योंमेंसे थे। मार्च २०१५ तक कई सार्वजनिक जागरूकता अभियानोंके बाद भी, देशभरमें लगभग ३३ हजार मामले सामने आये और बहुतसे लोगोंने अपनी जान गंवायी। कहनेका भाव यह है कि महामारियोंसे हमारा संपर्क हर कालमें होता ही रहा है। परन्तु दुख देनेवाली स्मृतियोंको लोग भूल जाना चाहते हैं। जिन्दगी खुशियां मनानेके लिए है, न कि दु:खकी घडिय़ोंको याद रखनेके लिए। इस लिहाजसे मुसलमानोंका शिया समुदाय अवश्य अपवाद है। वह मातम भी मनाते हैं त्योहारकी तरह हैं। क्या देश उत्तर प्रदेशमें मच्छरोंके काटनेके कारण, २०१७ में गोरखपुर शहरमें सैकड़ों बच्चोंकी मौतको भूल सकता है। इस वायरल संक्रमणसे मस्तिष्ककी सूजन होती है, जिसके चलते शारीरिक विकलांगता होती है और कुछ मामलोंमें रोगीकी जान चली जाती है। अब दुनिया और भारत कोरोना वायरस रोगको झेल रहा है। यह २०१९ में शुरू हुई थी। इसके संक्रमणके संकेतोंमें श्वसन संबंधी लक्षण, बुखार, खांसी, सांस लेनेमें तकलीफ और सांस लेनेमें कठिनाई शामिल हैं। अधिक गंभीर मामलोंमें संक्रमण निमोनिया, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम, गुर्देकी विफलता और यहांतक कि मृत्युका कारण बन सकता है।
अब कोरोनाको शिकस्त तो देनी ही होगी। भारतमें कोरोनाके खिलाफ टीकाकरण अभियानकी शुरुआतसे लेकर अबतक टीकेकी लगभग अ_ïारह करोड़ लोगोंको खुराक दी जा चुकी है। भारतने कोरोनाके प्रभावको कम करनेके लिए दो तरहके टीका भी ईजाद कर लिया। निश्चित रूपसे कोरोनापर विजय पानेकी दिशामें भारतने दुनियाको संजीवनी बूटी दे दी है। भारतके वैज्ञानिक विश्वभरके लिए एक मिसाल बन चुके हैं। हमारे देशमें बनी वैक्सीन दुनियाके कई देशोंमें जा रही है। इसके चलते दुनियाके तमाम बड़े देश भारतके इस प्रयासकी सराहना कर रहे हैं। कोरोनाकी सफल वैक्सीन ईजाद करके भारतने सिद्ध कर दिया है कि मानवजातिकी सेवाके लिए भारत सदैव प्रतिबद्ध है। इस वैक्सीनको लेकर शुरूमें कुछ आशंकाएं और संदेह भी जाहिर किये जा रहे थे। उन आशंकाओं, अफवाहों और भ्रमोंको दूर करनेके लिए एम्स दिल्लीके डायरेक्टर डा. रणदीप गुलेरियाने पहले खुद ही कोरोना वैक्सीनकी डोज ली। यह कोई सामान्य बात तो नहीं है। भारतमें कोरोनाके खिलाफ टीकाकरणकी शुरुआतकी दिशामें यह एक बड़ा कदम था। कोरोना वायरसने दुनियाके हरेक इनसानकी आंखोंसे आंसू निकलवा दिये। पृथ्वीपर मौजूद हरेक धर्म, जाति, रंग, लिंग आदिसे संबंधित मनुष्यकी ईश्वरसे यही प्रार्थना थी कि कोरोना वायरसकी कोई वैक्सीन ईजाद हो जाय, ताकि दुनिया फिरसे अपनी गतिसे चलने लगे। कोरोना वायरसको लेकर कहीं भी टीका ईजाद होता है तो मानव जातिके लिए राहतकी बात होती। परन्तु प्रत्येक भारतीय आज इस बातपर गर्व कर सकता है कि भारतमें भी एक प्रभावी कोरोना वायरसका टीका ईजाद कर लिया गया।
मनुष्यकी जिजिविषाके सामने कोई भी महामारी टिक नहीं सकती। इसलिए ही तो मानव तमाम अवरोधोंके बावजूद आगे बढ़ता रहा है। अब कोरोनाका भी नाश होगा। दुनिया फिरसे पहलेकी तरह अपनी गतिसे चलेगी। परन्तु यह तब ही संभव है जब सारा देश कोरोनासे बचनेके लिए टीका लगवा ले और उसे भाजपाका टीका कहकर देशके वैज्ञानिकोंका अपमान न करे। सरकारका आलोचना करनेवालोंको यह भी सोचना चाहिए कि आजादीके बादसे अबतक सभी पूर्ववर्ती सरकारोंने विभिन्न तरहकी महामारियोंपर कैसे नियंत्रण किया था और यदि उनका नियंत्रण मौजूदा सरकारसे बेहतर था तभी मोदी सरकारकी आलोचना करें अन्यथा नहीं।