सम्पादकीय

चीनी महासाजिशका शिकार विश्व


सुरेश गांधी    

चीनमें बनी कोरोनारूपी जैविक हथियारके इस्तेमालकी आशंका २०१९ में ही उस वक्त होने लगी थी जब ट्रम्प अमेरिका और शी जिनपिंगमें ठनी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि कहीं दोनों देशोंके बीच जंग न हो जाय। उसी दौरान गलवानमें सीमा विवादको लेकर भारत और चीनके बीच तनाव जैसे हालात थे। जिस तरह दोनों देशोंकी सेनाएं आमने-सामने थीं, आशंका थी कि कहीं जंग न हो जाय। इसी बीच कोरोना दस्तक देता है और पूरी दुनियामें कहर बरपाने लगता है। कोरोनाके आतंकसे इस वक्त दुनियामें १६ करोड़ लोग संक्रमित हैं। ३६ लाख मरीजोंकी जान जा चुकी है। इनमेंसे छह करोड़ कोरोना केस भारत और अमेरिकामें हैं। सबसे ज्यादा मौतें भी यहीं हुई हैं। वैसे भी वर्तमानमें चीनका दुनिया सबसे बड़े दुश्मन भारत और अमेरिका हैं। यही वजह है कि यह सवाल उठ रहे हैं कि चीनके वुहानसे निकली कोरोना महामारी है या कोई महासाजिश तो नहीं है? अमेरिकी खुफिया एजेंसीकी मानें तो पीएलएसे जुड़े वैज्ञानिक और हथियार विशेषज्ञोंने भी उस दावेका समर्थन किया है, जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या कोरोना चीनका बायोलॉजिकल वेपन है? क्या चीन वुहानकी लैबमें अब भी जैविक हथियार बना रहा है? क्या चीन तीसरे विश्वयुद्धकी तैयारी इन्हीं जैविक हथियारोंसे कर रहा है? क्या चीन हर वह कोशिश कर रहा है जिससे दुनियाकी राजनीतिको उसकी लैबसे कंट्रोल किया जा सके?

रिपोर्टके मुताबिक चीनी वैज्ञानिक और हेल्थ ऑफिसर्स २०१५ में ही कोरोनाके अलग-अलग स्ट्रेनपर चर्चा कर रहे थे। उस समय चीनी वैज्ञानिकोंने कहा था कि तीसरे विश्वयुद्धमें इसे जैविक हथियारकी तरह उपयोग किया जायगा। इस बातपर भी चर्चा हुई थी कि इसमें हेरफेर करके इसे महामारीके तौरपर कैसे बदला जा सकता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसीमें खुलासा हुआ है कि वल्र्ड वार-३ के अंदेशेमें और उसमें जीत हासिल करनेके लिए चीन जैविक हथियारका सहारा लेगा। बस सही वक्तकी तलाशमें है चीन। वह वक्त आनेके बाद ड्रैगन दुनियाके ऊपर जैविक हथियारका इस्तेमाल कर सकता है। खुले तौरपर चीनके दो दुश्मन हैं। अमेरिका और भारत। कोरोनाकी सबसे ज्यादा तबाही इन्हीं देशोंपर आयी है। दुनियामें कोरोनाके मामलोंमें भी भारत और अमेरिका ही टॉपपर हैं। इसीलिए लगातार अमेरिकी नेता, अधिकारी और खुफिया एजेंसियां यह सवाल उठा रही हैं कि कोरोनाकी शुरुआत कहांसे हुई, इसकी जांच होनी ही चाहिए और चीनका मकसद भी दुनियाके सामने आना चाहिए। वैसे भी इतिहास गवाह है कि जब भी इस तरहकी कोई अनसुलझी पहेली सामने आती है तो साजिशोंकी बू आने लगती है। यह सवाल पूरी दुनियाकी फिजामें तैर रहा है कि कहीं यह किसी जैविक युद्ध या बायोलॉजिकल वारका प्रयोग तो नहीं है या फिर चीनने जैविक आतंकवाद या बायोटेररिज्मकी शुरुआत कर दी है? क्योंकि बायोलॉजिकल वैपन कहर ढानेवाला सस्ता और असरदार हथियार है। यह वह हथियार है जो किसी मिसाइल, बम, गोलीसे भी कई गुना खतरनाक हैं।

चीनकी मशहूर वैज्ञानिक और महामारी विशेषज्ञ ली मेंग येनने अमेरिकी रिपोर्टपर मुहर लगाते हुए कहा है कि चीनने जानबूझकर कोरोना वायरसको दुनियामें फैलाया है। वह चाहता है कि वह युद्धमें जैविक हथियारका इस्तेमाल कर पूरी दुनियापर उसका राज हो। यह अलग बात है कि कोरोनाका प्रसार और उसके बढ़ते प्रकोपको लेकर दुनियाभरके देशोंकी भौंहें एक बार फिर चीनकी ओर तन गयी हैं। इस घातक वायरसको लेकर चीनके दावोंको कोई भी देश माननेको तैयार नहीं है कि यह वुहानके जानवर मार्केटसे पूरी दुनियामें फैला है। हर तरफसे एक ही आवाज उठ रही है कि जिस चीनसे कोरोना वायरस पूरी दुनियामें फैला है, वह इतना सुरक्षित कैसे है? जबकि भारत समेत दुनियाभरके देश पिछले डेढ़-दो सालसे इससे जंग लड़ रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि चीनने इस जैविक हथियार बनाकर दुनियापर हमला कर दिया हो? आशंका है कि चीनके सैन्य वैज्ञानिकोंने तीसरे विश्व युद्धमें जैविक हथियारके इस्तेमालकी भविष्यवाणी भी की थी। चीनी वैज्ञानिकोंने सार्स कोरोना वायरसकी चर्चा जेनेटिक हथियारके नये युगके तौरपर पहले ही कर चुके है। पीएलएके दस्तावेजोंमें इस बातकी चर्चा है कि एक जैविक हमलेसे शत्रुकी स्वास्थ्य व्यवस्थाको ध्वस्त किया जा सकता है। पीएलएके इस दस्तावेजमें अमेरिकी वायुसेनाके कर्नल माइकल जेके अध्ययनका भी जिक्र है, जिन्होंने भविष्यवाणी की थी कि तीसरा विश्वयुद्ध जैविक हथियारोंसे लड़ा जायगा।

