बीजिंग(एजेंसी)। पूरी दुनिया को कोरोना वायरस महामारी के चंगुल में धकेलना वाला चीन अगर शुरूआती दौर में ही इस वायरस को लेकर सचेत कर देता तो आज विश्व को इस मुसीबत का सामना न करना पड़ता। 7 फरवरी की सुबह चीन के शक्तिशाली इंटरनेट सेंसरों ने सनसनी महसूस की और उन्हें लगा कि उनका नियंत्रण खत्म हो रहा है। नए कोरोना वायरस के प्रकोप की चेतावनी देने वाले डॉक्टर ली वेनलियांग की कोविड-19 से मौत की खबर तेजी से फैल रही और सोशल मीडिया पर शोक और गुस्से का माहौल था।ऑचीनी अधिकारियों ने फौरन स्थानीय प्रोपेगंडा कार्यकर्ताओं और समाचार माध्यमों को गोपनीय निर्देश भेजे। न्यूज वेबसाइट को डॉ. ली की मौत का खबर रोकने के आदेश जारी हो गए। सरकारी सेंसरों ने खबरों को दबाने के लिए 5 हजार से अधिक आदेश और निर्देश जारी किए। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से कहा गया कि ट्रेंडिंग विषयों के पेज से डॉ. ली का नाम हटा दिया जाए। इसके साथ सोशल साइट्स पर बड़ी संख्या में प्रतिक्रिया और कॉमेंट करने वाले फर्जी लोगों की फौज उतार दी गई। इन लोगों को अपनी पहचान छिपाने, कट्टर देशभक्ति से बचने की सलाह दी गई। चीन सरकार ऑनलाइन मीडिया पर अपने देश की कोरोना संक्रमण से जुड़ी सूचनाओं को दबाने और पक्ष में सूचनाएं प्रचारित करने लिए बड़ी मात्रा में धन खर्च कर रही है। चीनी प्रशासन के अधिकारी कोरोना संक्रमण की असुविधाजनक खबरों को मैनेज करने के लिए स्थानीय प्रचार कार्यकर्ताओं के जरिये बाकायदा अभियान चला रहे हैं। अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स और प्रोपब्लिका के अनुसार चीनी अधिकारियों ने प्रचार कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि वे ऑनलाइन मीडिया पर सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के अनुसार चैट करें। वे मिलकर ऐसी सूचनाओं को हतोत्साहित करें जो चीन के हित में न हों। इन्हीं अधिकारियों ने कोरोना संक्रमण की जानकारी पर सावधान करने वाले डॉक्टर ली वेनलिएंग की मौत की सूचना इसी तरह से काफी दिनों तक ज्यादा प्रचारित नहीं होने दी। इस तरह के हजारों गोपनीय सरकारी निर्देशों और दस्तावेजों की न्यूयॉर्क टाइम्स और स्वयंसेवी न्यूज संगठन प्रो पब्लिका ने समीक्षा की है।
चीनी अधिकारियों ने न्यूज कवरेज के रुख को काबू में करने के लिए कड़े निर्देश दिए। वेतनभोगी ट्रोल्स ने सोशल मीडिया पर सरकार के पक्ष में जमकर अभियान चलाया। इसके लिए खास टेक्नोलॉजी का उपयोग हुआ। डिजिटल मीडिया संंस्थानों और सोशल मीडिया प्लेटफार्म की लगातार निगरानी पर भारी पैसा खर्च किया गया। असंतोष के स्वरों को दबाने के लिए सुरक्षा बलों का इस्तेमाल किया गया। दस्तावेजों से पता लगता है, चीन ने इस साल जनवरी के प्रारंभ में कोरोना वायरस फैलने की खबरों पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया था । कुछ सप्ताह बाद जब संक्रमण तेजी से फैलने लगा तो अधिकारियों ने ऐसी हर जानकारी और पोस्ट रोक दी जिससे चीन की नकारात्मक छवि बन सकती थी। अमेरिका और अन्य देश महीनों आरोप लगाते रहे कि चीन ने अपने यहां शुरुआत में वायरस के फैलाव की स्थिति को छिपाने का प्रयास किया है। दस्तावेजों से संकेत मिलते हैं कि चीनी अधिकारियों ने यह भी दिखाना चाहा कि वायरस अधिक गंभीर नहीं है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में आईटी कॉलेज के रिसर्च साइंटिस्ट सियाओ किआंग कहते हैं, चीन ने सेंसरशिप का मजबूत सिस्टम तैयार किया है। यह बहुत विराट सिस्टम है। ऐसा किसी अन्य देश में नहीं है। फरवरी की शुरुआत में राष्ट्रपति शी जिन पिंग ने डिजिटल मीडिया पर सख्त नियंत्रण के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी।