नई दिल्ली। गुजरात में बड़ी जीत के बाद दक्षिण के अपने एकमात्र गढ़ कर्नाटक को बचाने के लिए भाजपा बड़ा प्रयोग कर सकती है। कम से कम वरिष्ठ नेताओं से अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने कंफर्ट जोन (सुरक्षित क्षेत्र) से बाहर निकलकर विपक्षी दल कांग्रेस के बड़े चेहरों को उनके क्षेत्रों में घेरे। दरअसल जूनियर येद्दयुरप्पा यानी पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत के सबसे बड़े नेता बीएस येद्दयुरप्पा के छोटे पुत्र विजयेंद्र ने खुद ही ऐलान कर दिया है कि वह कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ वरुणा से लड़ना चाहेंगे जो भाजपा के लिए बहुत मुश्किल सीट मानी जाती है। जाहिर है कि दूसरे नेताओं से भी ऐसे ही शौर्य की अपेक्षा की जा सकती है।
अगले साल नौ राज्यों में है चुनाव
यूं तो अगले साल कुल नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं लेकिन दक्षिण में विस्तार की संभावनाओं के लिहाज से कर्नाटक भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अब तक भाजपा वहां बीएस येद्दयुरप्पा के चेहरे पर चुनाव लड़ती रही है। इस बार वह पर्दे के पीछे हैं। कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस के पास बड़े और मजबूत चेहरे भी हैं और संसाधन भी। ऐसे में प्रयोग की जरूरत महसूस की जा रही है।
गुजरात के बाद अब कर्नाटक में भी हो सकता है प्रयोग
गुजरात में एक सफल प्रयोग हो चुका है जिसमें कुछ पुराने और बड़े नेताओं ने खुद ही चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया। उनकी जगह पार्टी ने युवा चेहरों को टिकट दिया। येद्दयुरप्पा ने खुद ही ऐलान कर दिया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनकी पारंपरिक सीट शिकारीपुरा से उनके पुत्र विजयेंद्र लड़ेंगे। यह भाजपा के लिए बहुत ही सुरक्षित सीट है। कोई भी इस सीट से लड़ना चाहेगा लेकिन विजयेंद्र ने साहस और विश्वास दिखाते हुए बयान दिया कि नेतृत्व उन्हें जो कहेगा वह करेंगे लेकिन वह चाहेंगे कि वरुणा से उन्हें लड़ाया जाए।
सिद्धरमैया वरुणा से लड़ सकते हैं चुनाव
मालूम हो कि वरुणा से सिद्धरमैया जीतते रहे हैं और पिछली बार उन्हें अपने पुत्र को उस सीट से बड़ी मार्जिन से जिताया। माना जा रहा है कि सिद्धरमैया फिर से वरुणा आ सकते हैं। विजयेंद्र का यह साहस भाजपा के ही ऐसे दिग्गज नेताओं के लिए चुनौती है जो बड़ी जिम्मेदारी की मांग करते रहते हैं । वस्तुत: यह बयान नेतृत्व की सोच के अनुसार है जिसमें वरिष्ठों से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसी सीटों से लड़ें और जिताएं जो मुश्किल मानी जाती है। ऐसा होने पर आसपास की सीटों पर भी असर दिखता है।
बहुमत से चुक गई थी भाजपा
एक दूसरा पहलू यह भी है कि विजयेंद्र के इस बयान से प्रदेश इकाई के अंदर ऐसे नेता खतरा महसूस कर रहे हैं जिन्हें डर है कि वह येद्दयुरप्पा की विरासत न संभाल लें। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में भाजपा कुछ सीटों से बहुमत लाने से चूक गई थी और कांग्रेस और जदएस की साझा सरकार बनी थी। हालांकि बाद के दिनों में उनके विधायक टूट गए और भाजपा की सरकार बन गई थी। लेकिन इस बार येद्दयुरप्पा नहीं हैं। पांच साल की एंटी इनकंबैंसी भाजपा के खिलाफ होगी और पूरी संभावना है कि चुनावी जिताने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ही कंधे पर आ जाए। ऐसे में नेतृत्व प्रयोग कर सकता है।