सम्पादकीय

चीनकी कुदृष्टि


पूरे विश्वमें कोरोना महामारी फैलानेवाले चीनका भारतके प्रति पहलेसे ही कुटिल रवैया रहा है और अब उसकी कुदृष्टिï अरुणाचल और सिक्कमके सीमावर्ती क्षेत्रोंपर लगी हुई है। अपनी विस्तारवादी नीतिके तहत वह कभी भी कोई खुराफात कर सकता है, इसकी आशंका बनी हुई है। इसीलिए सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणेने अरुणाचल प्रदेश सेक्टरसे लगी उत्तरी सीमापर सेनाकी आपरेशन तैयारियोंका जायजा लिया और जवानोंसे कहा कि वह चीनी खुराफातपर सतत और सजग दृष्टिï रखें। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बेहद सतर्क रहने और सीमाके उस पारसे चीनी गतिविधियोंको लेकर पूरी तरह अलर्ट रहनेकी जरूरत है। पूर्वी लद्दाखके क्षेत्रमें एलएसीके पार चीनी सेनाकी हालके दिनोंमें बढ़ी सक्रियताको देखते हुए जनरल नरवणेका अरुणाचल-सिक्किमसे लगी सीमाओंकी वस्तुस्थितिका जायजा लेना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने दीमापुर पहुंचकर चीनकी सीमाओंपर भारतीय सेनाकी तैयारियोंकी समीक्षा भी की। उन्होंने म्यांमारसे लगी चीनकी सीमाओंपर सुरक्षा चुनौतियोंका भी आकलन किया। भारतीय सेना पूरी तरह तैयार है और वह किसी भी स्थितिका मुंहतोड़ जवाब देनेमें भी सक्षम है। पूर्वी लद्दाखका दृष्टïान्त सामने है, जहां चीनको मुंहकी खानी पड़ी और उसे भारतीय सेनाके शौर्य और पराक्रमका भी अन्दाजा लग गया। चीनी सेनाओंकी एलएसीपर सक्रियता और पूर्वी लद्दाखमें जारी गतिरोधको देखते हुए भारतीय सेना कोई भी अवसर नहीं छोडऩा चाहती है। अरुणाचल और सिक्किममें चीन पहले भी खुराफात कर चुका है। इसलिए उसकी प्रवृत्तिको देखते हुए भारतीय सेना पहलेसे अधिक सतर्क है। इसके साथ ही परराष्टï्रमंत्री एस. जयशंकरने भी चीनको दो-टूक कड़ा सन्देश दिया है कि एलएसीपर तनाव रहते हुए भारतका चीनके साथ सहयोगका कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। एलएसीपर जबतक तनाव रहेगा तबतक आपसी रिश्ते सामान्य नहीं रह सकते हैं। दोनों देशोंके रिश्ते अभी दो-राहेपर है और आगेकी दिशा चीनके रवैयेपर ही तय होगी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत आगे किस दिशामें जायगा, यह चीनपर निर्भर करता है। जो भी हो, चीनका रवैया ऐसा नहीं है कि उससे सामान्य रिश्ते बनाये जाय। भारतको मजबूतीसे अपने निर्णयपर अडिग रहना है। साथ ही चीनकी किसी भी अमर्यादित आचरणका मुंहतोड़ जवाब देनेके लिए पूरी तरहसे तैयार रहना होगा। हमें ईंटका जवाब पत्थरसे देना होगा।

सुप्रीम कोर्टका उचित आदेश

सर्वोच्च न्यायालयका इलाहाबाद उच्च न्यायालयके ‘राम भरोसेÓ वाले आदेशपर रोक लगाना अधीनस्थ न्यायालयोंके लिए कड़ा सन्देश है। उच्च न्यायालयने १७ मई, २०२१ को अपने आदेशमें उत्तर प्रदेशके कस्बे और गांवोंमें समूची स्वास्थ्य व्यवस्थाको ‘राम भरोसेÓ करार दिया था। न्यायमूर्ति विनीत शरण और न्यायमूर्ति बी.आर. गवईकी पीठने उत्तर प्रदेश सरकारकी ओरसे दाखिल इस आदेशपर रोक लगानेवाली याचिकाकी सुनवाईके दौरान कहा कि हाईकोर्ट ऐसे आदेश न दे जिसका पालन सम्भव न हो। शीर्ष न्यायालयकी नसीहत उचित है क्योंकि असम्भाव्यताका सिद्धान्त अदालतोंपर भी लागू होता है। हाईकोर्टको ऐसे मुद्दोंपर विचार करनेसे बचना चाहिए जिनका राष्टï्रीय प्रभाव हो। साथ ही पीठने यह भी कहा कि हाईकोर्टके निर्देशको फैसलेके तौरपर नहीं, बल्कि एक सलाहके तौरपर देखा जाना चाहिए। हालांकि शीर्ष न्यायालयने कोविडसे सम्बन्धित मामलोंको हाईकोर्टके मुख्य न्यायाधीशोंके पीठको सुननेका निर्देश देनेके केन्द्र सरकारके आग्रहको ठुकरा दिया। इलाहाबाद हाईकोर्टके निर्देशोंपर शीर्ष न्यायालयका अहम फैसला उचित और सामयिक है। कोविड प्रबन्धनकी सुनवाई कर रहे सभी हाईकोर्टको पूरे देशकी स्वास्थ्य प्रबन्धन व्यवस्थापर असर डालनेवाले आदेशोंसे बचना चाहिए। इस तरहके फैसले उचित नहीं हैं। ऐसे आदेशोंसे राज्यों और देशके बाहर भी गलत सन्देश जाता है। इसलिए ऐसे मामलोंमें कूटनीतिक रास्ता अपनाना ही श्रेयस्कर है। हाईकोर्टको राज्यकी सीमाओंका ध्यान रखना चाहिए। महामारीके इस संकटकालीन दौरमें आम लोगोंका मनोबल बढ़ानेका प्रयास होना चाहिए। अदालतोंकी इस तरहकी टिप्पणियां निराशा पैदा करनेवाली है। कोरोनासे जंग जीतनेके लिए समाजके सभी वर्गोंका एकजुट संघर्ष जरूरी है। शीर्ष न्यायालयका आदेश देशके सभी न्यायालयोंके लिए महत्वपूर्ण और अनुकरणीय है। इसका अनुपालन होना चाहिए।