ब्रिटेन के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि वयस्कों में चिंता और अवसाद का भी खतरा बढ़ गया है। विज्ञानियों के अनुसार, अल्फा वैरिएंट की तुलना में डेल्टा वैरिएंट से लोगों को अधिक परेशानी झेलनी पड़ी। ओमिक्रोन वैरिएंट भी डेल्टा के समान ही खतरनाक साबित हुआ। इससे कई प्रकार की न्यूरोलाजिकल जोखिम संभावित है।
इस अध्ययन से पता चलता है कि इस प्रकार के जोखिम संक्रमण के पहले छह माह में अधिक होते हैं, जबकि कुछ मामलों में यह खतरा कम से कम दो साल तक रह सकता हैं। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पाल हैरिसन ने बताया कि शोध से प्राप्त परिणाम चिंताजनक हैं। इससे पता चलता है कि महामारी के थमने के बाद भी इसका असर लोगों को बीमार बनाता रहेगा। इस अध्ययन और कोविड के खतरों को समझने के लिए कई स्तर पर व्यापक शोध की जरूरत है। यह जानना जरूरी है कि संक्रमण से उबरने के बाद भी यह कैसे लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल रहा है और इससे उबरने और इलाज के लिए क्या किया जा सकता है।
इस शोध के लिए विज्ञानियों ने कई स्तरों पर दो वर्षों का डाटा एकत्र किया। अमेरिका के 14 न्यूरोलाजिकल और मनोरोग निदान के आंकड़ों का विश्लेषण किया। रिसर्च के लिए विज्ञानियों ने 12,84,437 लोगों को शामिल किया, जिन्हें 20 जनवरी 2020 के बाद कोविड संक्रमण हुआ था। शोध में 1,85,748 बच्चे, 8,56,599 वयस्क (18 से 64 वर्ष) और 2,42,101 बुजुर्गों को शामिल किया गया। शोध में पाया गया कि वयस्कों में अवसाद, चिंता और मनोरोग का जोखिम स्पष्ट तौर पर बढ़ गया। अन्य रोगों की तुलना में कोरोना संक्रमण का दुष्प्रभाव सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य पर दिखा।
18 से 64 उम्र वर्ग के वयस्क, जिन्हें दो वर्ष पहले कोविड हुआ था, उनकी संज्ञानात्मक क्षमता, मांसपेशियों की बीमारी का जोखिम अधिक था। 65 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्क जिन्हें दो वर्ष पूर्व कोविड हुआ था, उनमें ब्रेन फाग, मनोभ्रंश या मानसिक विकार की घटना अधिक देखी गई। वयस्कों की तुलना में बच्चों में इस प्रकार का जोखिम कम था।
हालांकि बच्चों में कुछ स्थितियों का इलाज होने की संभावना अधिक थी, जिनमें कोविड-19 के बाद के दो वर्षों में मस्तिष्क के दौरे और मानसिक विकार शामिल थे। अल्फा वैरिएंट के आने से ठीक पहले और ठीक बाद कोविड-19 के छह महीने बाद न्यूरोलाजिकल और मनोरोग के इलाज की चुनौतियों में भी थोड़ा बदलाव देखा गया।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, यूके के जोनाथन रोजर्स और प्रोफेसर ग्लिन लुईस ने कहा, जैसे ही हम महामारी की तीव्र लहर से निकलते हैं, यह समझना महत्वपूर्ण होता है कि आगामी जोखिम क्षणिक हैं या दूरगामी प्रभाव वाले।