अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू माहका चौथा माह होता है आषाढ़ माह। इस माहकी शुक्ल एकादशीसे चातुमास प्रारंभ हो जाते है। आषाढ़ी एकादशीके दिनसे चार माहके लिए देव सो जाते हैं। चातुर्मास चार महीनेकी अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशीसे प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशीतक चलता है। यह चार माह है श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। इसमें आषाढ़के १५ और कार्तिकके १५ दिन शामिल है। चातुर्मासके प्रारंभको देवशयनी एकादशी कहा जाता है, जो शुरू हो चुकी है। अंतमें देवोत्थान एकादशी आती है जब सभी शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं। इसे आधात्मिक माह भी कहा जाता है। इन चाह माहको व्रत, भक्ति, तप और साधनाका माह माना जाता है। इन चाह माहमें संतजन यात्राएं बंद करके आश्रम, मंदिर या अपने मुख्य स्थानपर रहकर ही व्रत और साधनाका पालन करते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। इन चार माहोंमें सभी तरहके मांगलिक और शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। उक्त चार माहमें विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गये हैं। इस दौरान फर्शपर सोना और सूर्योदयसे पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठनेके बाद अच्छेसे स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। वैसे साधुओंके नियम कड़े होते हैं। दिनमें केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए। इस व्रतमें दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिराका सेवन नहीं किया जाता। श्रावणमें पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपदमें दही, आश्विनमें दूध, कार्तिकमें प्याज, लहसुन और उड़दकी दाल आदिका त्याग कर दिया जाता है। उक्त चार माहमें जहां हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन और जलमें बैक्टीरियाकी तादाद भी बढ़ जाती है। इसीलिए नियम पालन करना जरूरी है। उक्त चार माहको व्रतोंका माह इसलिए कहा गया है कि उक्त चार माहमेंसे प्रथम माह तो सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस संपूर्ण माह व्यक्तिको व्रतका पालन करना चाहिए। ऐसा नहीं कि सिर्फ सोमवारको ही उपवास किया और बाकी वार खूब खाया। उपवासमें भी ऐसे नहीं कि साबूदानेकी खिचड़ी खा ली और खूब मजेसे दिन बिता लिया। शास्त्रोंमें जो लिखा है उसीका पालन करना चाहिए। इस संपूर्ण माह फलाहार ही किया जाता है या फिर सिर्फ जल पीकर ही समय गुजारना होता है। उक्त चार माहमें खानपानका भी विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि पूरे चार माह तो व्रत नहीं किया जा सकता इसलिए इन चार माहमें किसी एक चीजको छोड़कर व्रतका मान किया जाता है।