नई दिल्ली। लंबी खींचतान के बाद अब कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व व फैसले का काल शुरू हो सकता है। दरअसल पिछले दो दिनों में दो बार पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने नाराज चल रहे वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर इसका संकेत दे दिया है । गुरुवार को राहुल गांधी और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की मुलाकात हुई थी जिसमें केंद्रीय संगठन से लेकर हरियाणा प्रदेश तक में बदलाव का संकेत दिया गया था।
शुक्रवार को जी -23 के अगुवा गुलाम नबी आजाद और पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की मुलाकात में शेष बदलावों को लेकर भी चर्चा हुई। खुद आजाद की बातों से इसका संदेश मिलने लगा है कि अध्यक्ष के लिए तो चुनाव होंगे ही, हर स्तर पर सामूहिक निर्णय से ऐसे लोगों को स्थान दिया जाएगा जो प्रदर्शन का माद्दा रखते हैं।
योग्यता अहम होगी चाटुकारिता नहीं। जबकि नीतिगत फैसलों के लिए संसदीय बोर्ड को फिर से अस्तित्व में लाया जा सकता है। उस बोर्ड के फैसले से पार्टी लाइन तय होगी और हर व्यक्ति को उसका अनुशरण करना होगा।
पिछले दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जी-23 के सदस्य कपिल सिब्बल समेत कुछ नेताओं की ओर से भले ही गांधी परिवार से मुक्ति का लगभग ऐलान कर दिया गया था, लेकिन अब पूरी कोशिश यह है कि गांधी परिवार की मौजूदगी में ही सामूहिक नेतृत्व को स्थान मिल जाए। कोशिश दोनों तरफ से हो रही है। यही कारण है कि मुलाकात की पहली शुरूआत राहुल गांधी की ओर से हुई जो हर किसी के निशाने पर हैं।
दूसरी कोशिश सोनिया गांधी की ओर से जिनमें अभी भी यह क्षमता है कि लोगों को इकट्ठा जोड़कर रख सकें। शुक्रवार को सोनिया से मुलाकात के बाद आजाद ने भी कहा था कि सोनिया के नेतृत्व पर किसी को कोई एतराज नहीं है। उनकी कुछ मांगे हैं जो पार्टी के हित में है और वही दोहराया है। माना जा रहा है कि पार्टी अध्यक्ष का चुनाव अगस्त सितंबर तक होगा।