इस रिपोर्टमें यह भी दावा किया गया है कि २००३ में जिस सार्सका चीनपर अटैक हुआ था, वह हो सकता है कि एक जैविक हथियार हो, जिसे आतंकियोंने तैयार किया हो। इन कथित दस्तावेजोंमें इस बातका भी जिक्र किया गया है कि इस वायरसको कृत्रिम रूपसे बदला जा सकता है और इसे आदमीमें बीमारी पैदा करनेवाले वायरसमें बदला जा सकता है। इसके बाद इसका इस्तेमाल एक ऐसे हथियारके रूपमें किया जा सकता है, जिसे दुनियाने पहली बार कभी नहीं देखा होगा। रिपोर्टमें इस बातपर भी सवाल उठाया गया है कि जब भी वायरसकी जांच करनेकी बात आती है तो चीन पीछे हट जाता है। आस्ट्रेलियाई साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट रॉबर्ट पॉटरने बताया कि यह वायरस किसी चमगादड़के मार्केटसे नहीं फैल सकता। चीनी रिसर्चपर गहरी स्टडी करनेके बाद रॉबर्टने कहा, वह रिसर्च पेपर बिल्कुल सही है। इससे पता चलता है कि चीनी वैज्ञानिक क्या सोच रहे हैं।

पिछले साल अमेरिकाके तबके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्पने कई बार सार्वजनिक तौरपर कोरोनाको ‘चीनी वायरसÓ कहा था। उन्होंने कहा था, यह चीनकी लैबमें तैयार किया गया और इसकी वजहसे दुनियाका हेल्थ सेक्टर तबाह हो रहा है, कई देशोंकी इकोनॉमी इसे संभाल नहीं पायंगी। ट्रम्पने तो यहांतक कहा था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियोंके पास इसके सुबूत हैं और वक्त आनेपर यह दुनियाके सामने रखे जायंगे। फिलहाल, ट्रम्प चुनाव हार गये और बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशनने अबतक इस बारेमें सार्वजनिक तौरपर कुछ नहीं कहा। हालांकि, ब्लूमबर्गने पिछले दिनों एक रिपोर्टमें इस तरफ इशारा किया था कि अमेरिका इस मामलेमें बहुत तेजी और गंभीरतासे जांच कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्धमें जब अमेरिकाने जापानके शहर हिरोशिमा और नागासाकीपर परमाणु बम गिराया तो उसके ऐसे दुष्परिणाम सामने आये कि दुनियामें मानवताको बचानेके लिए परमाणु नीतिपर विश्वस्तरीय मंथन हुआ। परमाणु बमपर प्रतिबंधके लिए कड़े नियम-कानून बने। जैविक हथियारोंके प्रतिबंधके लिए विश्वस्तरीय नीति बननी चाहिए। लेकिन यह नीति न लोगोंने बनायी सिर्फ अपनेको ताकतवर दिखानेके लिए। खुद तो परमाणु शक्तिको अपनाते रहे परन्तु विकासशील देशोंको उपदेश देते रहे। इस तानाशाही नीतिका परिणाम यह हुआ कि अधिकतर देशोंने परमाणु बम बना लिया। यहांतक कि आतंकियोंको शरण देनेवाले पाकिस्तानके पास भी परमाणु बम है। यह सब हथियारोंके धंधे और होड़का ही दुष्परिणाम दुनियाके सामने आया है।

यह विभिन्न देशोंके शासकोंकी गैर-जवाबदेही, जनहितसे ज्यादा तवज्जो अपने धंधोंको देनेका ही नतीजा है कि जहां पूरी दुनिया कोरोना जैसे जैविक हथियारसे जूझ रही है, वहीं प्रभावशाली देशोंने तीसरे विश्वयुद्धकी भूमिका बना दी है। कोरोनाकी उत्पत्तिने यह साबित कर दिया है कि बारूदके ढेरपर बैठी दुनियाके सामने मौजूदा समयमें सबसे अधिक खतरा जैविक हथियारोंसे है। समस्याके निदानके लिए प्रयास करना प्रकृतिका नियम है। आज परिस्थिति बड़ी विषम है। निदानके लिए प्रयास करनेवाले लोग और तंत्र खुद इस मकडज़ालमें फंसे हुए हैं। इस तरहकी परिस्थितियोंसे निबटनेके लिए बुद्धिजीवी और जागरूक लोग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। कुछ भी हो प्रकृति और मानवता दोनों खतरेमें है और किसी भी हालतमें इसे बचाना है। इसके लिए विश्वस्तरीय प्रयास होने ही चाहिए।