चंदौली। एक तरफ निजी विद्यालयों की बढ़ती फीस के नीचे जहां अभिभावक पीस रहे हैं वहीं कमीशन कमाने के लिए निजी विद्यालय नया रास्ता अपना रहे हैं। जो किताब व ड्रेस के रूप में देखी जा रही है। इस तरह दो तरफ बढ़ता बोझ अभिभावकों की कमर ही तोड़ दे रही है। जनपद के विभिन्न क्षेत्रों सहित मुगलसराय शहर में कई नामी और बड़े स्कूलों ने अभिभावकों को सत्र के लिए बुक लिस्ट ही नहीं देते। उन्हें स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों को सीधे स्कूल से ही किताब बेची जाती है या चुनिंदा किताबों के दुकानों के नाम बता दिए जाते हैं जहां उनके कमीशन पहले से निर्धारित रहते हैं। बुक लिस्ट नहीं मिलने के कारण अभिभावक बाहर से किताब नहीं खरीद पा रहे हैं। इस कारण अभिभावकों पर अधिक आर्थिक दबाव पड़ रहा है। वहीं जिन स्कूलों ने अभिभावकों को बुक लिस्ट दी है उन स्कूलों ने बुक लिस्ट में दुकान के नाम भी दिए हैं जहां से अभिभावकों को किताबें खरीदने को कहा है। अभिभावकों का कहना है कि एमआरपी पर किताबें बेची जाती है। प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों पर अमूमन 20 से 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाती है लेकिन किताब खरीदने वाले अभिभावकों को यह छूट नहीं मिल रही। छूट की रकम कमीशन के रूप में स्कूलों के खाते में चली जाती है। इसका कुछ हिस्सा दुकानदार के हिस्से में भी जाता है। जो नोटबुक स्कूल में 40 से 45 रुपये का है वहीं नोटबुक होलसेल रेट पर 30 से 35 रुपये तक में मिल जाता है। लोगों की माने तो स्कूलों व निजी प्रकाशकों को दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ से फटकार भी लग चुकी है। जिसमें माननीय दिल्ली हाईकोर्ट ने प्राइवेट पब्लिशर्स असोसिएशन व निजी स्कूलों की याचिका को खारिज करते हुए प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी व सीबीएसई द्वारा निर्धारित किताबें ही लगाने का आदेश दिया है। न्यायालय ने टिप्पणी की है कि जब पेपर इन्हीं किताबों से आते हैं तो फिर स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें क्यों लगाई जा रही है। अभिभावक ने प्रदेश सरकार केंद्र सरकार क्या ध्यान आकृष्ट कराते हुए प्राइवेट स्कूलों के इस मकडज़ाल से बाहर निकालने की मांग की है।